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मनहूस या एक वरदान :- एक बेटी की कहानी | समाज की हकीकत पर कहानी

by Sandeep Kumar Singh
7 minutes read

बेटियां जीवन का आधार होती हैं। उनसे ही तो समाज आगे बढ़ता है और उनसे ही रिश्तों को पहचान मिलती है। फिर भी हमारे समाज में कई लोग बेटियों के प्रति बुरी सोच रखते हैं। उनमें से कुछ तो समय के साथ बदल जाते हैं कुछ नहीं बदलते और कुछ को समय बदल देता है। फिर उन्हें मनहूस बेटी भी एक वरदान लगने लगती है। बेटी एक वरदान है। यही सन्देश दे रही है हमारी यह कहानी ‘ मनहूस या एक वरदान ‘ :-

मनहूस या एक वरदान

मनहूस या एक वरदान

लाडो उनकी बड़ी बेटी थी लेकिन लाड सारा वो अपने छोटे बेटे को करते थे। लाडो के माँ-बाप पहले लड़का चाहते थे। मगर ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था और भेज दिया उनके घर लाडो को। जब लाडो का जन्म हुआ तो कर्जदार उसके पिता को उठा कर ले गए थे। इस वजह से माँ उसे मनहूस मानने लगी।

मगर या मनहूसियत बस उनकी सोच भर में थी। उसी दिन उसके पिता की लाटरी लगी और उनका सारा कर्जा उतार दिया गया। लेकिन ये तो भगवान् ने किया था। लाडो कहाँ कोई पूछ रहा था।

फिर 2 साल बाद उसके भाई का जन्म हुआ। भाई जिसका नाम अजय रखा गया था। उसका ये नाम लाडो ने तब सच कर दिखाया जब मौत उस पर जीत प्राप्त न कर सकी। पांचवा जन्मदिन था। जन्मदिन की तैयारियां करते समय अचानक घर में आग लग गयी। सब लोग बाख कर घर से बाहर आ गए लेकिन अजय और लाडो का कुछ पता न था। अचानक लाडो घर से बाहर आती दिखी। अपने से बस थोड़े से छोटे भाई को मुश्किल से वो उठा पा रही थी लेकिन फिर भी वो उसे बचा कर ले आई।



ऐसी ही कुछ और घटनाएँ भी हुयीं लेकिन लाडो आज भी उनके लिए मनहूस ही थी। लाडो 20 साल की हो चुकी थी। एक दिन अचानक उसे तेज बुखार हुआ। उसके माँ-बाप ने उसकी ज्यादा परवाह न की। पिता ने तो यहाँ तक कहा कि तू मर ही जा हमें भी तुझसे छुटकारा मिले। लाडो ने आज तक कभी भी अपने माँ-बाप को पलट कर जवाब न दिया था।

एक सुबह लाडो ने आँखें न खोलीं। हालत ज्यादा ख़राब थी और लाडो बेहोश हो चुकी थी। मजबूरन उसके माँ-बाप को उसे अस्पताल में दाखिल करवाना पड़ा।

“देखिये बुखार कई दिनों से है जिसकी वजह से शरीर में काफी कमजोरी आ गयी है और खून भी काफी कम हो गया है। इसकी जान बचने के लिए इसे खून देना होगा।”

डॉक्टर के कहें इन शब्दों से तो लाडो के माँ-बाप चिंता में पड़ गए। फिर भी हिम्मत कर उन्होंने अजय का खून देने का फैसला किया था। इसलिए नहीं कि वो लाडो को बचाना चाहते थे बल्कि इसलिए की समाज में कोई उन पर ये इल्जाम न लगाये कि बेटी को नहीं बचा सके। खून चढ़ाने से पहले उसका सैंपल जांच के लिए भेजा गया। शाम को रिपोर्ट आई।

डॉक्टर ने रिपोर्ट पढ़ते हुए लाडो के माँ-बाप से कहा,

“आपकी बेटी का बीमार होना आपके लिए वरदान साबित हुआ है। जो समय रहते हमें आपके बेटे की बीमारी के बारे में पता चल गया।”

“बिमारी……? कौन सी बीमारी? ये कलमुहीं लगता है इसकी जान लेकर ही रहेगी।”

डॉक्टर को टोकते हुए लाडो की माँ बोली। तभी डॉक्टर ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा,

“अरे! ये कैसी बाते कर रहीं हैं आप? आपको पता है यदि लाडो बीमार न होती तो आपके बेटे की इस बीमारी के बारे में किसी को पता ही न चलता। इसे हेपेटाइटिस-सी है। जिसके लक्षण पता नहीं चलते और इन्सान का लीवर धीरे-धीरे काम करना बंद कर देता है। जिस से इन्सान की मौत हो जाती है।”

“डॉक्टर साहब तो क्या हमारा अजय भी….”

अजय के पिता ने उदास होते हुए डॉक्टर से पूछा तो डॉक्टर ने तसल्ली देते हुए कहा,

“देखिये अगर हेपेटाइटिस-सी बीमारी का पता देरी से चले तो रोगी को बचाना मुश्किल हो जाता है लेकिन पहले पता चल जाने पर उसे आसानी से बचाया जा सकता है और अजय की इस बीमारी की अभी तो शुरुआत है। यदि लाडो की तबियत ख़राब न होती तो शायद अजय की इस बीमारी का पता न चलता। आपकी बेटी ने तो आपके बेटे की जान बचायी है।”

लाडो के माँ-बाप ऐसी स्थिति में थे जहाँ अब वो अपनी गलती जानते थे लेकिन वो गलती मान लेने की उनमें हिम्मत न थी। लाडो के बचपन से लेकर अब तक हुयी सब घटनाएँ उनकी आँखों के सामने हो ली थीं। उसके जन्म के समय उनकी लाटरी निकली थी। अजय को भी लाडो ने बचाया था। आज एक बार फिर लाडो ने अजय को बचा लिया था।

लाडो के माँ-बाप का नजरिया उसके प्रति बदल चुका था। आज वो उसे अपनी बेटी मान चुके थे जिसने बचपन से ही उनको मुसीबतों से बचाया था। लेकिन अफ़सोस हमारे समाज में आज भी न जाने कितनी लाडो का क़त्ल गर्भ में ही कर दिया जाता है और कितनी ही को वो जिंदगी नसीब नहीं होती जो एक बेटी को होनी चाहिए।

ये तो इन्सान की फितरत है कि वो किसी में अच्छाई कम और बुराई ज्यादा देखता है। परन्तु यदि हम हर चीज में अच्छाई देखना शुरू कर दें तो जिन्दगी कितनी खुशहाल हो जाए।



और हाँ, इस ‘ मनहूस या एक वरदान ‘ कहानी में जस बीमारी (हेपेटाइटिस-सी )का जिक्र किया गया है वो बीमारी भी कैंसर की तरह लाइलाज है। यदि समय रहते इसका पता चले तभी इसका इलाज संभव है। इसके लक्षण ऐसे हैं जो ध्यान देने पर ही पता चलते हैं। इसलिए निरंतर जांचा द्वारा ही इसका पता चलता है।

हेपेटाइटिस-सी और हेपेटाइटिस-बी दोनों लगभग एक जैसी बीमारी हैंहेपेटाइटिस-सी सदी के महानायक अमिताभ बच्चन भी हेपेटाइटिस-बी बीमारी से ग्रस्त हैं लेकिन उन्होंने समय रहते ही इसका इलाज करवाना शुरू कर दिया था इसलिए वो आज भी काम कर पा रहे हैं।

तो फिर बेटियों को दिल से अपनाइए और साथ ही अपने शरीर के प्रति भी जागरूक रहें।

पढ़िए बेटी से संबंधित यह 5 बेहतरीन कविताएं :- 

धन्यवाद।

आपके लिए खास:

2 comments

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करण डामोर जनवरी 3, 2023 - 12:42 पूर्वाह्न

सर मैं आपकी कहानियां यूट्यूब पर अपलोड कर सकता हूं प्लीज जवाब जरुर देना

Reply
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डा० देव शर्मा वेदालंकार जून 20, 2022 - 7:36 पूर्वाह्न

प्रेरणा दायक

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