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Abhinav Manushya Kavita | रामधारी सिंह दिनकर जी की कविता


Abhinav Manushya Kavita – मानव ने जंगल काट कर घर बना लिए, धरती छोड़ आसमान की सैर भी कर ली लेकिन इन सब के बीच वह मानवता को भूलता जा रहा है। इसी विषय पर आधारित है रामधारी सिंह दिनकर जी द्वारा रचित ” अभिनव मनुष्य कविता “

Abhinav Manushya Kavita
अभिनव मनुष्य कविता

Abhinav Manushya Kavita

आज की दुनिया विचित्र, नवीन
प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन।

है बँधे नर के करों में वारि, विद्युत, भाप,
हुक्म पर चढ़ता-उतरता है पवन का ताप।

हैं नहीं बाकी कहीं व्यवधान
लाँघ सकता नर सरित् गिरि सिन्धु एक समान।

यह मनुज,
जिसका गगन में जा रहा है यान,
काँपते जिसके करों को देख कर परमाणु।

यह मनुज, जो सृष्टि का शृंगार,
ज्ञान का, विज्ञान का, आलोक का आगार।

व्योम से पाताल तक सब कुछ इसे है ज्ञेय,
पर, न यह परिचय मनुज का, यह न उसका श्रेय ।

श्रेय उसका, बुद्धि पर चैतन्य उर की जीत,
श्रेय मानव की असीमित मानवों से प्रीत

एक नर से दूसरे के बीच का व्यवधान
तोड़ दे जो, बस, वही ज्ञानी, वही विद्वान
और मानव भी वही।

रामधारी सिंह दिनकर

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