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नशा मुक्ति पर कहानी- बुझता चिराग :- नशा और युवा पीढ़ी


आज कल हमारे देश में नशे (Drug Addiction) कि समस्या बढ़ती ही जा रही है। सिगरेट, तम्बाकू और गुटखे जैसे नशे तो आम ही देखे जा सकते हैं। लेकिन यही नशे कई बार आगे चलकर विकराल रूप धर लेते हैं और बहुत सी समस्याएँ कड़ी कर देते हैं। जिसका सामना उनके परिवार वालों को करना पड़ता है। इसी लिए मैंने नशा मुक्ति पर कहानी लिखने कि कोशिश की है।

नशा मुक्ति पर कहानी | बुझता चिराग – नशा और युवा पीढ़ी

नशा मुक्ति पर कहानी- बुझता चिराग :- नशा और युवा पीढ़ी

अमावस्या की रात थी। हॉस्टल के सभी कमरों की लाइटें बंद हो चुकी थीं। मौसम में कुछ ठंडक थी। ठंडी हवा चल रही थी। तीसरी मंजिल के आठवें कमरे की खिड़की पर समर काले आसमान की तरफ देख रहा था। तभी दरवाजा खुलने की आवाज आई।

“अरे! समर तू सोया नहीं अभी तक?”
समर ने उस शख्स की और देखा और फिर आसमान में नजर गड़ा ली।
“अबे मैं कुछ पूछ रहा हूँ। तू कौन सा मंतर पढ़ रहा है?”
“क्या मेरी जिंदगी में कभी पूर्णिमा का चाँद चमकेगा या यूँ ही अमावस्या की काली अँधेरी रात छायी रहेगी?”
“हाहाहा………… ये पूर्णिमा कौन है समर ? तूने कभी बताया नहीं?”

समर ने चिराग की तरफ देखा। चिराग उसका रूममेट है। दोनों को एक साथ रहते एक साल हो गए हैं। चिराग और समर दोनों इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं और एक साथ एक ही कमरे में रहते हैं। चिराग इस एक साल में काफी बदल गया था। वह ड्रग्स लेने लग गया था। इसका कारण तो समर को नहीं पता था। समर ने उसे कई बार समझाया भी कि ऐसी करना अच्छी बात नहीं हैं लेकिन चिराग कुछ सुनने को तैयार ही नहीं था। आज भी चिराग ड्रग्स लेकर आया था।

“तुझे होश आये तब पता चलेगा ना। 24 घंटे तो तू किसी और ही दुनिया में रहता है।“
“क्या हुआ यार? इतना उदास क्यों लग रहा है?”
“कुछ नहीं बस ऐसे ही”
“अपने भाई को नहीं बताएगा?”

समर अब भी खिड़की से आसमान को ताक रहा था। मानो वो किसी चीज के होने का इंतजार कर रहा हो। सोच रहा हो कि उसकी उलझी हुयी जिंदगी को सुलझाने वाला भी कोई चाँद इसी अमावस्या के बाद आएगा।

“ अरे ओ देवदास की औलाद बताता क्यों नहीं क्या हुआ? जल्दी बता नहीं तो नींद आ जाएगी मुझे।”
चिराग ने दुबारा समर से पूछा।
“तू तो वैसे भी नींद में रहता है। कुछ बताने का फ़ायदा क्या।“
“चिराग जो बेड पर बैठ हुआ था जाकर समर के पास खड़ा हो गया और बोला,

“ ये अमावस की काली रात देख रहा है तू। चाँद अपनी पूरी चांदनी एक ही दिन बिखेर पाता है और वो भी सूरज से रोशनी उधार लेकर। ऐसी जिंदगी का क्या करना जो किसी से उधार लेकर जी जाए। सच्चाई ये है की अमावस्या का वजूद सच्चा है।“
इतना कहकर चिराग समर की पीठ थपथपाता हुआ बेड पर लेट जाता है और कहता है,

“इसीलिए मैं इस अमावस्या के अंधेरे को पसंद करता हूँ और एक नींद में रहता हूँ……….. चल छोड़ ये बता तू इतना परेशान क्यों है आज?”
समर ने खिड़की पर रखे हुए हाथ हटाये और चिराग के पैरों के पास उसकी तरफ पीठ कर के बैठ गया। फिर उसने अपना दर्द बयां करना शुरू किया,

“एक सिंगर बनने की तमन्ना मेरी बचपन से थी। स्कूल में भी सब मेरी आवाज का लोहा मानते थे। कहते थे की तू जरूर एक दिन दूसरा मोहम्मद रफ़ी बनेगा। मैंने तो स्कूल में सिंगिंग क्लासेज भी लेना स्टार्ट कर दिया था। मैंने दिन रात एक कर दिया और इसी चक्कर में मैं फाइनल एग्जाम में फेल हो गया। पिता जी को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने मेरी सिंगिंग क्लासेज बंद करवा दी। मेरी हर तरह की एक्स्ट्रा एक्टिविटी बंद कर दी गयी। दोस्तों से मिलना-जुलना भी बंद करवा दिया और……”

इतना कह कर वह जैसे ही चिराग की तरफ मुड़ा तो उसने देखा कि चिराग सो चुका था। ये देख समर चुप हो गया और लेट गया। पुरानी बातें सोचते-सोचते न जाने उसे कब नींद आ गयी।

सुबह हुयी समर तैयार हो रहा था और चिराग अभी सो कर भी नहीं उठा था।
“उठ…उठ ना, देख सूरज सर पर चढ़ आया है।”
“सोने दे न….”
“अबे उठ क्लास अटेंड करनी है या नहीं?”
“ओ तेरी! मैं तो भूल ही गया था। तू रुक अकेले मत जाना अमीन अभी आया दो मिनट में…”
कहता हुआ चिराग बाथरूम में चला गया।

समर बैठा किसी अनजानी दुनिया में खो रहा था। उसे याद आ रहा था अपना घर कैसे उसके पिता जी उस से हर पल यही उम्मीद करते थे कि वह अपनी पढाई पर ध्यान दे और उनका नाम रोशन करे।

कई बार उसे ना पढने के कारण पिता के गुस्से का सामना करना पड़ता। माँ भी पिता कि कई बात को नहीं काटती थी। समर कि बड़ी बहन उसे बहुत प्यार करती थी। उसे विश्वाश था कि वो किसी दिन सफलता जरुर प्राप्त करेगा। जब कभी पिता जी गुस्सा होते थे तो माँ की जगह उसकी बड़ी बहन उसे समझाती थीं,

” अरे! तू फिर से रोने लगा। तुझे कितनी बार समझाया है कि पिता जी तेरे भले के लिए तुझ पर गुसा करते हैं।”
“कैसा भला ? इस तरह डांट खा कर कौन सा भला हो रहा है मेरा? “,
अपनी बहन कि बात को कटते हुए समर ने कहा।

“गुस्सा इसलिए होते हैं कि उन्हें तुमसे कोई उम्मीद है। उन्हें भरोसा है कि तुम ऐसा कर सकते हो। अगर उन्हें ये लगता कि तुम कुछ नहीं कर सकते तो वो तुम्हें कभी कुछ ना कहते। और वैसे भी भावनाएं तो अपनों के सामने ही प्रकट की जाती हैं।”

अपनी बहन कि बातें सुन समर के पास बोलने के लिए कुछ न बचता। बड़ी बहन होने के नाते उसे पता था कि किस स्थिति को कैसे संभालना है।
“समर……समर…. अबे मर तो नहीं गया ?”

समर के अतीत के ख्यालों कि दुनिया को इस आवाज ने तोड़ दिया। उसने देखा तो पास में ही चिराग खड़ा था। समर ख्यलो९न में इतना खो गया था कि उसे पता ही नहीं चला चिराग कब तैयार हो कर उसके सामने खड़ा हो गया।

“कुछ नहीं यार ऐसे ही बस..”
“तो फिर चलें?”
” हाँ जरुर।”
दोनों क्लास अटेंड करने के लिए चल पड़े।

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क्लास ख़तम हुयी। दोनों कॉलेज के बीचों बीच बनी बास्केटबाल कि सिमेंटेड ग्राउंड के किनारे बनी कुर्सियों पर बैठ गए। चिराग ने समर को दो मिनट बैठने को कहकर कहीं चला गया। समर ने पीछे मुड़ कर देखा तो चिराग उसी कॉलेज में पढने वाले रॉकी से मिलने गया था।

रॉकी पिछले ५ सालों से इस कॉलेज में पढ़ रहा है। वो पास तो हो नहीं पा रहा या होना नहीं चाहता इस बारे में किसी को कुछ नहीं पता है । लेकिन पिछले पांच सालों में उसने अपनी ऐसी पहचान बना ली थी जिसके बारे में किसी को न ही पता चले तो अच्छा है। चिराग जल्द ही मिल के समर के पास वापस आ गया।

“चिराग तुझे इस सब में क्या मज़ा आता है? तुझे पता है न इन सब चीजों से कितना नुक्सान होता है?”
“समर यार तू फिर लेक्चर मत स्टार्ट कर देना। पहले ही क्लास अटेंड कर के मैं बहुत बोर हो गया हूँ ।”
“पर सुन तो…..”
“शाम को सुनता हूँ अभी मुझे कहीं जाना है शाम को मिलते हैं हॉस्टल में।”
कहता हुआ चिराग वहां से चला गया।

समर सोच रहा था उसका भविष्य कहाँ जाएगा। वो अभी भी अंधकार के एक दरिया में डूब रहा था जहाँ स उसे बहार निकलने के लिए कोई किनारा नजर नहीं आ रहा था।

शाम को समर कुर्सी पर बैठा असाइनमेंट तैयार कर रहा था।  तभी चिराग लडखडाता हुआ कमरे के अन्दर पहुंचा।
“चिराग संभाल के…..”
गिरते हुए चिराग को समर ने संभालते हुए जोर से कहा।
“संभालने को तू है ना…”

समर ने उसे आराम से बेड पर लिटाया।
“क्यों करता है ये सब जब तू खुद पर कण्ट्रोल नहीं रख पाता ?”
“कण्ट्रोल न रहे इसीलिए तो ये सब करता हूँ।”
“मतलब क्या है तेरा ? एससी कौन सी बात है जो तू खुद पर कण्ट्रोल नहीं रखना चाहता?”
“छोड़ न तू ….पढ़…..मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर”
“नहीं मुझे जानना है ऐसी कौन सी बात है जो तू ये सब करता है?”

“बहुत छोटा था मैं जब मुझे  स्कूल के हॉस्टल  में मुझे मेरे माता पिता अकेला छोड़ आये थे उस टाइम मुझे उनकी जरुरत थी। सबके माता पिता उन्हें मिलने आते थे लेकिन मेरे माता पिता सिर्फ रिजल्ट वाले दिन ही आते थे। छुट्टियों में भी मेरी स्पेशल क्लासेज लगा दी जाती थीं। अब जब कॉलेज में एडमिशन ली तो फिर होस्टे में डाल दिया। उस अकेलेपन का दर्द अभी मेरे सीने में उठता है और मुझे महसूस करवाता है कि मई इस दुनिया में अकेला हूँ बिलकुल अकेला।”

“चुप कर तूने आज ज्यादा चढ़ा ली है। सो जा सुबह बात करते हैं।”
चिराग नशे कि आगोश में था इसलिए जल्दी ही सो गया।वहीँ समर के दिमाग में एक अजीब सी जंग छिड़ चुकी थी। वो समझ नहीं पा रहा था कि क्या इन सब से निजात पाने का यही  एक तरीका है। घटा तो उसके साथ भी कुछ ऐसा ही था।

वो रात और लम्बी होती जा रही थी। इस समय उसे एक ही इंसान दिख रहा था जो उसके सवालों के जवाब दे सकता था। समर ने अपनी बड़ी बहन को फ़ोन किया। काफी रात में फ़ोन आने से एक पल को उसकी बहन डर गयी । लेकिन सारी बात सुनने के बाद उसकी बहन ने उसे एक बात बोली,

“हम किसी समस्या का हल तब तक नहीं ढूंढ सकते जब तक वह समस्या विराट रूप नहीं धारण कर लेती या फिर हमें उसको हल करने कि जरुरत नहीं पड़ती। जब तक हमे हल ढूँढने का कारण नहीं मिल जाता। मुसीबतें हमें नहीं हम मुसीबतों को पकड़ कर रखते हैं अगर उनका हिसाब किताब समय के साथ साथ खतम कर दें तो हम हमेशा खुश रहेंगे”

फिर बात कर के  समर ने फ़ोन रख दियाव् उसने तो हल ढूँढने के लिए  फ़ोन किया था लेकिन उसके सामने टॉप एक और समस्या खड़ी हो गयी। उसके पास तो कारण था कि वो अपने दोस्त को समर ने अपना लैपटॉप ऑन किया और कुछ ढूँढने लगा। मानो उसके सवालों का जवाब वो लैपटॉप ही देने वाला था।

“ओये ये क्या हुआ ?”
एक बाल्टी पानी पड़ने के बाद चिराग हडबडा कर उठा
“उठ जल्दी तैयार हो हमें कहीं जाना है।”
“जाना हैं तो जान लेगा क्या ? वैसे जाना कहाँ है ?”
“चल उठ बाद में बताता हूँ।”

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कुछ ही देर में चिराग तैयार हो गया और समर के साथ एक अनजाने सफ़र पर निकल गया।
“अबे चल कहाँ रहा है ये तो बता?”
“तुझे कहा तो चुपचाप बैठा रह।”

कुछ ही देर में कार झुग्गियों के पास जाकर रुकी। समर और चिराग कार से बाहर निकले।
“ये कहाँ ले आया है ?”
” अभी बताता हूँ ।”

समर आगे आगे जाने लगा। चिराग पीछे अपनी नाक पकड़ता हुआ जा रहा था। एक झुकी हुयी झुग्गी के पास जाकर समर रुक गया।
“अतीत का घर कौन सा है ?”
वहां खड़ा एक आदमी उनकी तरफ हैरानी भरी नजरों से देखने लगा। फिर उसने हाथ से सामने वाले घर कि तरफ इशारा किया। समर धन्यवाद् कहता हुआ आगे बढ़ा।

“कोई है ?”
समर ने आवाज लगायी।
“अबे ये कहाँ ले आया है? तेरा कोई रिश्तेदार रहता है क्या यहाँ?”

चिराग ने समर से सवाल किया तभी अन्दर से एक बुजुर्ग औरत बाह्रर निकली।
“किससे मिलना है आपको?”
“मुझे अतीत के बारे में बात करनी है?”
“देखिये हमारा उस से कोई रिश्ता नहीं था। उसने हमे सड़क पर ला छोड़ा है।”
“देखिये आप गलत समझ रही हैं। मुझे आपकी मदद चाहिए ताकि कोई दूसरा अतीत दुबारा जन्म ना ले।”
समर ने उन्हें टोकते हुए कहा।

चिराग उन दोनों कली तरफ हैरान होकर देख रहा था। वहीँ बात करते हुए चिराग और समर को पता चला कि अतीत उस बूढी औरत का बेटा था। उस औरत ने बताया कि कभी उनका एक हँसता खेलता परिवार हुआ करता था। करोड़ों की जमीन थी। काम करने के लिए बहुत सारे नौकर थे। लेकिन नशे ने उनकी इन खुशियों पर ऐसा ग्रहण लगाया जिसके अँधेरे में वो आज तक भटक रहे हैं।

अतीत के नशे की लत में पड़ने के कारण वो  पैसे बर्बाद करने लगा। उसकी आय्याशियाँ दिन-ब-दिन बढती ही जा रहीं थीं। अतीत के पिता ने उसे कई बार समझाने कि कोशिश कि लेकिन अतीत नहीं समझा। पूरे इलाके में जो उनका रौब था वो ख़तम हो रहा था। और बनी बनायी इज्ज़त सरेआम उनका अपना ही वारिस सरेआम लुटा रहा था। इसी सदमे में उसके पिता ने आत्महत्या कर ली थी।

पिता क जाने के बाद उनके घर कि हालत और खर्राब हो गयी। अब अतीत पहले से ज्यादा नशेडी हो गया था। अब उस पर कोई दबाव नहीं था। इसलिए वो बिना किसी झिझक पैसे उड़ाने लगा। धीरे-धीरे उनकी सारी जमीन बिक गयी और वे सड़क पर आ गए।

नशा ज्यादा करने के कारण एक दिन अतीत इस दुनिया को छोड़ कर चला गया। उसके पीछे रह गयी उसकी माँ और एक बहन। जो अब इस झुग्गी में रहते हैं। और भीख मांग कर अपना गुजारा करते हैं।

चिराग कि आँखों में ये सब सुन आंसू आ गए और वो उसी वक़्त वहां से बाहर आ गया। थोड़ी ही देर में समर भी बात ख़तम कर वहां बाहर आ गया।

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“क्या हुआ? तेरी आँखों में ये आंसू कैसे?”
चिराग कुछ बोल नहीं पाया। और समर के गले लग फूट-फूट कर रोने लगा।

“जिसके पास परिवार है उसे उनका ख्याल नहीं और जिनके पास नहीं है वो प्यार को तरसता है। कैसी दुनिया है ये भगवान की?’
“ऐसी ही दुनिया है। भगवान खुद नहीं आते किसी का दुःख बांटने। वो किसी न किसी को भेजते हैं।”
“तो फिर इनके लिए किसी को क्यों नहीं भेजा?”
” भेजा है ना तुझे।”

“मुझे?” चिराग ने हैरान होते हुए पूछा।
“हाँ, तू कहता है न तुझे बचपन से प्यार नहीं मिला। तो अब वक़्त आ गया है। ”
“कैसे?”
“तुझे इनकी मदद करनी होगी।”

“लेकिन मै कैसे कर सकता हूँ।”
“क्या तू चाहता है कोई और अतीत पैदा हो जो अपनी मान और बहन को इस हालत में छोड़ कर चला जाए।”
“लेकिन मैं क्या कर सकता हूँ ?”

“तुम ड्रग्स लेना छोड़ दो।”
“पागल हो गया  है क्या ? इसीलिए तू मुझ्र यहाँ लेकर आया था ?”

चिराग वहां से जाने ही लगा था कि समर ने उसे उसका हाथ पकड़ा और अन्दर उस बूढी औरत के पास ले गया। उसे बताया कि ये भी नशा करता है। वो बूढी औरत उसी वक़्त आंसुओं से भीग गयी। चिराग के दिल में एक अजीब सा दर्द उठा।

“मत रो माँ, मेरी फ़िक्र क्यूँ  करती है ?”
“तेरी नहीं बीटा तेरी माँ की फ़िक्र कर रही हूँ।”
“उन्हें मेरे होने न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।”
“लेकिन उन मांओं  को तो पड़ता है जिनके अतीत उनके लिए एक बदनुमा दाग बन चुके हैं या बनने  वाले हैं।”

ये सुनकर चिराग का दिमाग खाली हो गया। वो चुपचाप वहां से बाहर आ गया। थोड़ी देर बाद कार स्टार्ट हुयी और चल पड़ी। लेकिन चिराग चुप था। जैसे उसे किसी ने रेगिस्तान कमे अकेला छोड़ दिया हो और उसे पता न चल रहा हो कि किधर जाना है। उसके दिमाग में बस एक ही बात घूम रही थी।

“लेकिन उन मांओं  को तो पड़ता है जिनके अतीत उनके लिए एक बदनुमा दाग बन चुके हैं या बनने  वाले हैं।”
दोनों हॉस्टल पहुंचे। रात हो चुकी थी। दोनों बिना बात किये सो गए।

ठक-ठक…….ठक-ठक
किसी ने दरवाजा खटखटाया। समर लेता हुआ था उसने एक आँख खोल कर देखि तो उसका दोस्त राकेश आया था।
“अरे राकेश, तू इतनी सुबह यहाँ कैसे ?”
“तू यहाँ सो रहा है तुझे पता भी है कॉलेज कैंपस में आज क्या हुआ?”
“क्याहुआ, जो तू इतनी सुबह आ गया ?”
“चिराग……”

चिराग का नाम सुनते ही समर कि ऑंखें अपने आप खुल गयीं। वो घबरायी हुयी आवाज में बोला,
“क्या हुआ चिराग को?”
“हुआ कुछ नहीं, उसने आज रॉकी को ड्रग्स बेचने के मामले में पुलिस को पकडवा दिया।”

समर को अपने कानो पर विश्वास नहीं हो रहा था। वो  बिना कुछ बोले कॉलेज कैंपस में पहुँच गया। उसने देख सामने पुलिस चिराग से बात कर के रॉकी को पकड़ कर ले जा रही थी। तभी समर चिराग के पास पहुंचा।

“ये क्या हो गया तुझे?”
“मैं नहीं चाहता कि मेरे होते हुए कोई दूसरा अतीत पैदा हो।”

इतना सुनते ही समर कि आँखों से आंसू बहने लगे। समर अपनी जंग जीत चुका  था । उसने अतीत कि उदाहरण से सबक देते हुए एक चिराग को बुझने से बचा लिया था।

मित्रों इसी तरह हमारे देश में कई अतीत और कई चिराग नशे कि आगोश में खो कर अपने परिवार को एक अंधकार में छोड़ जाते हैं। बीत चुके अतीत के लिए हमारे पास पछतावा ही है लेकिन अभी भी हम कई घरों के चिरागों को बुझने से बचा सकते हैं।

तो आइये हम खुद से वादा करें कि  26 जून को मनाये जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस के अवसर पर ही नहीं अपितु हर दिन नशे के खिलाफ अपनी जंग जारी रखेंगे और जितना हो सके लोगो को इसके बारे में जागरूक करेंगे। इस नशा मुक्ति पर कहानी पर अपने विचार देना ना भूलें।

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धन्यवाद।

11 Comments

  1. धन्यावाद भाई जी आप की कहानी को पढ कर आँखों में आँसू आ गये। परमेश्चवर आप को ओर भी इस तरह की कहानीयों को लिखने की बुद्धि दे तांकि आप की कहानियां किसी की नाश होती जिन्दगी को बचा सकें। एक बार फिर आप का दिल से धन्यावाद।

  2. नशा मुक्ति पर बहुत ही बेहतरीन कहानी की प्रस्‍तुति। भारत में नशा मुक्ति आसान काम नहीं है। इसमें सरकारों और लोगों की इच्‍छाशक्ति की बहुत सख्‍त जरूरत है।

    1. धन्यवाद जमशेद आज़मी जी, काम तो वाक़ई आसान नहीं है लेकिन जमीर जाग जाये तो क्या नहीं हो सकता। जरुरत है तो कुछ लौ जलाने वालों की मशालें अपने आप जल उठेंगी।

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