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सुख दुख क्या है :- सुख दुख की परिभाषा बताती ज्ञान वाली कहानी


जीवन में सुख-दुःख तो आते रहते हैं। यह जीवन का ही हिस्सा हैं। परन्तु इस संसार में कई ऐसे लोग हैं जो हर परिस्थिति में कोई न कोई अच्छी बात ढूंढ लेते हैं और सुखी रहते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अच्छी चीजों में भी नकारात्मक चीजें देख लेते हैं और दुखी होकर उन्हीं का रोना रोने लगते हैं। लेकिन ये सुख दुख क्या है ? आइये जानते हैं इस कहानी के जरिये :-

सुख दुख क्या है

सुख दुख क्या है

एक बार किसी देश की सीमा पर दुश्मनों ने हमला कर दिया। देश की रक्षा हित कुछ सैनिकों को सीमा पर भेजा गया। सारा दिन युद्ध होता रहा। शाम होते-होते सैनिकों की एक टुकड़ी बाकी सेना से बिछड़ गयी। वापस अपने सैनिकों को ढूंढते-ढूंढते रात हो गयी। थक जाने के कारण सभी सैनिक वहां एक नदी के किनारे पहाड़ की चट्टान पर आराम करने के लिए रुक गए।



तभी उनमे से एक नकारात्मक सोच रखने वाला सैनिक बोला,

“क्या जिंदगी है हमारी, भूख से मरे जा रहे है और जमीन पर सोना पड़ रहा है।“

इतना सुनते ही उसके एक साथी  ने जवाब दिया,

“जब हम छावनी में रहते हैं तो वहां की सुख-सुविधाओं का भोग हम ही करते थे। सुख-दुःख तो जीवन के दो पहलू हैं। जो आते-जाते रहते हैं।”

उस सैनिक की बात का समर्थन करते हुए एक और सैनिक बोला,

“जब हम युद्ध जीत कर अपने देश वापस जाएँगे तो राजा सहित मंत्री, सेनापति और देश के सभी लोग हमारी प्रशंसा करते हुए नहीं थकेंगे।”

लेकिन जिसकी सोच ही नकारात्मक हो भला वह कैसे कोई अच्छी बात कर सकता है। वह सैनिक फिर से बोला,

“वापस तो तब जाएँगे जब हम जिन्दा बचेंगे। अभी तो हमें यह भी नहीं पता कि हम अपने साथियों  को ढूंढ भी पाएँगे या नहीं।“

सभी सैनिक इसी तरह सुख और दुःख की बातें कर रहे थे तभी अचानक वहां एक बौना साधु आया और उसने कहा,

“भाइयों, तुम सब यहाँ से मुट्ठी भर छोटे पत्थर लेकर जेब में डाल लेना और जाते समय जब सूर्य शिखर पर होगा तब इन पत्थरों को निकाल कर देखना। तुम्हें सुख और दुःख के दर्शन होंगे।”

इतना कहते ही वह साधु वहां से चला गया। अब सब सैनिकों की बात का विषय वह साधु बन गया था। बातें करते-करते सभी सैनिक सो गए।

सुबह सूर्योदय से पहले ही सब सैनिक उठ गए और साधु के कहे अनुसार सबने एक मुट्ठी भर पत्थर अपनी जेब में डाल लिए। चलते-चलते दोपहर होने लगी।जब सूरज शिखर पर आया तो सबने जेब से पत्थर निकाले तब सब के सब हैरान रह गए।

वो कोई साधारण पत्थर नहीं बल्कि बहुमूल्य रत्न थे। सभी सैनिक ख़ुशी से फूले नहीं समा रहे थे कि अचानक नकारात्मक मनोवृत्ति वाले दुखी सैनिक ने उन्हें देख कर कहा,

“तुम लोग खुश हो रहे हो? तुम्हें तो रोना चाहिए।“

“क्यों? हमें क्यों रोना चाहिए।ये तो ख़ुशी की बात है की हम सबको ये बहुमूल्य रत्न प्राप्त हुए हैं।”

उसके एक साथी ने उसी रोकते हुए कहा।

लेकिन वो नकारत्मक और दुखी इन्सान फिर बोलने लगा,

“अगर हम एक मुट्ठी की जगह एक थैला भर का पत्थर लाते तो मालामाल हो जाते।”

“लेकिन क्या तुम उस साधु की बात पर विश्वास करते?”

इतना सुनते ही सभी सैनिक खिलखिला कर हंसने लगे।

सबको साधु की कही बात समझ आ गयी थी कि दुःख और सुख कुछ और नहीं बल्कि हमारे मन के भाव भर हैं बस। एक ही परिस्थिति में कोई सुख ढूंढ लेता है तो कोई दुःख।

सुख दुख कहानी आपको कैसी लगी ? इस बारे में अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।

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धन्यवाद।

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