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माँ पर दोहे :- मातृ दिवस पर विशेष रचना | Dohe On Mother In Hindi

by Sandeep Kumar Singh

इस बार माँ के बारे में कुछ भी नहीं कहूँगा। क्योंकि अब मेरे पास शब्द कम पड़ चुके हैं। तो आइये इस बार सीधी ये रचना ‘ माँ पर दोहे ‘ पढ़ते हैं।

माँ पर दोहे

माँ पर दोहे

सपने तज अपने सभी, सुखी रहे संतान।
चिंता वो सबकी करे, खुद से है अनजान।।

पोथी पोथी पढ़ गए , मिला एक यही ज्ञान।
इस सारे संसार से, माँ है बड़ी महान।।

बाहर क्यों ढूंढ़े फिरे, तुझे नहीं ये ज्ञान।
घर में माँ के वास से घर में ही भगवान।।

खुद की हालत पर कभी, माँ करती न मलाल।।
हर क्षण मन में सोचती , सुखी रहे बस लाल।

खिला दिए संतान को, बचे निवाले चार।
बिन खाए ही सो गयी, ऐसा माँ का प्यार ।।

स्वर्ग है उसके चरणों में, माँ है जिसका नाम।
माँ ही सारे तीरथ जग के, माँ ही है चारों धाम।।

मेरी सारी गलतियां, पल में जाती भूल।
माथे नित लगाऊं मैं, माँ चरणों की धूल।।

थकती न है वो कभी, कितना भी हो जाये काम।
परिवार सुखी बस देखकर, माँ को मिलता आराम।।

माँ की कदर जो न करे, कमा रहा वह पाप।
माँ का मूल्य उसे पता, खो बैठा जो आप।।

माँ से है रिश्ते सभी, माँ से है घर बार।
माँ ही देवी रूप है, माँ ही हर त्यौहार।।

रिश्ते हैं जग में कई, माँ सामान नहीं कोय।
जो न माँ की सेवा करे, बड़ा अभागा होय।।

सौ जन्म में भी न चुके, इतने माँ के उपकार।
माँ की सेवा जो करे, उसका हो जाए उद्धार।।

माँ ही शिक्षक, वैद्य भी, माँ है देवी अवतार।
जितना कहो कम पड़े, माँ की महिमा अपार।।

माँ जो तेरे घर में है, फिर काहे तू रोय।
माँ के आशीर्वाद से, काम सफल सब होय।।

घूम के सारा देख लिया, मैंने ये संसार।
माँ से बढ़ कर न करे, कोई भी इस जग में प्यार।।

ठंडी छाया वो बने, जो जीवन में कड़ी हो धूप।
काम वो सभी संवार दे, माँ भगवान् का दूजा रूप।।

चुप-चाप ही सब सह जात है, न कहती दिल की बात।
परिवार से रहता है जुड़ा, सदा माँ का हर जज्बात।।

कितने भी बड़े हो जाइए, लो कितना भी धन जोड़।
जहाँ मिले सुकून वो, स्थान है माँ की गोद।।

घर तो माँ से होत है, वर्ना रहे मकान।
सन्नाटा ऐसा रहे, मानो हो श्मशान।।

संत-साधू कितने हुए, दुनिया करे जिनका गुणगान।
उनको जिसने जन्म दिया, वो माँ है सबसे महान।।

पढ़िए :- माता पिता पर दोहे

‘ माँ पर दोहे ‘ रचना के बारे में अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।

पढ़िए अप्रतिम ब्लॉग पर ये बेहतरीन दोहा संग्रह :-

धन्यवाद।

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7 comments

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Gurpreet Singh March 27, 2020 - 1:57 AM

Maa hi asli bhagwan hai… Maa baap se badkar is duniya me Kuch nai hai.. Apne Jo b Likha bahut Acha Likha Mene Kuch din pehle hi meri maa ko khoya hai.. apki lines pad kr rongte khade ho gye ..

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शिव कुमार दीपक September 9, 2018 - 4:30 PM

संदीप भाई मां पर आप के दोहे पढे बहुत ही मार्मिक भाव बहुत सुंदर लेकिन खेद का विषय यह है एक भी दोहा दोहे के मीटर पैमाने में नहीं है कृपया आप दोहा छंद का अध्ययन करें उसके बाद दोहा लिखें या जो भी लिख रहे हैं उस पर छंद का नाम न लिखें जब तक उसकी सही जानकारी नहीं है यह छंद के साथ भद्दा मजाक है ।
✍ शिव कुमार 'दीपक'
सादाबाद ,हाथरस (उ०प्र०) भारत

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh September 17, 2018 - 10:24 PM

जी शिव कुमार जी आपको मेरे द्वारा व्यक्त किये गए भाव सुन्दर लगे मैं बहुत आभारी हूँ आपका। रही बात दोहों में गलती की तो उसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। मैंने बहुत प्रयास किया इसके बारे में समझने का और जानने का। परन्तु ऐसा कोई न मिला जो मेरी सहायता करे। फिर भी मैं प्रयासरत रहा और अपने ज्ञान के अनुसार मैंने कुछ जानकारी हासिल की। उसके बाद मैं सब दोहे सही कर रहा हूँ। लेकिन एक बात मुझे बुरी लगी वो ये की इन सब में एक दोहा

माँ से है रिश्ते सभी, माँ से है घर बार।
माँ ही देवी रूप है, माँ ही हर त्यौहार।।

बिलकुल सही था। जिस पर किन्हीं कारणों से आपकी नजर नहीं गयी शायद। मुझे प्रसन्नता होगी कि आप किसी की त्रुटी निकलते समय उसे यह भी ज्ञान दें की गलती को सुधारा कैसे जाए। आप जैसे लोग मार्गदर्शक बनेंगे तभी साहित्य का सही ढंग से प्रचार प्रसार होगा। धन्यवाद।

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Pranav kumar gautam May 13, 2018 - 4:33 PM

Ati sundar

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh May 13, 2018 - 5:21 PM

धन्यवाद प्रणव कुमार जी।

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Sourya February 23, 2018 - 8:16 PM

Masst.Gazab

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh February 24, 2018 - 1:54 PM

Thanks Sourya….

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