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बसंत पंचमी पर दोहे रूपी कविता में बसन्त से सम्बन्धित विभिन्न बिम्बों को उभारा गया है । बसन्त ऋतु के आगमन पर जहाँ जन – जीवन में नवीन ऊर्जा का संचार होता है, वहीं प्रकृति का रोम रोम भी हर्षित – सा लगता है । हमारा मन प्रसन्न हो तो हमें बसन्त आनन्द दायक लगता है, किन्तु मन जब दुःखी हो तो बसन्त में खिले फूल भी काँटों की तरह चुभने लगते हैं । वस्तुतः बसन्त का उल्लास हमारे मन की दशा पर निर्भर होता है ।
बसंत पंचमी पर दोहे
नहीं निराशा के रहे, भाव तनिक भी शेष ।
आ बसन्त ने कर दिया, ऊर्जा का उन्मेष ।।
वासन्ती संगत मिली, मुखर हो उठे मूक ।
मन -वीणा के साथ ही, गूँजी कोयल – कूक ।।
सोई जूही की कली, गई नींद से जाग ।
प्रिय बसन्त आ छेड़ता, निकट निराला राग ।।
मिल जाता है जब हमें, अपने मन का मीत ।
दिशा दिशा में गूँजते, तब बसन्त के गीत ।।
मन के अन्दर है चुभा, अगर दुःखों का शूल ।
अच्छे तब लगते नहीं, ऋतु बसन्त के फूल ।।
आया है ऋतुराज ले, फूलों वाला शाल ।
देख प्रेम भू के हुए, लाल टेसुए गाल ।।
पतझर अब भगता फिरे, आया देख बसन्त ।
टिक पाते कब दुष्ट हैं, जब सम्मुख हो सन्त ।।
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