Home » हिंदी कविता संग्रह » प्रेरणादायक कविताएँ » शिक्षाप्रद बाल कविता :- झूठ के पाँव (पद्य कथा) | हिंदी कविता

शिक्षाप्रद बाल कविता :- झूठ के पाँव (पद्य कथा) | हिंदी कविता

5 minutes read

‘झूठ के पाँव’ (पद्य कथा) में लोमड़ी के माध्यम से झूठ बोलकर दूसरों को ठगने वाले लोगों से सावधान रहने की शिक्षा दी गई है। दुष्ट लोग मीठी-मीठी बातें बनाकर दूसरों को अपने जाल में फँसाना चाहते हैं। अतः हमको इनकी चिकनी चुपड़ी बातों में नहीं  आकर अपनी बुद्धि से सच्चाई को जानना चाहिए। जो लोग बिना सोचे समझे इन धूर्तों की बातों में आ जाते हैं वे अपना सब कुछ खो बैठते हैं। बालोपयोगी यह ” शिक्षाप्रद बाल कविता ” बच्चों को सोच समझ कर काम करने को प्रेरित करती है।

शिक्षाप्रद बाल कविता

शिक्षाप्रद बाल कविता

एक लोमड़ी वन के कोने
सोच रही थी खड़ी खड़ी,
नहीं सुबह से कुछ भी खाया
लगती मुझको भूख बड़ी।

कुछ ही देरी में सूरज भी
लगता है ढलने वाला,
नहीं अभी तक गया पेट में
पर मेरे एक निवाला।

इधर-उधर भी गई खोजने
हाथ नहीं पर कुछ आया,
लगा उसे तो आज मौत का
सिर पर मँडराया साया।

तभी एक मोटा – सा मुर्गा
पड़ा पेड़ पर दिखलाई,
और लोमड़ी पाने उसको
मन ही मन थी ललचाई।

गई पेड़ के पास लोमड़ी
शक्ल बना अपनी भोली,
बाँग लगाते उस मुर्गे से
कोमल स्वर में यह बोली।

“आओ मुर्गे भाई नीचे
क्यों बैठे इतने ऊपर,
आँख – मिचौली का खेलेंगे
आज खेल हम तुम मिलकर।

ऊब चुकी हूँ इस जंगल में
एकाकीपन मैं सहते,
उचट गया है मन जीने से
यहाँ अकेले अब रहते।

आज चाँदनी में खेलें लो
छुपम – छुपाई जी भरकर,
बहिन तुम्हारी बहुत दुःखी है
आओ नीचे शीघ्र उतर। “

उस मुर्गे को भी जीवन का
अनुभव था अच्छा खासा,
बोला-” जा री चतुर लोमड़ी
फेंक नहीं छल का पासा।

तेरी सब चतुराई जानूँ
बना नहीं मीठी बातें,
ऐसे ही करती आई हो
धोखे से तुम आघातें।

जाओ अपनी राह पकड़ कर
बनो जान की मत दुश्मन,
भरा हुआ तेरी बातों में
मात्र स्वार्थ का मैलापन। “

नहीं लोमड़ी वह निराश थी
इतना सब कुछ भी सुनकर,
दुष्ट लोग धोखा देने को
रहते हैं हर पल तत्पर।

कहा लोमड़ी ने मुर्गे से
“तुम तो हो बिल्कुल भोले,
नहीं जानते पूरी बातें
इसीलिए ऐसा बोले।

कुछ दिन पहले सब जीवों की
हुई एक थी पंचायत,
इसने ही दिलवाई भय से
हम सब जीवों को राहत।

नहीं सताएगा निर्बल को
अब वन में कोई प्राणी,
पंचायत की यही घोषणा
है हमसब की कल्याणी।

पंचायत का यह निर्णय है
वैर भाव अब सब छोड़ें,
मदद दुःखी की करने में भी
कभी न मुँह अपना मोड़ें।

तब से जीव सभी जंगल के
आपस में हिलमिल रहते,
प्रेम शांति के अब जंगल में
सबके मन निर्झर बहते।”

तभी बात यह कहते कहते
गई लोमड़ी वहीं ठिठक,
देख रही थी दूर दिशा में
कर ऊँची गर्दन भौंचक।

अरे शिकारी कुत्तों की ये
आवाजें लगती आई,
और लोमड़ी यही सोचकर
भागी बिसरा चतुराई।

मुर्गा भी हैरान हुआ क्यों
डरी लोमड़ी बेचारी,
पर कुत्तों पर नजर पड़ी तो
बात समझ आई सारी।

मुर्गा बोला – “रुको लोमड़ी
भाग रही क्यों यूँ डरकर,
उतर आ रहा मैं नीचे को
जाओ भी तुम तनिक ठहर।

कुत्ते हों या शेर किसी से
अब क्यों हम भला डरेंगे,
पंचायत के निर्देशों का
ये भी सम्मान करेंगे।”

आफत में वह फँसी लोमड़ी
किन्तु कहाँ रुकने वाली,
दीख रही थी उसे मौत की
आती ही छाया काली।

दौड़ लगाते बहुत जोर से
चिल्लाई वह जली – भुनी,
“पंचायत की बात इन्होंने
लगता तुम सम नहीं सुनी।”

मुर्गा तब हँसकर बोला था
“पाँव झूठ के कहाँ रहे,
ऐसे में तुम बहिन लोमड़ी
रह पाती कैसे ठहरे।”

चली गई जब धूर्त लोमड़ी
मुर्गा तब आया नीचे,
बच्चों ! हम भी बात और की
मानें ना आँखें मीचे।

पढ़िए :- सपनों की उड़ान पर कविता “आँखों में हैं सपने पलते”

‘ शिक्षाप्रद बाल कविता ‘ के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे लेखक का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढ़ने का मौका मिले।

पढ़िए अप्रतिम ब्लॉग की बेहतरीन बाल कविताएं :-

धन्यवाद।

आपके लिए खास:

Leave a Comment

* By using this form you agree with the storage and handling of your data by this website.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More

Adblock Detected

Please support us by disabling your AdBlocker extension from your browsers for our website.