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शरद ऋतु पर कविता :- निकलो भी अब सूरजदादा | ठण्ड पर कविता


जो सूरज देवता गर्मी में आग बरसाते हैं शरद ऋतू में अक्सर उनके दर्शन भी दुर्लभ हो जाते हैं। इतना ही नहीं उनका ताप भी ठंडा पड़ जाता है। फिर सब उनसे कैसे आने की विनती करते हैं। ये बता रहे हैं सुरेश चन्द्र “सर्वहारा” जी अपनी इस ‘ शरद ऋतु पर कविता ‘ में :-

शरद ऋतु पर कविता

शरद ऋतु पर कविता

निकलो भी अब सूरजदादा
बनो न जिद्दी इतने ज्यादा,
सभी ठंड में सिकुड़ रहे हैं
घूम रहे हैं पहन लबादा।

जब से है यह सर्दी आई
रहती धुंध देर तक छाई,
शीत लहर चलती जोरों से
लगता ओढ़े रहें रजाई।

धूप हुई है पीली पीली
मरी मरी – सी ढीली ढीली,
गर्मी खोकर आज हुई यह
जली हुई माचिस की तीली।

किटकिट करके दाँत बोलते
मुँह भी बनता नहीं खोलते,
रोज नहाने से पहले अब
हिम्मत अपनी लोग तोलते।

तुम भी अब देरी से आते
और शाम जल्दी चल जाते,
कहाँ गए गर्मी के तेवर
दिनभर क्यों रहते सुस्ताते।

चीर कोहरे की अब चादर
बिखरा दो किरणों की गागर,
ठिठुराते जीवों को राहत
दे दो सूरजदादा आकर।

पढ़िए शरद ऋतु पर यह बेहतरीन कविताएं :-


सुरेश चन्द्र 'सर्वहारा' कोटा, राजस्थान के रहने वाले सुरेश चन्द्र “सर्वहारा” जी स्वैच्छिक सेवानिवृत्त अनुभाग अधिकारी (रेलवे) हैं। सुरेश जी एक वरिष्ठ कवि और लेखक हैं। ये संस्कृत और हिंदी में परास्नातक हैं। इनकी कई काव्य पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें नागफनी, मन फिर हुआ उदास, मिट्टी से कटे लोग आदि प्रमुख हैं।

इन्होंने बच्चों के लिए भी साहित्य में बहुत योगदान दिया है और बाल गीत सुधा, बाल गीत सुमन, बच्चों का महके बचपन आदि पुस्तकें भी लिखी हैं।

‘ शरद ऋतु पर कविता ‘ के बारे में अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे लेखक का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढने का मौका मिले।

धन्यवाद।

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