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जीवन में रिश्तों का बहुत महत्त्व है। रिश्तें हैं जो हमें हौसला देते हैं। हमारे साथ सुख-दुःख बांटते हैं। इन्हीं में एक रिश्ता है बेटी और माता-पिता का। माता-पिता बेटियों को बहुत ही प्यार से पालते हैं। उसे समय-समय पर दुनिया के बारे में अवगत कराते हैं। इस कविता में भी एक बेटी को बदली हुई परिस्थितियों में भी निडर और सावधान रहने को कहा गया है। अब बेटियों को औरों के लिए ही नहीं अपने लिए भी जीना होगा। उन्हें कर्त्तव्यों के साथ अपने अधिकार भी जानने होंगे। अनुचित बात का विरोध करने का साहस उत्पन्न करना होगा। समाज में बढ़ते अपराधों का सामना करने के लिए सुरक्षा के उपाय भी अपनाने होंगे। आज के समय में बेटियों का स्वावलम्बी बनना आवश्यक है। आइये पढ़ते हैं इसी संदर्भ में “ बेटी दिवस पर कविता ”
बेटी दिवस पर कविता
सुन री बिटिया जरा ध्यान से
मेरी भी यह बात,
समय नहीं अब पहले जैसा
बदल गए हालात।
जगह-जगह पर घूमें रावण
बदल बदल कर वेश,
बच के रहना कहीं न दें ये
अपहरणों का क्लेश।
आसमान में जब भी ऊँची
बिटिया भरो उड़ान,
बाज कहाँ बैठे हैं छुपकर
हो इसका भी भान।
अपने को कम नहीं समझना
हो खुद पर विश्वास,
अपनी रक्षा की बातें भी
तुम्हें सीखना खास।
अनुचित कोई बात लगे तो
उसका करो विरोध,
कर्तव्यों के साथ हकों का
हो तुमको अवबोध।
नहीं माँगनी है औरों से
तुम्हें दया की भीख,
शीश उठाकर इस दुनिया में
तनकर जीना सीख।
इतना याद रखो औरों सम
तुम भी हो इंसान,
बिटिया तुम्हें बनानी है अब
अपनी नव पहचान।
इस कविता का विडियो यहाँ देखें :-
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1 comment
Aap ki kavita ne meri chetana me betio ki mahtavata ko sanman dete hue unko jagrukata se jine ka aahavan kiya.Anumodana