Home » हिंदी कविता संग्रह » जीवन पर कविताएँ » जागो हे मानव तम लुप्त हुआ :- जीवन को प्रेरणा देने वाली कविता

जागो हे मानव तम लुप्त हुआ :- जीवन को प्रेरणा देने वाली कविता

by ApratimGroup
3 minutes read

अँधियारा है तो प्रकाश भी होगा। जरूरी है की हम संघर्ष करें। किस्मत की लकीरें हमारे कर्मों  के हिसाब से ही बदलेंगी। सिर्फ भाग्य के भरोसे बैठने से कोई भी उपलब्धि हासिल नहीं हो सकती। इसी संदेश को आप तक पहुंचा रही है यह कविता ‘ जागो हे मानव तम लुप्त हुआ ‘

जागो हे मानव तम लुप्त हुआ

जागो हे मानव तम लुप्त हुआ

नन्हें मुख के सुरीले स्वरों से
विहंगो ने है भेजा मधुर संदेश,
जागो हे! मानव ताम लुप्त हुआ
पुनः खिल उठा प्रकृति का भेष।

दुःखद रात अब बीत गयी है
हिलने लगे है विटपों से पात,
भौरें जो पुष्पों में विचलित थे
मिटने लगे हैं सबके अंध-घात।

रवि ने जग को रोशन किया
तम की इच्छा के अनुकूल,
सच्चे हृदय से है नमन किये
प्रफुल्लित मुख से मोहक फूल।

निराशा के क्षण समक्ष नहीं है
छायी है अद्भुत सी लाली,
प्रस्तुत हुए हैं दृश्य स्वर्ग के
हिलते हुए कहती तरु की डाली।

तितलियाँ उमंग आँगन में लायीं
प्रफुल्लित हुए नन्हें से गात,
उत्साह समाया रोम-रोम में
प्रातः काल चली मलय-वात।

डरे, सहमें से बंद थे जो
प्रसूनों की कलियों में भौरें,
नन्हीं सी दीप्ती के आगमन से
स्वतंत्र हुए पल भर में सारे।

वसुधा के आंचल में स्वर्ग भरा
भानु की रश्मि के आने से,
क्षण में विलुप्त हुआ अँधेरा सारा
दुखमय यामा के जाने से।

सफल नीति पर नियमित चलकर
अपनाकर ज्ञान अज्ञान हरें,
असफलता सी रात जायेगी बीत
इतना तो हृदय में धैर्य धरो।

जन जीवन अत्यंत बहुमूल्य है
यूँ ही न इसको व्यर्थ करो,
जिससे मिलकर है भाग्य बना
उस अनमोल समय की कदर करो।

अब तो जागो हे! मानव प्यारे
कमियों को तुम कर लो स्वीकार,
जग में नहीं स्वयं में लाओ बदलाव
एक सुबह होगी अपनी जय-जयकार।

भुला दो गुजरे क्षण को हंसकर
आरंभ नव जीवन की हो खुशनुमा,
चलो अधूरे सपनों को साकार करें
जागो हे! मानव तम लुप्त हुआ।

पढ़िए :- संघर्षों से भरे जीवन को समर्पित ‘संघर्ष शायरी’


नमस्कार प्रिय मित्रों,

suraj kumar

मेरा नाम सूरज कुमार है और मैं उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के सिंहपुरा गांव का रहने वाला एक छोटा सा कवि हूँ। बचपन से ही मुझे कविताएं लिखने का शौक है तथा मैं अपनी सकारात्मक सोच के माध्यम से अपने देश और समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जिससे समाज में मेरी कविताओं के माध्यम से मेरे शब्दों के माध्यम से बदलाव आए। क्योंकि मेरा मानना है आज तक दुनिया में जितने भी बदलाव आए हैं वह अच्छी सोच तथा विचारों के माध्यम से ही आए हैं अगर हमें कुछ बदलना है तो हमें अपने विचारों को अपने शब्दों को जरूर बदलना होगा तभी हम दुनिया में हो सब कुछ बदल सकते हैं जो बदलना चाहते हैं।

‘ जागो हे मानव तम लुप्त हुआ ‘ के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे रचनाकार का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढने का मौका मिले।

धन्यवाद।

आपके लिए खास:

Leave a Comment

* By using this form you agree with the storage and handling of your data by this website.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More

Adblock Detected

Please support us by disabling your AdBlocker extension from your browsers for our website.