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चुनाव पर कविता में पढ़िए झूठे नेताओं के चुनावी दिनों में झूठे वादों की कविता। आये साल कोई न कोई चुनाव आते ही रहते हैं। और हर चुनाव में नेता एक से एक नए-नए वादे करते रहते हैं। समय के साथ पता चलता है कि वो सब के सब झूठे थे। अब तो जनता भी इन साब बातों की आदी हो चुकी है। आइये चुनाव के उन्हीं दिनों का वर्णन करती “ चुनाव पर कविता “ पढ़ते हैं :-
चुनाव पर कविता
आ रहे चुनाव के दिन
जोर-शोर मचने लगा
शहर में सारे नेताओं का
डेरा भी अब लगने लगा,
जमीं पर आने लगे अब
ईद के चाँद थे जो नेता
चुनावी मेला सजने लगा।
माँस मदिरा और साथ
पैसा भी दिखने लगा
कहीं सिलाई मशीन संग
लैपटॉप भी मिलने लगा,
बजने लगे शहर में डंके
प्रलोभन की हाहाकार मची
वोटों की भीख मांगने का
चुनावी मेला सजने लगा।
पार्टियों- प्रत्याशियों में
खो-खो,कबड्डी का खेल लगा
कोई लाल, हरे तो कोई नीले
झंडे को थामे दिखाने लगा,
प्रवचन देने को नेता जी ने
जन सैलाब इक्कट्ठा किया
हवा में लटकी बातों का फिर
चुनावी मेला सजने लगा।
चिकनी-चुपड़ी बातों से
जनता को बहकाने लगा
झूठे वादे कर नेता फिर
उनके बीच चहकने लगा,
यह इक सपना सा लगने लगा
वोटों के मोल भाव का अब
चुनावी मेला सजने लगा।
न देगा कोई साथ गरीब का
जनता को यह लगने लगा
जो भ्रष्टाचार को मात देदे
ऐसा न कोई दिखने लगा,
देश को प्रगति पथ दिखाए जो
कोई तो निकले ऐसा नेता
जनता के हकों से खेलने का
चुनावी मेला सजने लगा।
डीजे संगीत के साथ नेता
चुनाव प्रचार करने लगा
हर तरफ चहल पहल बढ़ी
लाल बत्तियों का शोर मचने लगा,
चुनाव के रंग में मानो फिर
अपना शहर भी डूब गया
सफेद लिबास में झूठी शानों का
चुनावी मेला सजने लगा।
मै ही लायक हूँ वोटों के
हर एक नेता कहने लगा
नीचे गिराने को इक-दूजे को
चालबाज़ी का खेल चलने लगा,
देख जनमानस लगा हंसने
गिरगिट सा खेल नेताओं का
रंग बदलते नेताओं का
चुनावी मेला सजने लगा।
अब सजग बनने लगा
इक नई जंग का देश में
ऐलान था करने लगा,
ऐसा नेता बनाएंगे जो
जो बस देश विकास की सोचे
सबके सपने सच करने का
चुनावी मेला सजने लगा।
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मेरा नाम हरीश चमोली है और मैं उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले का रहें वाला एक छोटा सा कवि ह्रदयी व्यक्ति हूँ। बचपन से ही मुझे लिखने का शौक है और मैं अपनी सकारात्मक सोच से देश, समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जीवन के किसी पड़ाव पर कभी किसी मंच पर बोलने का मौका मिले तो ये मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।
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