युवा दिवस पर भाषण
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भारत के युवाओं को समर्पित और उन्हें प्रेरित करता युवा दिवस पर भाषण :-
युवा वर्ग देश की रीढ़ की हड्डी होते हैं। अगर रीढ़ की हड्डी ही रोगी हो जाये तो फिर हमारा शरीर सीधा खड़ा नहीं रह सकता एवं न ही उसका विकास हो सकता है। हमें इस बात को याद रखना पड़ेगा कि सिर्फ युवा ही देश या समाज पर आये संकट का सामना करने में समर्थ होते हैं। इतिहास इस बात का गवाह है कि जब भी हमारे देश पर कोई भयानक संकट आया है तो उसका मुकाबला सदा युवा वर्ग ने ही किया है। युवाओं ने ही तूफान बन कि दुखों के इन बादलों को संसार पर बरसने से रोका है। इसलिए पाश्चात्य विचारक फ्रेंक्लिन रूजवेल्ट ने कहा है कि,
“We cannot build the future for our youth, but we can build our youth for the future.”
यह बात सत्य है कि अगर युवा जागृत एवं चेतन होंगे तो फिर उनका भविष्य कभी भी अंधकारमयी नहीं हो सकता। बल्कि वह प्रातःकालीन सुबह की भांति उज्जवल ही होगा।
आज का भारत युवा भारत है। देश की आबादी का लगभग ६५ प्रतिशत युवाओं का है। भारत में युवाओं की बढ़ रही संख्या विदेशियों में हलचल पैदा कर रही है। चीन के जियांग वीपिंग इस बात से बहुत चिंतित हैं २०५० तक चीन का हर एक व्यक्ति ६५ साल से ज्यादा उम्र का होगा। उस समय भारत देश में सब से ज्यादा युवा होंगे एवं भारत एक महाशक्ति के रूप में उभरेगा। फ्रांस के प्रमुख अख़बार ली फिगारो के विशेष रिपोर्टर फरोनोस गिओटिएर ने निष्कर्ष निकाला है कि भारत का पुनर्जन्म हो रहा है।
देश की युवा शक्ति के कारण यह उद्योग, अर्थवयवस्था एवं आध्यत्मिक्ता में सुपर पावर होगा। विश्व के विद्वान् आज भी भारतीय संस्कृति को विश्व संस्कृति के रूप में देख रहें हैं। क्योंकि भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम एवं सर्वे सुखिनः सन्तु का भाव व्यक्त करती है। मार्च २०१३ में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने Economy of President रिपोर्ट पेश की जिसके तहत वहां घट रही युवकों की जनसँख्या के कारण अमेरिका की अर्थवयवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। अमेरिका जो कि तकनीकी एवं आर्थिक क्षेत्र में दुनिया में सबसे आगे है। वहां पर भी युवकों की कम हो रही संख्या चिंता का विषय है। अमेरिका के ही प्रसिद्ध विद्वान् डेविड फ्राले विश्व के कल्याण हेतु भारतीय युवाओं का आह्वान करते हुए कहते हैं कि हे भारतीय युवकों उठो, आप उठेंगे तो सारे विश्व का कल्याण होगा।
हम सभी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि आजादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व बलिदान करने वाले ज्यादा युवा ही थे। जिन्होंने इस राष्ट्र के लोगों के अंदर क्रांति के बीजों को रोपित किया। हमारा इतिहास इस बात का साक्षी है कि इस धरा की प्यास को शांत करने वाले भगीरथी युवा ही थे। जिन्होंने अपने निरंतर परिश्रम से गंगा को स्वर्ग से इस पृथ्वी पर उतारा।
रावण के आतंक को ख़त्म करने के लिए प्रभु श्री राम जी ने युवा अवस्था में ही संकल्प लिया था। अपने अत्याचारी पिता को चुनौती देने वाले प्रह्लाद भी युवा ही थे। कंस के विरुद्ध जनसमूह को जागृत करने वाले भगवन श्री कृष्ण युवा ही थे। उन्होंने न सिर्फ कंस का उद्धार किया बल्कि पांडवो के सहयोग से एक शक्तिशाली राजतन्त्र की स्थापना भी की थी। उन्होंने जरासंध, दुर्योधन जैसे अनेकों पापी राजाओं का अंत करके एक नए शासनतंत्र की स्थापना की थी।
इसी प्रकार देश के लिए अपना सर्वस्व कुर्बान करने वाले बल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले अपनी युवा अवस्था में ही आजादी की जंग में कूद पड़े थे। ऐसे वीर जवानों की कहानी को कभी भुलाया नहीं जा सकता। भगत सिंह, चंद्र शेखर आजाद, खुदी राम बोस इत्यादि ऐसे युवा थे जिन्होंने देश वासियों को सुख देने के लिए अपनी जवानी तक को त्याग दिया। भगत सिंह सहित लाखों युवाओं में आजादी की अलख जगाने वाले उनके युवा चाचा अजीत सिंह जी थे। १९०२ ईस्वी में अजीत सिंह ने किसानों पर टैक्स लगाए जाने के विरोध में देश भर में पगड़ी संभल जट्टा आंदोलन की अगुवाई की थी। अजीत सिंह जी ने इस काले कानून के विरोध में १९०६ में भारत माता सोसाइटी का गठन भी किया था। १८५७ में जब क्रांति की ज्वाला जली थी तब भारत माता की असंख्य संतानों ने उसे रौशन करने के लिए अपनी क़ुरबानी दी थी। तब बहादर शाह जफ़र ने अंग्रेजों को कहा था –
बागियों में बू रहेगी जब तक ईमान की
तख्ते लन्दन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की।
उस समय जफ़र की मुख से जो शब्द निकले थे उन्ही में ही भारत की आत्मा प्रकट हुई थी। मदन लाल ढींगरा ने जफ़र की इसी बात को ५० साल बाद सिद्ध करके दिखा दिया था। जब उन्होंने १ जुलाई १९०९ को इम्पीरियल इंस्टिट्यूट में आयोजित समारोह में कर्जन वाइली पर गोलियां बरसा कर उसकी हत्या कर दी थी। उन्होंने जेल में बयान देते हुए कहा कि,
“इन अंग्रेजों ने मेरे देश का अपमान किया। जो कि परमात्मा का अपमान है। मेरी मान्यता है कि देश की सेवा करना ही राम कृष्ण की आराधना है। एक पुत्र होने के नाते अपने रक्त के अलावा भारत माता के चरणों में और अर्पित भी क्या कर सकता हूँ। इसी भावना से मैं अपनी भारत माता के लिए हस के बलिदान दे रहा हूँ। ढींगरा ने कहा कि मैं फिर से भारत भूमि पर जनम लूंगा एवं इसे आजाद करने कि लिए बार बार मौत को गले लगाऊंगा।”
आएं हम सब मिलकर उस महान देश भक्त को नमन करें। जिन्होंने तख्ते लन्दन तक हिंदुस्तान की तेग चलाकर हमारा सर ऊँचा कर दिया।
इसलिए हमें समझना होगा कि युवा राष्ट्र एवं समाज का प्राण हुआ करते हैं। राष्ट्र के निर्माण में सबसे ज्यादा योगदान युवकों का ही होता है। युवा राष्ट्र का भूत एवं भविष्य को जोड़ने का सेतु होने के साथ ही ये समाज के नैतिक मूल्यों का भी प्रतीक होते हैं। देश की युवा शक्ति ही राष्ट्र को जीवन मूल्य एवं सांस्कृतिक विरासत का प्रसार एवं आधार प्रदान करती है। इस विश्व में भारत ही वो देश है जिसके युवकों में आध्यत्मिक एवं सांस्कृतिक मूल्य,स्वाभिमान, राष्ट्र प्रेम, मानव सेवा एवं देश भक्ति आदि काल से ही चले आ रहें है।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जी की जब श्री रामकृष्ण परमहंस जी से पहली मुलाकात हुई तो स्वामी जी ने कहा कि आपका नाम बंकिम (झुका हुआ ) क्यों है? इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि अंग्रेजों की चाकरी में झुकने के कारण ही मेरा ऐसा नाम हो गया है। उनकी बात सुन कर परमहंस जी ने कहा कि आपका जन्म झुकने कि लिए नहीं बल्कि झुके हुओं को सीधे करने के लिए हुआ है। रामकृष्ण परमहंस जी की प्रेरणा के कारण ही उन्हें अपने जीवन की दिशा मिली। उन्होंने उसी वक़्त निश्चय किया कि मैं अंग्रेजों के सामने खुद भी नहीं झुकूंगा और दूसरों को भी नहीं झुकने दूंगा। इस प्रकार उनके द्वारा रचित देश भक्ति की रचनाएँ देश के युवकों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गईं।
स्वामी विवेकानंद जी ने भी अपने युवा अवस्था में भारत देश को विश्व का एक महान राष्ट्र होने की स्थिति में खड़ा किया। वो एक सच्चे संस्कृति प्रतिनिधि थे जिन्होंने युवकों में वीरता, साहस का भाव जागते हुए डर एवं कमजोरी को पाप कहा। अपनी आध्यात्मिक प्रेरणा द्वारा उन्होंने युवकों में आत्म विश्वास पैदा किया। स्वामी राम तीरथ जी ने भी अपनी ओजस्वी वाणी से लोगों में ईश्वर भक्ति के साथ साथ देश भक्ति की भावना को पैदा किया। लेकिन आज के युवाओं के बदल रहे आदर्शों ने उन्हें पथभ्र्ष्ट किया है।
कोई समय था जब हमारे देश में चरित्र बल, शिक्षा एवं परिश्रम को ही सफलता का मापदंड माना जाता था। लेकिन आज सफलता के समीकरण बदल गए हैं। आज उनके नायक कोई देश भक्त या संत महापुरुष नहीं बल्कि फ़िल्मी नायक हैं। इसलिए वो उनकी तरह रातों रात शोहरत प्राप्त करना चाहता है। जो मृगतृष्णा से बढ़कर और कुछ भी नहीं है। ये सब तो युवा को तनाव ग्रसित कर रहा है। आज का युवा समाजिक जिम्मेवारी को नहीं बल्कि आर्थिक जिम्मेवारी को ही सब कुछ समझता है।
- पढ़िए :- कविता ‘मत बांटो इन्सान को’
फ़िल्मी परदे पर दिखाई जाने वाली हिंसा,कामुकता , एवं रातों रत अमीर बनने के दृश्यों को देख कर युवा उसी को ही असल जिंदगी में जीना चाहता है। असलियत तो यह है कि परदे का नायक युवकों की कमजोरियों का ही विस्फोट है। युवा वर्ग को समझना होगा कि परदे की दुनिया वास्तविक दुनिया से बिलकुल भिन्न है। हम वास्तविक धरातल पर उतरकर ही अपने आप और समाज के लिए कुछ कर सकते हैं।
धन्यवाद।
2 comments
Nice
My name niyal khan kesharpura, patodi