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Basant Ritu Par Kavita – ‘बसन्त’ कविता में ऋतुराज बसन्त के आने पर प्रकृति में आए अनुपम निखार का चित्रण किया गया है। बसन्त के आते ही सर्दी का प्रकोप कम हो जाता है और मौसम सुहाना हो जाता है। खेतों में जौ, चना, मटर और गेहूँ की फसलें लहलहाने लगती हैं। सरसों अलसी फूलों से लद जाते हैं।आम बौराने लगता है । टेसू खिल उठता है । भीनी-भीनी हवा चलने लगती है। यह मनभावन बसन्त कुछ दिनों के लिए ही आता है, अतः हमें इसका भरपूर आनन्द लेकर जीवन को सुन्दर बनाने का प्रयास करना चाहिए। तो आइए पढ़ते हैं ( Basant Ritu Par Kavita ) आया बसन्त छाया बसन्त :-
Basant Ritu Par Kavita
बसंत ऋतु पर कविता
आया बसन्त छाया बसन्त,
मन को सबके भाया बसन्त।
किरणें सूरज की हुई प्रखर,
धरती का आया रूप निखर।
जन – जीवन को कम्पित करती,
निर्धन के मन भय को भरती।
तरु को पतझर देने वाली,
ऋतु सर्दी का हो गया अन्त।
आया बसन्त छाया बसन्त,
मन को सबके भाया बसन्त।
जौ चना मटर गेहूँ लहरे,
सरसों अलसी हैं सुमन भरे।
आमों पर बौर लगे खिलने,
महुए के फूल लगे झरने।
खुशबू के झौंके आते हैं,
छाया है मद – सा दिग्-दिगन्त।
आया बसन्त छाया बसन्त,
मन को सबके भाया बसन्त।
फागुन की शीतल हवा चली,
खिल गई चमन की कली-कली।
लगता है सब कुछ मनभावन,
हो गए हृदय सबके पावन।
टेसू भी भगवा वस्त्र पहन,
लगता वन में ज्यों खड़ा सन्त।
आया बसन्त छाया बसन्त,
मन को सबके भाया बसन्त।
कोकिल की पंचम तान मधुर,
आह्लादित करती नीरव उर।
जब जब बसन्त यह आता है,
नीरस जीवन मुस्काता है।
पर कुछ दिवसों का पाहुन यह
परदेशी – सा है बना कन्त।
आया बसन्त छाया बसन्त,
मन को सबके भाया बसन्त।
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