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कबीर के दोहे मीठी वाणी | Kabir Ke Meethi Vani Par 8 Dohe


मीठी वाणी बोलकर हम संसार पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। वो भी बिना किसी वाद-विवाद या झगड़े के। मीठी भाषा में बात करना एक समझदार इन्सान की पहचान होती है। ये कोई आज की बात नहीं है। यह बात तो सदियों से कही जाती रही है। कबीर जे ने भी इस बारे में अपने दोहों के माध्यम से लोगों को मीठी वाणी बोलने के लिए प्रेरित किया है। आइये पढ़ते हैं कबीर के दोहे मीठी वाणी :

कबीर के दोहे मीठी वाणी

कबीर के दोहे मीठी वाणी

बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।

अर्थ :- यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक अनमोल रत्न है। इसे व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। और वह हर शब्द को ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है।

जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय।
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय।।

अर्थ :- संत शिरोमणि कबीरदास कहते हैं कि जैसा भोजन करोगे, वैसा ही मन का निर्माण होगा और जैसा जल पियोगे वैसी ही वाणी होगी अर्थात शुद्ध-सात्विक आहार तथा पवित्र जल से मन और वाणी पवित्र होते हैं। इसी प्रकार जो जैसी संगति करता है उसका स्वाभाव वैसा ही बन जाता है।

जिभ्या जिन बस में करी, तिन बस कियो जहान।
नहिं तो औगुन उपजे, कहि सब संत सुजान।।

अर्थ :- जिन्होंने अपनी जिह्वा को वश में कर लिया, समझो सारे संसार को अपने वश में कर लिया। क्योंकि जिसकी जिह्वा वश में नहीं है उसके अन्दर अनेकों अवगुण उत्पन्न होते है। ऐसा ज्ञानी जन और संतों का मत है।

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।

अर्थ :- न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है। जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है। सही समय आने पर आवश्यकता अनुसार ही अपने शब्दों का उपयोग अवश्य करना चाहिए।

शब्द सहारे बोलिए, शब्द के हाथ न पाव।
एक शब्द औषधि करे, एक शब्द करे घाव।।

अर्थ :- मुख से जो भी बोलो, सम्भाल कर बोलो। कहने का तात्पर्य यह कि जब भी बोलो सोच समझकर बोलो क्योंकि शब्द के हाथ पैर नहीं होते हैं। किन्तु इस शब्द के अनेकों रूप हैं। यही शब्द कहीं औषधि का कार्य करता है तो कहीं घाव पहुँचाता है अर्थात कटु शब्द दुःख देता है।

कागा कोका धन हरै, कोयल काको देत।
मीठा शब्द सुनाय के, जग अपनो करि लेत।।

अर्थ :- कौवा किसी का धन नहीं छीनता और न कोयल किसी को कुछ देती है किन्तु कोयल कि मधुर बोली सबको प्रिय लगती है। उसी तरह आप कोयल के समान अपनी वाणी में मिठास का समावेश करके संसार को अपना बना लो।

कुटिल वचन सबतें बुरा, जारि करै सब छार।
साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार।।

अर्थ :- संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि कटु वचन बहुत बुरे होते हैं और उनकी वजह से पूरा बदन जलने लगता है। जबकि मधुर वचन शीतल जल की तरह हैं और जब बोले जाते हैं तो ऐसा लगता है कि अमृत बरस रहा है।

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।

अर्थ :- कबीर दास जी कहते हैं, कि सभी को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को आनंदित करे। ऐसी भाषा सुनने वालो को तो सुख का अनुभव कराती ही है, इसके साथ स्वयं का मन भी आनंद का अनुभव करता है।

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