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दशहरा पर कविता :- कथा ये श्री राम की | अधर्म पर धर्म की जीत कविता

by Sandeep Kumar Singh
2 minutes read

अधर्म पर धर्म की जीत यानि की दशहरा। इस त्यौहार के बारे में तो सारा संसार जानता है। रावण के अंत का कारण उसका खुद का अहंकार था। अहंकार इस बात का कि वही सबसे महान है। इसी नशे में चूर होकर ही रावण ने सीता जी को भगवान् राम को वापस नहीं किया। उसके बाद जो हुआ वह भी सब जानते हैं। बस हमने तो प्रयास किया है कि उन बातों को कविता के रूप में लिखने का। तो आइये पढ़ते हैं दशहरा पर कविता :-

दशहरा पर कविता

 

दशहरा पर कविता

अधर्म पर धर्म की
जीत का प्रमाण है
कथा ये श्री राम की
बहुत ही महान है

सतयुग में जन्म लेकर जब
रावण धरा पर आया था
इस धरा के वासियों पर
घोर संकट छाया था,
न जानता था अंत उसका
स्वयं का अभीमान है
कथा ये श्री राम की
बहुत ही महान है।

लेने को बदला बहन का
सीता को हर के लाया था
बहन की थी नाक कटी
अपना सिर कटवाया था,
बुरे कार्य का बुरा नतीजा
विधि का ये विधान है
कथा ये श्री राम की
बहुत ही महान है।

हनुमान ने भी जा लंका
आग से जलाई थी
रावण के सभी वीरों को
वाटिका में धूलि चटाई थी,
वर्षों पुरानी घटना के
उपलब्ध आज भी निशान हैं
कथा ये श्री राम की
बहुत ही महान है।

अंगद को देख कर रावण
फिर भी न समझ पाया था
बुद्धि गयी मारी थी
अंत निकट आया था,
ऐसे समय में सच्चाई
सुनते न किसी के कान हैं
कथा ये श्री राम की
बहुत ही महान है।

रणक्षेत्र में जब उतरे
रावण को राम ने मारा
बुराई किस तरह हारी
जानता है जग सारा,
यूँ तो ये बात है
कई युगों पुरानी पर
इसमें छिपा जीवन का
बहुत बड़ा ज्ञान है।

अधर्म पर धर्म की
जीत का प्रमाण है
कथा ये श्री राम की
बहुत ही महान है।

पढ़िए लेख :- रावण दहन सही या गलत

दशहरा पर कविता आपको कैसी लगी हमें बताना न भूलें। लिखें अपने विचार कमेंट बॉक्स में।

धन्यवाद।

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