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केरोली टाकक्स – एक ओलंपिक विजेता की संघर्ष की प्रेरक कहानी


आपने वो कहावत तो सुनी होगी कि सपने उनके पूरे होते हैं जो सपने देखते हैं। लेकिन कुछ लोग सिर्फ सपने देखने तक ही सीमित रह जाते हैं। सपने सिर्फ देखने से ही पूरे नहीं होते उन्हें पूरा करने के लिए दिन रात एक करना पड़ता है। अपनी कमजोरियों को अपनी ताकत बना कर खुद के हुनर को तराशना पड़ता है। कुछ लोग अपने सपने न पूरा होने के बहुत सारे कारण बताते हैं। लेकिन “जो बढ़ जाते हैं मंजिल की ओर सर पे जूनून का कफ़न बाँध अक्सर उन्हीं को मिलता है वो मुकाम जिसकी दुनिया चाहवान होती है ।” इस दुनिया में ऐसे कई लोग जन्म लेते हैं जो किसी भी मजबूरी को अपने सफलता कि राह में रुकावट नहीं बनने देते। ऐसे लोग इतिहास पढ़ते नहीं इतिहास बनाते हैं। ऐसे ही एक महान वयक्ति हुए थे जिमका नाम था :- केरोली टाकक्स ( Karoly Takacs )।

केरोली टाकक्स ( Karoly Takacs )

Karoly Takacs

केरोली टाकक्स हंगरी सेना (Hungarian Army) में काम करते थे।  उन्हें पिस्टल शूटिंग(Pistol Shooting) का शौंक था। वह अपने इस शौंक को और कोशिश कर और निखारना चाहते थे। वह अपने देश के सर्वश्रेष्ठ  पिस्टल शूटर (Pistol Shooter) बनना चाहते थे।

1938 में उनके देश में नेशनल गेम्स हुयीं और उन्होंने यह प्रतियोगिता बड़ी ही आसानी से जीत ली। यह जीत उन्हें उनकी कोशिशों के कारण ही मिली थी। इसके बाद उन्होंने अपना लक्ष्य और बड़ा रखा।

अब वे देश के सबसे उम्दा पिस्टल निशानेबाज़ (Pistol Shooter) तो बन ही चुके थे। इसके बाद वो दुनिया के सबसे बेहतरीन पिस्टल शूटर (Pistol Shooter) बनना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने 1940 में होने वाली ओलंपिक्स के लिए मेहनत करनी शुरू कर दी।

अभी उन्होंने अपना सपना संजोया ही था कि इस सपने को तोड़ने के लिए जिंदगी कि एक हकीकत उनकी हिम्मत तोड़ने का इन्तजार कर रही थी। केरोली टाकक्स नेशनल गेम्स जीतने के बाद आर्मी ट्रेनिंग कैंप में गए। वहां ट्रेनिंग करते हुए एक हथगोला (Hand Grenade) फेंकते समय उनके दायें हाथ में ही फट गया और ये हाथ वही था जिससे वह पिस्टल शूटिंग(Pistol Shooting) करते थे। ये वैसी ही स्थिति थी जैसी एकलव्य की अंगूठा कटने के बाद हुयी थी। लेकिन एकलव्य ने फिर अपनी उँगलियों से धनुर्विद्या सीख एक नए ढंग को जन्म दिया।  जिसे आज कल तीर अंदाजी में प्रयोग में लाया जाता है।

इस घटना ने उनको अन्दर से झकझोर दिया।  ये जिदगी का ऐसा मोड़ था जहाँ लोग अपने लक्ष्य को जाने वाले रास्ते को छोड़ के कोई और राह अपना लेते हैं। लेकिन केरोली (Karoly Takacs) ने हार नहीं मानी और इलाज के तुरंत बाद ही उन्होंने अपने बाएं हाथ को मजबूत करना शुरू कर दिया। इसके बारे में उन्होंने किसी को कुछ नहीं बताया। काफी मुश्किलें आने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी।

एक साल बाद वह दुबारा खुद को तैयार कर 1939 के नेशनल गेम्स में पहुंचे। वहां मौजूद सारे लोगों के चेहरे पर ख़ुशी के भाव आ गए। वहा आये प्रतियोगियों को लगा कि केरोली (Karoly Takacs) उन्हें प्रोत्साहित करने आये हैं। लेकिन जब उनको पता चला कि केरोली (Karoly Takacs) उन्हें प्रोत्साहित करने नहीं अपितु उनसे मुकाबला करने आये हैं तो आये हुए सभी प्रतियोगी आश्चर्यचकित रह गए। इस गेम में उन्होंने ना सिर्फ बढ़िया प्रदर्शन किया बल्कि सभी को हरा कर बहादुरी कि एक नई मिसाल कायम की। वह रातों-रात पूरे देश के हीरो बन गए।

उनके अन्दर 1940 में होने वाली ओलंपिक्स जीतने का सपना अभी भी अपनी जगह बनाये हुए था। पर कहते हैं ना कि इन्सान के चाहने से क्या होता है, होता तो वही जो पर वाला चाहता है। 1940 में होने वाली ओलंपिक्स दूसरे विश्व युद्ध के कारण रद्द हो गयी। केरोली (Karoly Takacs) के सामने एक और नई मुश्किल ने कदम बढ़ा लिए।

केरोली (Karoly Takacs) इससे जरा भी हताश न हुए और 1944 में होने वाली ओलंपिक्स के लिए तैयारियां शुरू कर दीं। पर अभी उनके सब्र का इम्तिहान बाकी था। 1944 में होने वाली ओलंपिक्स भी दूसरे विश्व युद्ध के कारण रद्द हो गयी। इससे बुरा क्या हो सकता था कि पहले हाथ चला गया और फिर 2 मौके भी चले गए। केरोली (Karoly Takacs) कि उम्र भी बढती चली जा रही थी। लेकिन वो वक़्त भी आ गया और आख़िरकार 1948 में ओलंपिक्स आयोजित हुए।

केरोली (Karoly Takacs) ने इन खेलों में वो कर दिखाया जो किसी 38 वर्षीय खिलाड़ी के लिए करना लगभग असंभव था। लेकिन केरोली (Karoly Takacs) के शब्दकोष में असंभव शब्द तो था ही नहीं। उन्होंने इस ओलंपिक्स में न सिर्फ भाग लिया बल्कि गोल्ड मैडल भी जीता। ये ऐसा पल था जिसने सरे हंगरी देश को गौरान्वित कर दिया था। पर सफ़र यहीं नही रुकने वाला था 4 साल बाद 1952 के ओलंपिक्स में उन्होंने फिर से गोल्ड मैडल जीता और इतिहास रच दिया। लगातार दो बार गोल्ड मैडल जीतने वाले वो विश्व के पहले खिलाड़ी बने।

दोस्तों हमें केरोली (Karoly Takacs)  की तरह जिंदगी में कभी हार नहीं माननी चाहिए। जिंदगी में चाहे जैसी परिस्थितियां आ जाएँ हमे अपने ऊपर विश्वास रखना चाहिए और उस परिस्थिति का बहदुरी से सामना करना चाहिए। जिन्दगी में हमारी इच्छाशक्ति से बढ़कर कुछ भी नहीं है। अगर हमारी इच्छाशक्ति में दृढ़ता है तो हम किसी भी काम को आसानी से कर  सकते हैं। जिन्दगी में असंभव कुछ भी नही होता।

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धन्यवाद।


*Image Credit- By Source (WP:NFCC#4), Fair use, https://en.wikipedia.org/w/index.php?curid=39406726

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