Home » हिंदी कविता संग्रह » जीवन पर कविताएँ » व्यथित मन पर कविता :- वीरान सी राह पर हूँ चल रहा पथिक सा

व्यथित मन पर कविता :- वीरान सी राह पर हूँ चल रहा पथिक सा

by ApratimGroup
3 minutes read

जब जीवन में हर तरफ निराशा ही फैली हो और सब साथ छोड़ने लगें। तब मन में एक अलग सी भावना जन्म लेती है। उन्हीं परिस्थितियों और सोच को बता रहे हैं हरीश चमोली जी व्यथित मन पर कविता में :-

व्यथित मन पर कविता

व्यथित मन पर कविता

वीरान सी राह पर
हूँ चल रहा पथिक सा
न कोई साथ लक्ष्य है
हुआ हृदय व्यथित सा,
अपना ही जीवन बना
सबके लिए है रसिक है
दर दर की ठोकरों का
प्रभाव है कुछ अधिक है।

कोलाहल है हो रहा
कैसा ये उठा जंजाल
अपनों के मायाजाल में
उठते है कई सवाल,
जिनके लिए था जीता मैं
बेगाने हुए वो लोग
चला हूँ किस ओर मैं
अब इसका नहीं ख्याल।

रेत ही रेत है फैली
धूप से है हर राह जली
रेगिस्तान सी जिन्दगी में
अब है छावं की चाह पली,
जिनके लिए कुर्बान हुआ
अब साथ वही न देते हैं
खुद के ही प्रश्नों के कारण
जिंदगी हो अनजान चली।

पानी की इक बूंद नहीं है
लगी अमिट है प्यास
अपनों के दिये घावों से
मन अब तक है निराश,
चिंगारी अंतर्मन में दिखी
हृदय में जली है ज्वाला
जीत की लौ अब शेष नहीं
फिर भी है जीत की आस।

जीवन के आघातों से
इक नई सोच मिली।
बाकी बची उम्मीदों से
भावनाएं मेरी बदली।
कुछ करने की चाहत
अब लहरों सी मचली।
वीरान सी इस राह पर
लक्ष्य की पहल चली।

रेतिले पदचिन्हों के संग
पुरानी यादें हूँ छोड़ रहा
खुद में नई उमंगें लाने को
कबसे खुद को झकझोर रहा,
भरने को अपने घाव पुराने
काँटों से मरहम लगाता हूँ
चमकने को सूर्य सा जग में
अंधेरों से खुद को मोड़ रहा।

पढ़िए टूटे दिल की कविताएं :-


harish chamoliमेरा नाम हरीश चमोली है और मैं उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जिले का रहें वाला एक छोटा सा कवि ह्रदयी व्यक्ति हूँ। बचपन से ही मुझे लिखने का शौक है और मैं अपनी सकारात्मक सोच से देश, समाज और हिंदी के लिए कुछ करना चाहता हूँ। जीवन के किसी पड़ाव पर कभी किसी मंच पर बोलने का मौका मिले तो ये मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी।

‘ व्यथित मन पर कविता ‘ के बारे में कृपया अपने विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। जिससे लेखक का हौसला और सम्मान बढ़ाया जा सके और हमें उनकी और रचनाएँ पढने का मौका मिले।

धन्यवाद।

आपके लिए खास:

2 comments

Avatar
Avinash अप्रैल 20, 2020 - 7:52 पूर्वाह्न

Apni abhi tak ki yatra ke pure darshan kr liye.
Aaj fir mn vyathit ho gya, dukh ka sagar umad pada hai,

Jeewan ki sachchai se purn roop se jood rahi hai yeh kavita, bahut hi badhiya

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh अप्रैल 23, 2020 - 5:34 अपराह्न

धन्यवाद अविनाश जी…

Reply

Leave a Comment

* By using this form you agree with the storage and handling of your data by this website.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More

Adblock Detected

Please support us by disabling your AdBlocker extension from your browsers for our website.