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आज हम जिस इंसान के बारे में बताने जा रहे हैं। उसके बारे सुन कर उन लोगों को कुछ शर्म जरूर आनी चाहिए जिनके शरीर के सारे अंग होते हुए भी कोई काम करने से कतराते हैं। उन लोगों के लिए ये एक प्रेरणा स्त्रोत हैं जो लोग जिंदगी में कुछ करना तो चाहते हैं लेकिन हालातों के आगे हार मान जाते हैं। जिंदगी में सबसे बड़ी हार उम्मीद छोड़ देने पर होती है जब तक उम्मीद जिन्दा है आप कुछ भी कर सकते हैं। बस यही हौसला और जज्बा अरुणिमा सिन्हा ने भी अपनी जिंदगी में रखा और सबके सामने एक नई मिसाल रख दी। आइये जानते हैं अरुणिमा सिन्हा माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली दिव्यांग महिला की कहानी ( Arunima Sinha Biography In Hindi )
अरुणिमा सिन्हा माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली दिव्यांग महिला की कहानी
अरुणिमा सिन्हा का जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के अंबेडकर नगर में 20 जुलाई सन 1989 में हुआ। वह राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल और फुटबॉल खिलाड़ी रह चुकी हैं। उनकी जिंदगी में सब कुछ सही जा रहा था। अचानक एक दिन उनकी जिंदगी ही बदल गयी।
दिन था 11 अप्रैल, 2011, उस दिन अरुणिमा केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF – Central Industrial Security Force) की प्रतियोगी परीक्षा में भाग लेने जा रहीं थीं। लखनऊ से दिल्ली जा रही पद्मावत एक्सप्रेस में अचानक कुछ लुटेरे आ पहुंचे और अरुणिमा के बैग के साथ उसकी सोने की चैन खींचने की कोशिश करने लगे।
लेकिन एक खिलाड़ी अपने जीवन में कभी हार नहीं मानता। अरुणिमा ने भी उन लुटेरों का सामना करने की कोशिश की। लेकिन असफल रही और उन लुटेरों ने उसे चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया। अरुणिमा ने फिर भी हिम्मत न हारी। उस ट्रेन से गिर जाने के बाद जब दूसरी ट्रेन आई तो उसने उसे रोकने का प्रयास किया। घायल होने की वजह से वह खुद को संभाल ना पायी और ट्रेन की चपेट में आने के कारन उन्हें अपना एक पैर गंवाना पड़ा।
इसके बाद क्या हुआ उन्हें पता नहीं। जब आँख खुली तो खुद को अस्पताल में पाया। अपना एक पैर वो गँवा बैठी थीं। 18 अप्रैल, 2011 को उनके बेहतर इलाज के लिए उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (All India Institute of Medical Sciences) ले आया गया और वहां एक प्राइवेट दिल्ली आधारित कंपनी ने उनको एक कृत्रिम पैर लगवा कर दिया।
इलाज के दौरान उन्हें अपने जीने का मकसद ढूँढा और उनके प्रेरणास्त्रोत बने कैंसर से अंग जीतने वाले युवराज सिंह के साथ कुछ टीवी शोज जो लोगों को प्रेरित करने के लिए बनाये गए थे। अरुणिमा ने भी मन में ठान लिया। वो कुछ ऐसा करेंगी ओ आज तक किसी ने न किया हो।
कहने को तो ये कोई भी कह सकता था लेकिन जिंदगी में इतना बड़ा हादसा होने के बाद शायद ही कोई ऐसा सोच सकता था। ऐसे फैसले वही ले सकता है जिसे खुद पर भरोसा हो और कुछ अलग कर दिखने का जज्बा हो। ऐसे लोगों के लिए कुछ भी असंभव नहीं होता। तो अरुणिमा ने निर्णय लिया की वो माउंट एवेरेस्ट पर की चोटी पर जाएंगी। आज तक ऐसा कोई इन्सान नहीं हुआ जिसने एक ही पैर की सहायता से माउंट एवेरेस्ट पर चढ़ाई की हो।
बस अब बात थी तो पहला एकदम बढ़ाने की। शुरूआती ट्रेनिंग के लिए उन्होंने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में दाखिला लिया और वहां से अपनी शुरुआत की। उसके बाद उन्होंने भारत से माउंट एवेरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली महिला बचेंद्री पाल से फ़ोन पर संपर्क किया।
उसके बाद उनके टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन (Tata Steel Adventure Foundation (TSAF) ) में ट्रेनिंग आरंभ की। 2012 में उन्होंने पहली पर्वतीय चढ़ाई की। तैयारी के तौर पर उन्होंने पहली चढ़ाई 2012 में आइलैंड की चोटी (Island Peak) पर की जोकि 6150 मीटर ऊँची है।
ट्रेनिंग पूरी होने पर 31 मार्च को अरुणिमा ने माउंट एवेरेस्ट पर चढ़ाई का अपना सफ़र शुरू किया। 52 दिनों की कड़ी मशक्कत के बाद 21 मई, 2013 को अरुणिमा ने एक ऐसा इतिहास रच दिया जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था।
अरुणिमा सिन्हा माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचने वाली पहली दिव्यांग महिला बनीं। उन्होंने ये साबित कर दिया कि दिव्यांगता शरीर में नहीं इंसान की सोच में होती है। माउंट एवेरेस्ट की चोटी पर पहुंचें के बाद अरुणिमा ने एक सन्देश लिखा,
” मेरी यह उपलब्धि भगवान् शंकर और स्वामी विवेकानंद को श्रद्धांजली है जो मेरे लिए जिंदगी जीने का प्रेरणा स्त्रोत बने रहे। “
और उसे बर्फ में दबा दिया।
इसके लिए पूरे देश में उन्हें शाबाशी और बधाई सन्देश मिले। इतना ही नहीं 2015 में उन्हें उनकी इस उपलब्धि के लिए भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ( fourth highest civilian award of India ) पदमश्री पुरुस्कार से सम्मानित किया गया।
उत्तर प्रदेश में सुल्तानपुर जिले के भारत भारती संस्था ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने वाली इस दिव्यांग महिला को सुल्तानपुर रत्न अवॉर्ड से सम्मानित किये जाने की घोषणा की।
2012 से वह केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सी आई एस एफ) में हेड कांस्टेबल के पद पर कार्यरत हैं। 2014 में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अरुणिमा सिन्हा द्वारा लिखित किताब “बोर्न अगेन ऑन द माउंटेन” (Born again on the mountain) का प्रमोचन ( Launch ) किया। उन्होंने सिर्फ
माउंट एवेरेस्ट (8,848 मीटर या 29,029 फुट)
और
आइलैंड की चोटी (5,600 मीटर या 18,400 फुट) ही नहीं,
अफ्रीका के किलिमंजारो पर्वत ( 5,895 मीटर या 19,341 फ़ुट),
यूरोप के एल्ब्रुस पर्वत (5,621 मीटर या 18,442 फुट),
ऑस्ट्रेलिया में कोज़िअस्को पर्वत (2,228 मीटर या 7,310 फुट),
अर्जेंटीना में अकोंकागुआ पर्वत (6,961 मीटर या 22,838 फुट),
इंडोनेशिया के कार्स्तेंस्ज़ पर्वत ( (4,884 या 16023 फुट),
जैसे विश्व के ऊँचे-ऊँचे पर्वतों के शिखर को भी फतह किया।
कौन कहता है सपने सच नहीं होते। होते हैं लेकिन उनके लिए निरंतर प्रयास और दृढ़ संकल्प का होना जरूरी है। ये दोनों चीजें होने से आपको दुनिया की कोई भी ताकत आगे बढ़ने और इतिहास रचने से नहीं रोक सकती।
जैसे अरुणिमा सिन्हा ने अपने जीवन में एक लक्ष्य को पाना ही अपना उद्देश्य रखा। इसी प्रकार आप सब भी अपने उद्देश्य को सामने रख कर कोई भी काम करेंगे तो आपको सफलता जरूर मिलेगी।
आपको अरुणिमा सिन्हा के संघर्षमयी जीवन पर आधारित यह लेख आपको कैसा लगा हमें अवश्य बताएं और ये बताना न भूलें की आपने इस लेख से क्या शिक्षा प्राप्त की। आपके विचार हमारे लिए बहुमूल्य हैं।
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धन्यवाद।
4 comments
thank you sir this is a very nice article . isse hume aage badne ki himmat mili
Sadhana sharma hume ye jankar khushi mili ki humare likhe lekh se aapko prerna mili..isi tarah umare sath bane rahen..
शानदार पोस्ट … बहुत ही बढ़िया लगा पढ़कर …. Thanks for sharing such a nice article!! :) :)
धन्यवाद HindIndia जी…..