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‘गुस्सा’ ये एक ऐसा शब्द है जिस पर सब नियंत्रण पाना चाहते हैं या फिर इस से दूर रहना चाहते हैं लेकिन मनुष्य की प्रवृत्ति ऐसी है कि वह किसी भी चीज पर जल्दी नियंत्रण नहीं कर सकता। जब तक वह कठिन साधना नहीं करता। जब गुस्सा आता है तो ये एक उर्जा का स्वरुप होता है। शक्ति गुस्से की भी होती है।
यह आवश्यक नहीं कि इस शक्ति का उपयोग गलत ढंग से किया जाए। इस प्रकार हमें हानि भी पहुँच सकती है। वहीं अगर हम इस उर्जा का उपयोग समझदारी से करें तो अपनी जिंदगी को संवर सकते हैं और वो मुकाम हासिल कर सकते हैं जिसके बारे में किसी ने सोचा भी न हो।
विश्व में ऐसे कई उदाहरण हैं जिसमें गुस्से का प्रयोग कर कई लोगों ने सफलता हासिल की। उन्हीं लोगों में से एक थे “सर गंगाराम”। एक घटना ने उनके पूरे जीवन को बदल कर रख दिया। क्या थी वो घटना और कैसे बदला उस घटना ने उनका जीवन। आइये जानते हैं इस घटना के बारे में कहानी ‘ शक्ति गुस्से की ‘ और जानें उसके परिणाम के बारे में :-
शक्ति गुस्से की
आज़ादी से पहले की बात है। गंगाराम नाम के एक व्यक्ति थे। वह बहुत पढ़े लिखे थे। बस अब जरुरत थी तो एक नौकरी की। उनके घर वालों ने अपने पंडित से उनकी सिफारिश की कि कहीं जान पहचान वाले के यहाँ नौकरी लगवा दें। पंडित ने कहा कि उनके जान पहचान में साहब का एक चपड़ासी है। उस से बात करने पर नौकरी का जुगाड़ हो सकता है। अगले दिन जाना निश्चित हुआ। दोनों जाकर उस चपड़ासी से मिले।
पंडित ने उस चपड़ासी से कहा कि इहें साहब से मिलवा कर किसी नौकरी पर लगवा देना। गंगाराम को लेकर वह चपड़ासी साहब के दफ्तर में जा पहुंचा। साहब के आने का समय हो रहा था। गंगाराम को वहां बैठा कर वह चपड़ासी साहब के कमरे में गया।
“तुम यहाँ बैठो, साहब जैसे ही आते हैं मैं उन्हें तुमसे मिलवा दूंगा।”
कहते हुए चपड़ासी साहब के लिए पानी लेने चला गया। गंगाराम बहुत ही सीधे स्वाभाव के थे। चपड़ासी के जाने के बाद उन्हें समझ नहीं आ रहा थे कि कहाँ बैठना है। तो बिना ज्यादा सोचे-विचारे वह जाकर साहब कि कुर्सी पर बैठ गये।
मन में एक अजीब सी उत्सुकता और दिल में घबराहट थी। साहब उस इलाके के चीफ इंजिनियर थे। वहां बैठे अभी कुछ ही समय हुआ था कि चीफ इंजिनियर साहब आ गए। हर तरफ शांति पसर गयी। दरवाजे पर दस्तक हुयी और अचानक,
“कौन हो तुम?” पूछने वाला और कोई नहीं खुद साहब ही थे। लेकिन गंगाराम उन्हें जानते तक नहीं थे तो उन्हों ने विनम्र स्वाभाव से जवाब दिया, “जी….जी मैं नौकरी के लिए आया हूँ।”
“तो तुम मेरी नौकरी लेने आये हो। निकल जाओ यहाँ से। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुयी यहाँ बैठने की? जिस आंगन में तुम्हारी घुसने की औकात नहीं है वहां आकर तुम कुर्सी पर बैठ गए। नौकरी छोड़ो तुम्हारे खानदान में आज तक किसी ने ये कुर्सी देखी है?” और न आने क्या-क्या कहते हुए साहब ने उसे धक्के देकर बहार निकल दिया।
इस अपमान से व्यथित होकर वह बाहर जाकर रोने लगे। मन में जो उत्सुकता थी वो अब कुंठा में बदल गयी। ह्रदय की गति अब घबराहट के कारन नहीं अपितु क्रोध के कारन तेज चल रही थी। मन में बदले की भावना घर कर रही थी। दिल में आ रहा था की उसी वक़्त उस साहब के पास जाएँ और एक जोरदार तमाचा उनके मुंह पर रसीद कर दें या फिर एक पत्थर उठा कर उसके सिर पर दे मारें।
पर गंगाराम ने ऐसा करना उचित न समझा।उन्होंने इस अपमान का कारन जानने की कोशिश की और इस नतीजे पर पहुंचे कि वो सचमुच इस कुर्सी के लिए लायक नहीं थे। इसलिए उनका इतना अपमान हुआ। अब उन्होंने ने मन बना लिया कि वो इस अपमान का बदला जरुर लेंगे और ये बदला वो खुद को उस कुर्सी के लायक बना कर लेंगे। उन्होंने मन में प्रतिज्ञा ली कि जहाँ उनका अपमान हुआ वह वहीं आकार पूरे हक़ से उसी कुर्सी पर बैठेंगे।
अब समय था कुछ कर दिखने का। मन में गुस्सा बरक़रार था। लेकिन ये गुस्सा उस अंग्रेज का अपमान करने के लिए नहीं था। ये गुस्सा था अपने आप को कुछ बनाने का। जिस से वो अंग्रेज तो क्या किसी की भी हिम्मत न हो उन्हें उस कुर्सी पर बैठने से रोकने की। उन्हें खुद की औकात पर उठे सवाल का जवाब देना था। कोई गलत कदम उठा कर खुद पर कोई लांचन नहीं लगाना था बल्कि खुद को उस बुलंदी तक ले आना था जहाँ कोई उनकी औकात पूछने की हिम्मत न करता। और ये सब चल रहा था तो बस एक क्रोध के कारन।
कुछ सालों बाद गंगाराम ने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की और अंग्रेजी सरकार ने ही उन्हें सर’ की उपाधि दी। अब समय था अपने बदले को पूरा करने का। उस गुस्से को बाहर निकालने का जिसने इतने सालों से उन्हें इस मुकाम पर पहुँचने के लिए प्रतिबद्ध कर के रखा। इसके बाद गंगाराम की नौकरी उसी दफ्तर में लगायी गयी और उनके स्वागत में वही अंग्रेज इंजिनियर खड़ा था। ये दृश्य देख गंगाराम के मन में कुछ हद तक संतुष्टि हुयी। जैसे ही वह उस अंग्रेज इंजिनियर के पास पहुंचे उन्होंने कहा,
“पहचाना मुझे?” वह अंग्रेज गंगाराम को पहचान नहीं पाया था। इससे पहले वह कुछ बोलता गंगाराम बोले, “मैं वही लड़का हूँ जो यहाँ नौकरी के लिए आया था और आपने उसका बहुत अपमान किया था।”
उस अंग्रेज इंजिनियर ने गंगाराम से हाथ मिलते हुए कहा, “बहुत अद्भुत इन्सान हो। सच में यहाँ पहुँच गए। वैसे तुम्हें गुस्सा नहीं आया था?” “साहब गुस्सा तो बहुत आया था। गुस्सा तो आज तक है। इसी गुस्से के कारन तो मैं यहाँ पहुंचा हूँ।
इस तरह उन्होंने एक ऐसी उदाहरण दुनिया के सामने रखी जिस से कोई आम इन्सान भी किसी खास मुकाम को प्राप्त कर सकता है। यही थी शक्ति गुस्से की , जो उन्होंने सही दिशा में लगायी।
इतना ही नहीं इन्हीं सर गंगाराम के नाम पर दिल्ली में एक सड़क है जिसका नाम है :- “गंगाराम मार्ग” और उसी मार्ग पर एक अस्पताल भी है जिसका नाम है :- “सर गंगाराम अस्पताल”।
आप भी अपने गुस्से को सही दिशा में प्रयोग करें। सफलता प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध रहें। दुनिया को दिखा दें की आप वो नहीं जो दुनिया आपको समझती है बल्कि उस से कई गुना अच्छे हैं।
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धन्यवाद।
5 comments
सर आपकी सारी रचनाये बेहतरीन होती है सर कुछ मोटिवेशन storyes और डाले जिस से हमारे स्टूडेंट्स को फायदा होगा .मैं vestige business कीं trainng देता हूँ .आपका बहुत बहुत धन्यवाद. सर गंगा राम की कहानी बहुत प्रभाव डालती है . अली बहादुर कदीरी
बहुत अच्छी जानकारी प्रदान की गई है। धन्यवाद।
आपका भी बहुत-बहुत आभार Kadamtaal ji….इसी तरह हमारे साथ बने रहें।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति …. very nice article …. Thanks for sharing this!! ????
धन्यवाद् HindIndia इसी तरह प्रोत्साहन देते रहें। आपका बहुत-बहुत आभार।