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टूटता वादा – एक ही समाज के दो पहलुओं को दिखाती कविता

by Sandeep Kumar Singh

ये कविता ” टूटता वादा ” हमें प्रीती शर्मा ने अमृतसर के जंडियाला गुरु इलाके से भेजी है। जोकि इस समय अंग्रेजी विभाग में अध्यापन का कार्य कर रही हैं। इस कविता में समाज के दो पहलु दिखाए गए हैं।

यह दिखाया गया है कि किस तरह एक औरत जब अपने सपने संजोती है तो उसके अपने चाहने वाले उसे प्रेरित करते हैं। लेकिन जब वो सपनों को साकार करने के लिए आगे बढती है और समाज उस पर कोई गलत आरोप लगा देता है तो उसे प्रेरित करने वाले भी उसी समाज का एक हिस्सा बन जाते हैं और उस औरत को गलत कहने लगते हैं। इसलिए ये कविता दो हिस्सों में लिखी गयी है।

टूटता वादा

(पहला भाग जहाँ उस औरत को प्रेरित किया जाता है)

चल चल तू बढ़ती चल तू ,
सतरंगी ख्वाबों के संग
साहस उम्मीदें हसीं को लेकर
चल चल तू उड़ती चल तू ,
सीखने को है बहुत कुछ अभी
अम्बर को अपना करना है,
ख्वाबों की तश्करी संग
रंग निराला भरना है।

किया जो वादा खुद से तुमने
खुद को पहचान दिलाने का,
कल्पना चावला, किरण बेदी,
डॉ. राधा कृष्णन जैसा मुकाम पाने का ,
इस वादे को पूरा करने,
चल चल तू बढ़ती चल तू
चल चल तू उड़ती चल तू।

इस वादे को पूरा करने
वो पहुंची एक अनोखी नगरी
भांति-भांति के फूल लगे थे
और हरे-भरे वृक्ष और पौधे,
हर्षोल्लास से लगी वो भरने
रंग नए इस उपवन में
दीन ईमान और सच्चाई ही
भरी थी बस उसके मन में।

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(दुसरा भाग जब उसके सपने टूट कर चकनाचूर हो जाते हैं और वो अकेली रह जाती है।)

टूटता वादा - एक ही समाज के दो पहलुओं को दिखाती कविता

क्या पता था पतझड़ आएगी
और अपना कहर वो ढाएगी
किया वार अहम् के खंजर से
छीन पहचान ये कैसा किया काम रे
आग से उज्जवल पंछी को
दिया कीच का नाम रे।

उड़ते हँसते पंछी को
डाला आरोपों के जाल में
न है कोई सुनने वाला
न कोई पूछे है किस हाल में,
हालत थी ये आज सितम की
भूल गए थे बात अमृता प्रीतम की

रो रही थी बेटी आज
वारिश शाह के पंजाब की
भूल गयी थी वादा अब वो
फिकर थी तो बस आरोपों के जाल की
टूट गए सपने सारे अब
रही न कोई आस
समाज की जंजीरों से
अधूरी रह गयी सफलता की प्यास।

पढ़ें उदास जिंदगी की कविता :- ढल चुका है सूरज हो चली है शाम धीरे-धीरे।

आपको ये कविता कैसी लगी हमें जरूर बताएं…! अगर आप भी ऐसी बेहतरीन कविताये लिख सकते है तो email – [email protected] पर या हमें Facebook Page पर संपर्क करे!

पढ़िए अप्रतिम ब्लॉग पर ऐसी ही कुछ और रचनाएं :- 

धन्यवाद्।

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11 comments

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मिंकू मुकेश सिंह August 3, 2017 - 4:19 PM

सर्वश्रेष्ठ आदरणीय

दोहरी मानसिकता की परिचायक आपकी कविता दिल मे उतर गई।

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Akshay sharma November 27, 2016 - 10:28 PM

Nyc and absolute ryt line ….. I am so happy …

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Preety November 28, 2016 - 3:58 PM

Thanku akshay ji.

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Girish November 20, 2016 - 10:01 PM

True story of typical indian society . Every person hv equal rights but our society always snatch womens rights but this is not universal truth but common problem in our typical society. Well done preeti ji

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Preety November 20, 2016 - 10:21 PM

Right and hope this will end in future .thanku Girish ji

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Ruhi November 20, 2016 - 9:43 PM

Right society diplomatic hai gud attempt. Mam

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Preety November 20, 2016 - 10:13 PM

Thanku ruhi ji

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Vinod November 20, 2016 - 9:42 PM

Jo eda kre ladies nal kuto ohnu

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Preety November 20, 2016 - 10:15 PM

I think my pen is powerful weapon to beat them thanku for liking my poem vinod ji

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Ankush November 16, 2016 - 11:43 AM

Nyc and true preety g

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Preety November 20, 2016 - 10:14 PM

Thanku ankush ji

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