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अखबार पर कविता – अख़बार भी वही है | Poem On Newspaper In Hindi

by Sandeep Kumar Singh

अकसर देखा जाता है कि अख़बार पढ़ना कई लोगों की आदत होती है। सुबह और कुछ मिले न मिले उन्हें अख़बार जरूर मिलना चाहिए। सबको ये उम्मीद रहती है की शायद कोई ऐसी खबर मिल जाए जो अच्छी हो। आज-कल अख़बारों में जो ख़बरें आती हैं और जो देश की हालात है उसे देखते हुए मैंने ये कविता ” अखबार पर कविता ” लिखने की कोशिश की है। पढ़ने के बाद अपने विचार जरूर दें।

अखबार पर कविता

अखबार पर कविता - अख़बार भी वही है | Poem On Newspaper In Hindi

अख़बार भी वही है, घटना भी वही है,
कुछ बदल रहा है तो तारीख बदल रही है।
कहीं फेंका गया तेज़ाब, कहीं लूटा गया हिजाब,
अफ़सोस जताने को मोमबत्तियां जल रही हैं,
कहीं दहेज़ की आग में जल गयी सुहागिन,
कहीं कचरे के ढेर में नवजात मिल रही है,
अख़बार भी वही है, घटना भी वही है,
कुछ बदल रहा है तो तारीख बदल रही है।

फसल हुयी तबाह है, मानसून है राह भटक रहा,
कर्ज के नीचे दबा हुआ, फांसी पर कृषक है लटक रहा,
खाना न खाता वो, डर बेटी के दहेज़ का उसको खता है,
धूप में तपता वो है, मुस्कानें कहीं और खिल रही हैं,
अख़बार भी वही है, घटना भी वही है,
कुछ बदल रहा है तो तारीख बदल रही है।

पढ़े-लिखे भी धरने करते, सड़कों और चौराहों पर मरते,
किसी से कर्ज़ा मांग-मांग कर परीक्षाओं के शुल्क हैं भरते,
चिंता और बेरोजगारी साथ-साथ ही बढ़ रही है,
नौकरी तो मिलती नहीं बस दिलासा ही मिल रही है,
अख़बार भी वही है, घटना भी वही है,
कुछ बदल रहा है तो तारीख बदल रही है।

रुपया गिरा मजबूत है डॉलर
पकड़े है रईस मजदूर का कालर,
न जाने इस देश में कैसी हवाएँ चल रही हैं,
सम्मान गिर रहा है नेताओं का और महंगाई बढ़ रही है,
अख़बार भी वही है, घटना भी वही है,
कुछ बदल रहा है तो तारीख बदल रही है।

न जाने कब खबर बदलेगी, न जाने कब तस्वीरें
न जाने कब बाहर आएंगे इनक़लाबी शब्दों के ज़ख़ीरे,
थक गयी हैं आँखें ख़बरों सच्चाई खोजते-खोजते
अब तो अख़बार में खबर देने की जगह भी बिक रही है,
अख़बार भी वही है, घटना भी वही है,
कुछ बदल रहा है तो तारीख बदल रही है।

इस कविता के बारे में अपने विचार हमें बताये और शेयर करे। धन्यवाद।

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3 comments

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Satish Singh January 29, 2018 - 1:10 PM

पत्रक़ारिता के पेशे में ‘बिकाऊ’ ही ज़्यादा ‘टिकाऊ’ होता है…. देखते नहीं, कुछ टीवी डिबेटों में भ्रष्ट जोकरों के साथ/द्वारा बेसिर-पैर की बहस और उसमें सत्ताओं की बेशर्मीपूर्ण चाटुक़ारिता.

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh January 31, 2018 - 9:23 PM

बिलकुल सही बात कही आपने सतीश सिंह जी…

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Jaiprakash Rawat December 13, 2021 - 6:55 AM

धन्यवाद
जेपी रावत
संपादक
संदेश महल समाचार पत्र
9455542358
[email protected]
www.sandeshmahal.com

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