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हिंदी कविता – तेंदुए घूम रहे हैं कभी-कभार समाचार में यह सनने को मिलता है कि अमुक स्थान पर तेंदुआ दिखाई दिया है। जो जान-माल का नुकसान कर रहा है। लेकिन समाज मे हिंदी कविता – तेंदुए घूम रहे हैंछिपे उन तेंदुओं का क्या जो इंसान के भेष में रहकर हैवानियत भरे काम करते हैं। इसी विषयी पर आधारित है यह हिंदी कविता – तेंदुए घूम रहे हैं :-
हिंदी कविता – तेंदुए घूम रहे हैं
आजकल
शहर में
तेन्दुए घूम रहे हैं,
कुछ शराब के
तो कुछ दौलत के
नशे में झूम रहे हैं।
जंगली तेन्दुओं से हैं
ये शहरी तेन्दुए
कहीं अधिक खतरनाक,
कुछ ने तो
जमा रखी है समाज में
अपनी अच्छी – खासी धाक।
जंगलों के
हो जाने से उजाड़
जंगली तेन्दुए तो
आते हैं बस्ती में
अपना पेट भरने,
लेकिन
ये भरे पेट के
शहरी तेन्दुए तो
यहाँ – वहाँ मुँह मार
माँ – बहिनों की इज्जत
लगते हैं चरने।
जंगल से आए
तेन्दुए को तो
पहचान लेता है
गली – मोहल्ले का
हर कोई बच्चा,
किन्तु
इन शहरी तेन्दुओं को
पहचानने में
बड़े – बुजुर्ग भी
खा जाते हैं गच्चा।
लगते ही घात
ये शहरी तेन्दुए
राह चलती
लड़कियों से
करते हैं छेड़खानी,
कभी देकर
झाँसा शादी का
कर देते हैं बर्बाद
कुँवारियों की जवानी।
कभी घुसकर घर में
सम्भ्रान्त महिलाओं की
दिन – दहाड़े
लूट लेते हैं इज्जत,
तो कभी
रात के अंधेरे में
उठा ले जाते हैं
सोती बच्ची को
और कर देते हैं
उसके तन -मन को
क्षत – विक्षत।
इन शहरी तेन्दुओं को
पकड़ने के लिए
नहीं बिछता है कोई जाल
और न ही लगता है
कोई पिंजरा,
ऊपर तक है
इनका रसूख
पुलिस और प्रशासन से
इनको भय नहीं जरा।
हमारे आसपास ही
छुपे हुए होते हैं
ये शहरी तेन्दुए,
सतर्क रहें इनसे
जो धारण करते हैं
रूप रोज नए – नए।
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