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विरह की वेदना कविता – कैसे खुद की नजर ऊतारुँ | Virah Kavita


विरह की वेदना कविता – जब जीवन से कोई अपना दूर चला जाता है तो उसका मोह हमें दिन-रात सताता रहता है। ऐसे में ये आँखें उसी को तलाशा करती हैं। उसकी ही यादें दिल में धड़कन बन कर धड़कती रहती हैं। ऐसी ही कुछ भावनाओं को व्यक्त कर रही है ” विरह की वेदना कविता “

विरह की वेदना कविता

विरह की वेदना कविता

ना छूटे अब मोह तुम्हारा
कैसे खुद की नजर ऊतारुँ,
ना जग में है दूजा कोई
समझ के अपना जिसे पुकारुँ।

व्याकुल हृदय कष्टी काया
ना कर में है धन और माया,
किससे मन की बात कहुँ में
सबने अपना हाथ उठाया,
आगे पथ था पीछे पथ था
एक अनागत एक विगत था,
रुकी रुकी सी मेरी साँसें
ठहरा मेरा जीवन रथ था,
मिला ना तेरे जैसा कोई
जिसे देख मैं तुम्हें बिसारूँ।

ना छूटे अब मोह तुम्हारा
कैसे खुद की नजर ऊतारुँ।

निशा में आकर स्वप्न पठाये
किरण भेंट की जब मैं जागी,
दान दिया जन्मों-जन्मों तक
बिछड़ मिली ना मैं हतभागी,
तृष्णा ने ऐसा भटकाया
नगर ड़गर हर राह निहारी,
मैंने द्वार द्वार खटकाया
आके मिले सभी भिखारी,
दाता तुमसा एक नहीं था
किसके आगे हाथ पसारुँ।

ना छूटे अब मोह तुम्हारा
कैसे खुद की नजर ऊतारुँ।

जब तक तुमको देख ना लूं मैं
खिले ना चंदा जलती ना बाती,
गहन अमावस भटक रही है
आँगन में मेरे बिलखाती,
सागर से गंभीर हुए तुम
लिख कर पाती हरदम हारे,
गिनगिन के सब दिन पखवाडे़
घिसे उंगलियों के नख सारे,
द्वार खड़े अवसान पुकारे
बोलो कब तक पंथ निहारूँ,

ना छूटे अब मोह तुम्हारा
कैसे खुद की नजर ऊतारुँ।

ध्यान लगा रहता है मुझको
सुबह तुम्हारा शाम तुम्हारा,
हर आने जाने वाले से
मैंने पुछा काम तुम्हारा,
ऐसी फैली बात जगत मे
ढूँढें लेकर नाम तुम्हारा,
शंकित नजरों से देख रहे सब
पूछ रहे संबंध हमारा,
कैसे ये संदेह मिटाऊं
किस किस का मैं भ्रम निवारुँ।

ना छूटे अब मोह तुम्हारा
कैसे खुद की नजर ऊतारुँ।

रुप अनोखा रंग अनोखा
छविमान तुमसा ना कोई,
नजर मिलाई जिसने तुमसे
आँखें रह गयी खोई खोई,
श्रृंगार सा गीत तुम्हारा
हृदय बना गंगा की धारा,
उखड़े मन से कभी मिले जो
रुसवा होगा प्रेम हमारा,
ऐसा क्या है जिसे मान कर
अपना जग वालों पर वारुँ।

ना छूटे अब मोह तुम्हारा
कैसे खुद की नजर ऊतारुँ,
ना जग में है दुजा कोई
समझ के अपना जिसे पुकारुँ।

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प्रवीण

मेरा नाम प्रवीण हैं। मैं हैदराबाद में रहता हूँ। मुझे बचपन से ही लिखने का शौक है ,मैं अपनी माँ की याद में अक्सर कुछ ना कुछ लिखता रहता हूँ ,मैं चाहूंगा कि मेरी रचनाएं सभी पाठकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनें।

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धन्यवाद।

5 Comments

    1. अद्भुत रचना आदरणीय सर जी
      आपकी रचना
      विरह की वेदना
      के माध्यम से आपने बहुत ही मार्मिक संदेश दिया है।
      हृदय से बहुत बहुत शुभकामनाएं।

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