भारतीय समाज पर कविता :- आज के दौर में समाज में जो घट रहा है उस से कोई भी अनजान नहीं है। जिसे देख ओ अपने फायदे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। और इन में सबसे आगे हैं राजनीतिज्ञ और वो लोग जो धर्म के नाम पर लोगों को भड़काते हैं।
इन्हीं कारणों से समाज में अराजकता और अशांति फैली हुयी है। इंसानों को बाँट दिया गया है कभी जाती के आधार पर, कभी धर्म के आधार पर, कभी सरहद की लकीरों से और कभी किसी और ढंग से। ऐसी ही परिस्थिति को बयान करती ये कविता आप के सामने प्रस्तुत करने जा रहा हूँ भारतीय समाज पर कविता – मत बांटों इन्सान को ।
भारतीय समाज पर कविता
मानो राम रहमान को, मानो आरती और अजान को
मानो गीता और कुरान को पर मत बांटो इन्सान को।
ये धरती है सबकी एक सी, अम्बर भी है एक सा
है सूरत सबकी एक सी और लहू का रंग भी एक सा
फिर क्यों बांटे हैं मुल्क सभी? क्यों सरहद की लकीरें खींची हैं?
क्यों द्वेष, अहिंसा और नफरत से, ये प्यार की गलियाँ सींची हैं?
क्यों बाँट दिए हैं धर्म सभी? क्यों जात-पात का खेल रचा?
इसी के अंतर्गत ही अब, इन्सान में न ईमान बचा।
सरकारें वोटों की खातिर, शैतान का रूप हैं धार चुकी,
बची खुची जमीर जो थी अब उसको भी है मार चुकी,
वोटबैंक की राजनीति में, धर्म को सीढ़ी बनाते हैं,
पहले तो छिपते फिरते हैं फिर अपने रंग दिखाते हैं,
छोड़ के हाई सोसाइटी को दलित के यहाँ ये खाते हैं,
समाचार वाले भी उसको दलित बताकर खबर बनाते हैं,
अगर बराबर समझे तो क्यों घर न उनको बुलाते हैं,
बाद में मिलने वालों को भी मार के फिर यर भगाते हैं।
हरिजन, दलित, अनुसूची, पिछड़ी जाति शब्दों का क्यों प्रयोग करें?
क्यों न ये सरकारें इनको इंसानों के योग्य करें,
धर्म के नाम पे देखो कुछ तो बिन मतलब ही घमासान करें,
इंसानियत ही मकसद है सबका इस बात से फिर अनजान करें,
बांटनी है तो खुशियाँ बांटो, गरीबों में बांटों मुस्कानों को,
मानो एक इन्सान को पर अब तुम मत बांटो भगवान् को
मानो राम रहमान को, मानो आरती और अजान को
मानो गीता और कुरान को पर मत बांटो इन्सान को।
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धन्यवाद।
बेहतरीन 🙌
HAME APKI SABHI KAVITA SAYRI BAHUT PARSAND THANKS
Bhaiisaab आपकी लेखनी बहुत ही सुंदर है। उम्मीद है कि आप भविष्य में भी ऐसी ही कविताएं लिखे और अपना नाम रोशन करे।
धन्यवाद पियूष जी….
I appreciate those who has written this poem on humanity. Thank you. I hope you will write such type poems for changing India.
thanks…
Thanks chandrashekhr ji for appreciating our work…