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दुनिया के 7 अजूबे | Seven Wonders Of The World In Hindi

by Sandeep Kumar Singh
20 minutes read

7 Wonders Of The World In Hindi – कितनी सुंदर लगती है न दुनिया जब हमें मनभावन दृश्य देखने को मिलते हैं। मन को कितनी शांति प्राप्त होती है। हमारी दुनिया में ऐसे कई कुदरती स्थान होंगे जिसे देख कर मन ख़ुशी से भर जाता है। परन्तु इस से अलग इस धरती पर कुछ ऐसे स्मारक और इमारतें भी हैं जो कलाकारी का एक अद्भुत उदाहरण हैं और जिन्हें देख कर बहुत आश्चर्य होता है, और जिन्हें दुनिया के 7 अजूबे कहा जाता है। इतना ही नहीं कुछ इमारतें सदियों से अपनी पहचान बनाये रखने में आज तक सक्षम रही हैं।

दुनिया के 7 अजूबे
7 Wonders Of The World In Hindi

दुनिया के 7 अजूबे | Seven Wonders Of The World In Hindi

प्रतियोगिता एक ऐसी भावना है जो अक्सर हर इन्सान के अन्दर रहती है। इसी भावना को जब इन इमारतों से जोड़ा गया तो 2001 में स्विस कारपोरेशन न्यू 7 वंडर्स फाउंडेशन ने दुनिया भर में 200 स्मारकों के बीच 7 सर्वश्रेष्ठ स्मारकों को चुनने कि एक मुहिम चलायी। जिनसे हमें दुनिया के 7 अजूबे मिल सके। जिनमें से 21 विजेताओं के नाम 1 जनवरी, 2006 को घोषित किये गए।

मिस्त्र के लोगों में इस बात को लेकर असंतोष था कि उनके एकमात्र स्मारक गिज़ा के महान पिरामिड (Great Pyramid Of Giza) को अन्य प्रसिद्द स्मारकों के साथ प्रतियोगिता में रखा जा रहा है। उस समय इसे एक सम्माननीय प्रतिभागी मान कर प्रतियोगिता से अलग कर दिया गया। लिस्बन में 7 जुलाई, 2007 को दुनिया के 7 अजूबे की घोषणा की गयी। जो निम्नलिखित हैं:

 

1. चीचेन इट्ज़ा में पिरामिड ( The Pyramid at Chichen Itza )

चीचेन इट्ज़ा में पिरामिड ( The Pyramid at Chichen Itza )

दुनिया के 7 अजूबे में से यह पहला अजूबा है। माया नाम “चीचेन इट्ज़ा” का अर्थ होता है “इट्ज़ा के कुएं के मुहाने पर”। यह ची शब्द से व्युत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है “मुख” या “मुहाना” और चेन का अर्थ होता है “कुआं”। इट्ज़ा एक जातीय-वंश समूह का नाम है।

ऐसा माना जाता है कि यह नाम माया के इट्ज़ (itz) से लिया गया है, जिसका अर्थ है “जादू” और (h)á का अर्थ है “पानी।” स्पेनिश में इट्ज़ा (itzá) का अर्थ होता है “जल की चुड़ैलें (Brujas del Agua)” लेकिन इसका एक और अधिक सटीक अनुवाद है जल के जादूगर।

चीचेन के केन्द्र में प्रभावी रूप से स्थित है 79 फीट की ऊँचाई पर बना कुकुल्कन मंदिर (क्वेत्जालकोट के लिए माया नाम) जिसे अक्सर “अल कैस्टिलो” (महल) के रूप में सन्दर्भित किया जाता है। इस सीढ़ीदार पिरामिड का आधार चौकोर है और चारों ओर से शीर्ष पर स्थिति मंदिर के लिए हर तरफ 91 सीढ़ियां हैं। हर सीढ़ी एक दिन का प्रतीक है और मंदिर 365वां दिन।

वसंत और शरद के विषुव में, सूर्य के उदय और अस्त होने पर, यह संरचना उत्तर की सीढ़ी के पश्चिम में एक पंखदार सर्प की छाया निर्मित करती है – कुकुल्कन, या क्वेत्ज़लकोटल. इन दो वार्षिक अवसरों पर, इन कोनों की छाया सूरज की हरकत के साथ पिरामिड के उत्तर ओर गिरती है जो सर्प के सिर तक जाती है।

1930 के दशक के मध्य, मैक्सिकन सरकार ने अल कैस्टिलो की खुदाई को प्रायोजित किया। कई गलत शुरूआत के बाद, पिरामिड के उत्तर की ओर अन्दर उन्हें एक सीढ़ी मिली. ऊपर से खुदाई करने पर, उन्हें मौजूदा मंदिर के नीचे दबा हुआ एक और मंदिर मिला। मंदिर के चैम्बर के अन्दर एक चाक मूल मूर्ति थी और तेंदुएं के आकार का एक सिंहासन था, जो लाल रंग में रंगा था और उस पर इनलेड जेड से धब्बे बने हुए थे।

मैक्सिकन सरकार ने पुराने पिरामिड के गुप्त मंदिर तक जाने वाली सीढ़ी के लिए उत्तरी सीढ़ी के नीचे से एक सुरंग खोदी और इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया. 2006 में, INAH ने जनता के लिए सिंहासन कमरे को बंद कर दिया।

2. क्राइस्ट द रिडीमर ( Christ the Redeemer )

क्राइस्ट द रिडीमर ( Christ the Redeemer )

ब्राज़ील के रियो डी जेनेरो में स्थापित ईसा मसीह की एक प्रतिमा है जिसे दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आर्ट डेको स्टैच्यू माना जाता है। यह प्रतिमा अपने 9.5 मीटर (31 फीट) आधार सहित 39.6 मीटर (130 फ़ुट) लंबी और 30 मीटर (98 फ़ुट) चौड़ी है। इसका वजन 635 टन (700 शॉर्ट टन) है और तिजुका फोरेस्ट नेशनल पार्क में कोर्कोवाडो पर्वत की चोटी पर स्थित है। 700 मीटर (2,300 फ़ुट) जहाँ से पूरा शहर दिखाई पड़ता है।

यह दुनिया में अपनी तरह की सबसे ऊँची मूर्तियों में से एक है (बोलीविया के कोचाबम्बा में स्थित क्राइस्टो डी ला कोनकोर्डिया की प्रतिमा इससे थोड़ी अधिक ऊँची है)। ईसाई धर्म के एक प्रतीक के रूप में यह प्रतिमा रियो और ब्राजील की एक पहचान बन गयी है। यह मजबूत कांक्रीट और सोपस्टोन से बनी है, इसका निर्माण 1922 और 1931 के बीच किया गया था।

कोर्कोवाडो की चोटी पर एक विशाल प्रतिमा खड़ी करने का विचार पहली बार 1850 के दशक के मध्य में सुझाया गया था जब कैथोलिक पादरी पेड्रो मारिया बॉस ने राजकुमारी ईसाबेल से एक विशाल धार्मिक स्मारक बनाने के लिए धन देने का आग्रह किया था। राजकुमारी ईसाबेल ने इस विचार पर अधिक ध्यान नहीं दिया और ब्राजील के एक गणतंत्र बन जाने के बाद 1889 में इसे खारिज कर दिया गया, जिसके क़ानून में चर्च और राज्य को अलग-अलग रखने की अनिवार्यता थी।

पर्वत पर एक अभूतपूर्व प्रतिमा स्थापित करने का दूसरा प्रस्ताव रियो के कैथोलिक सर्कल द्वारा 1921 में लाया गया। इस समूह ने प्रतिमा के निर्माण के समर्थन में दान राशि और हस्ताक्षर जुटाने के लिए मोनुमेंट वीक (“सेमाना डू मोनुमेंटो”) नामक एक कार्यक्रम का आयोजन किया। दान ज्यादातर ब्राजील के कैथोलिक समुदाय से आए।

“ईसा मसीह की प्रतिमा” के लिए चुने गए डिजाइनों में ईसाई क्रॉस का एक प्रतिनिधित्व, अपने हाथ में पृथ्वी को लिए ईसा मसीह की एक मूर्ति और विश्व का प्रतीक एक चबूतरा शामिल था। खुली बाहों के साथ “क्राइस्ट द रिडीमर” की प्रतिमा को चुना गया। इसके निर्माण में 1922 से 1931 तक नौ साल लग गए और इसकी लागत 250,000 अमेरिकी डॉलर के समकक्ष (2009 में लगभग 3.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर) थी।

यह शांति का एक प्रतीक भी है। पक्षियों के इस पर बैठने से रोकने के लिए प्रतिमा के शीर्ष पर छोटी-छोटी कीलें भी लगाई गयी हैं। स्मारक को 12 अक्टूबर 1931 को खोला गया था।

अक्टूबर 2006 में प्रतिमा की 75वीं सालगिरह के अवसर पर रियो कार्डिनल यूसेबियो ऑस्कर शील्ड के आर्कबिशप ने प्रतिमा के नीचे एक चैपल (ब्राजील के संरक्षक संत–नोस्सा सेन्होरा एपारेसिडा या “अवर लेडी ऑफ द एप्पारिशन” के नाम पर) की स्थापना की। यह कैथोलिक धर्म के लोगों को वहाँ नामकरण और शादियों का आयोजन करने की अनुमति देता है।

10 फ़रवरी 2008, रविवार को एक प्रचंड बिजली के तूफ़ान के दौरान प्रतिमा पर बिजली गिरने से इसकी उंगलियों, सिर और भौहों को कुछ नुकसान पहुँचा था। सोपस्टोन की कुछ बाहरी परतों को बदलने और प्रतिमा पर लगायी गयी बिजली की छड़ों की मरम्मत के लिये रियो डी जेनेरो की राज्य सरकार और आर्कडायोसीज द्वारा एक जीर्णोद्धार का प्रयास किया गया।

15 अप्रैल 2010 को प्रतिमा के सिर और दाहिने हाथ पर भित्ति चित्र (ग्राफीती) का स्प्रे कर दिया गया। मेयर एडुआर्डो पेस ने इस कार्य को “राष्ट्र के विरुद्ध एक अपराध” करार दिया और इन असभ्य लोगों को जेल भेजने की कसम खाई और यहाँ तक कि इनकी गिरफ़्तारी का कारण बनने वाली किसी भी सूचना के लिये 10,000 रोमन डॉलर (R$) के ईनाम की पेशकश कर दी। मिलिट्री पुलिस ने अंततः इस बर्बरतापूर्ण कार्य के लिये संदिग्ध के रूप में हाउस पेंटर पाउलो सूजा डोस सैन्टोस की पहचान की।

3. कोलोसियम या कोलिसियम ( Colosseum )

कोलोसियम या कोलिसियम ( Colosseum )

इटली देश के रोम नगर के मध्य निर्मित रोमन साम्राज्य का सबसे विशाल एलिप्टिकल एंफ़ीथियेटर है। यह रोमन स्थापत्य और अभियांत्रिकी का सर्वोत्कृष्ट नमूना माना जाता है। इसका निर्माण तत्कालीन शासक वेस्पियन ने 70वीं – 72वीं ईस्वी के मध्य प्रारंभ किया और 80वीं ईस्वी में इसको सम्राट टाइटस ने पूरा किया।

81 और 96 वर्षों के बीच इसमें डोमीशियन के राज में इसमें कुछ और परिवर्तन करवाए गए। इस भवन का नाम एम्फ़ीथियेटरम् फ्लेवियम, वेस्पियन और टाइटस के पारिवारिक नाम फ्लेवियस के कारण है।

अंडाकार कोलोसियम की क्षमता 50,000 दर्शकों की थी, जो उस समय में साधारण बात नहीं थी। इस स्टेडियम में योद्धाओं के बीच मात्र मनोरंजन के लिए खूनी लड़ाईयाँ हुआ करती थीं। योद्धाओं को जानवरों से भी लड़ना पड़ता था। ग्लेडियेटर बाघों से लड़ते थे। अनुमान है कि इस स्टेडियम के ऐसे प्रदर्शनों में लगभग 5 लाख पशुओं और 10 लाख मनुष्य मारे गए।

इसके अतिरिक्त पौराणिक कथाओं पर आधारित नाटक भी यहाँ खेले जाते थे। साल में दो बार भव्य आयोजन होते थे और रोमनवासी इस खेल को बहुत पसंद करते थे।

पूर्व मध्यकाल में इस इमारत को सार्वजनिक प्रयोग के लिए बंद कर दिया गया। बाद में इसे निवास, कार्यशालाओं, धार्मिक कार्यों, किले और तीर्थ स्थल के रूप में प्रयोग किया जाता रहा। आज इक्कीसवी शती में यह भूकंप और पत्थर चोरी के कारण केवल खंडहर के रूप में ही बची है लेकिन इसके खंडहर को पर्यटकों के लिए सजा सँवारकर रखा गया है।

यूनेस्को द्वारा इसका चयन विश्व विरासत के रूप में किया गया है। यह आज भी शक्तिशाली रोमन साम्राज्य के वैभव का प्रतीक है, पर्यटकों का सबसे लोकप्रिय गंतव्य है और रोमन चर्च से निकट संबंध रखता है क्यों कि आज भी हर गुड फ्राइडे को पोप यहाँ से एक मशाल जलूस निकालते हैं।

4. चीन की महान दीवार ( Great Wall of China )

चीन की महान दीवार ( Great Wall of China )

चीन की विशाल दीवार मिट्टी और पत्थर से बनी एक किलेनुमा दीवार है जिसे चीन के विभिन्न शासको के द्वारा उत्तरी हमलावरों से रक्षा के लिए पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर सोलहवी शताब्दी तक बनवाया गया। इसकी विशालता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की इस मानव निर्मित ढांचे को अन्तरिक्ष से भी देखा जा सकता है।

यह दीवार 6,400 किलोमीटर (10,000 ली, चीनी लंबाई मापन इकाई) के क्षेत्र में फैली है। इसका विस्तार पूर्व में शानहाइगुआन से पश्चिम में लोप नुर तक है और कुल लंबाई लगभग 6700 कि॰मी॰ (4160 मील) है।

हालांकि पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के हाल के सर्वेक्षण के अनुसार समग्र महान दीवार, अपनी सभी शाखाओं सहित 8,851.8 किमी (5,500.3 मील) तक फैली है। अपने उत्कर्ष पर मिंग वंश की सुरक्षा हेतु दस लाख से अधिक लोग नियुक्त थे। यह अनुमानित है, कि इस महान दीवार निर्माण परियोजना में लगभग 20 से 30 लाख लोगों ने अपना जीवन लगा दिया था।

चीन में राज्य की रक्षा करने के लिए दीवार बनाने की शुरुआत हुई आठवीं शताब्दी ईसापूर्व में जिस समय कुई (अंग्रेजी :Qi), यान (अंग्रेजी :Yan) और जाहो (अंग्रेजी :Zhao) राज्यों ने तीर एवं तलवारों के आक्रमण से बचने के लिए मिटटी और कंकड़ को सांचे में दबा कर बनाई गयी ईटों से दीवार का निर्माण किया। ईसा से 221 वर्ष पूर्व चीन किन (अंग्रेजी :Qin) साम्राज्य के अनतर्गत आ गया। इस साम्राज्य ने सभी छोटे राज्यों को एक करके एक अखंड चीन की रचना की।

किन साम्राज्य से शासको ने पूर्व में बनायी हुई विभिन्न दीवारों को एक कर दिया जो की चीन की उत्तरी सीमा बनी। पांचवीं शताब्दी से बहुत बाद तक ढेरों दीवारें बनीं, जिन्हें मिलाकर चीन की दीवार कहा गया। प्रसिद्धतम दीवारों में से एक 220-206 ई.पू. में चीन के प्रथम सम्राट किन शी हुआंग ने बनवाई थी। उस दीवार के अंश के कुछ ही अवशेष बचे हैं।

यह मिंग वंश द्वारा बनवाई हुई वर्तमान दीवार के सुदूर उत्तर में बनी थी। नए चीन की बहुत लम्बी सीमा आक्रमणकारियों के लिए खुली थी इसलिए किन शासको ने दीवार को चीन की बाकी सीमाओं तक फैलाना शुरू कर दिया।

इस कार्य के लिए अथम परिश्रम एवं साधनों की आवश्यकता थी। दीवार बनाने की सामग्री को सीमाओं तक ले जाना एक कठिन कार्य था इसलिए मजदूरों ने स्थानीय साधनों का उपयोग करते हुए पर्वतों के निकट पत्थर की एवं मैदानों के निकट मिटटी एवं कंकड़ की दीवार का निर्माण किया।

कालांतर में विभिन्न साम्राज्य जैसे हान, सुई, उत्तरी एवं जिन्होंने दीवार की समय समय पर मरम्मत करवाई और आवश्यकतानुसार दीवार को विभिन्न दिशाओं मे फैलाया। आज यह दीवार विश्व में चीन का नाम ऊंचा करती है, व युनेस्को द्वारा 1987 से विश्व धरोहर घोषित है।

5. माचू पिचू ( Machu Picchu )

माचू पिचू ( Machu Picchu )

दक्षिण अमेरिकी देश पेरू मे स्थित एक कोलम्बस-पूर्व युग, इंका सभ्यता से संबंधित ऐतिहासिक स्थल है। इसके नाम का अर्थ है :- ‘पुरानी चोटी।” यह समुद्र तल से 2,430 मीटर की ऊँचाई पर उरुबाम्बा घाटी, जिसमे से उरुबाम्बा नदी बहती है, के ऊपर एक पहाड़ पर स्थित है।

यह कुज़्को से 80 किलोमीटर (50 मील) उत्तर पश्चिम में स्थित है। इसे अक्सर “इंकाओं का खोया शहर “ भी कहा जाता है। माचू पिच्चू इंका साम्राज्य के सबसे परिचित प्रतीकों में से एक है।

1430 ई. के आसपास इंकाओं ने इसका निर्माण अपने शासकों के आधिकारिक स्थल के रूप में शुरू किया था, लेकिन इसके लगभग सौ साल बाद, जब इंकाओं पर स्पेनियों ने विजय प्राप्त कर ली तो इसे यूँ ही छोड़ दिया गया। हालांकि स्थानीय लोग इसे शुरु से जानते थे पर सारे विश्व को इससे परिचित कराने का श्रेय हीरम बिंघम को जाता है जो एक अमेरिकी इतिहासकार थे और उन्होने इसकी खोज 1911 में की थी, तब से माचू पिच्चू एक महत्वपूर्ण पर्यटन आकर्षण बन गया है।

माचू पिच्चू को 1981 में पेरू का एक ऐतिहासिक देवालय घोषित किया गया और 1983 में इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल की दर्जा दिया गया। क्योंकि इसे स्पेनियों ने इंकाओं पर विजय प्राप्त करने के बाद भी नहीं लूटा था, इसलिए इस स्थल का एक सांस्कृतिक स्थल के रूप में विशेष महत्व है और इसे एक पवित्र स्थान भी माना जाता है।

माचू पिच्चू को इंकाओं की पुरातन शैली में बनाया था जिसमें पॉलिश किये हुए पत्थरों का प्रयोग हुआ था। इसके प्राथमिक भवनों में इंतीहुआताना (सूर्य का मंदिर) और तीन खिड़कियों वाला कक्ष प्रमुख हैं। पुरातत्वविदों के अनुसार यह भवन माचू पिच्चू के पवित्र जिले में स्थित हैं।

सितम्बर 2007, पेरू और येल विश्वविद्यालय के बीच एक सहमति बनी की वो सभी शिल्प जो हीरम बिंघम माचू पिच्चू की खोज के बाद अपने साथ ले गये थे वो पेरू को लौटा दिये जायेंगे। 7 जुलाई 2007 को घोषित विश्व के सात नए आश्चर्यों मे माचू पिच्चू भी एक है।


6. पेत्रा ( Petra )

पेत्रा ( Petra )

जॉर्डन के म’आन प्रान्त में स्थित एक ऐतिहासिक नगरी है जो अपने पत्थर से तराशी गई इमारतों और पानी वाहन प्रणाली के लिए प्रसिद्ध है। इसे छठी शताब्दी ईसापूर्व में नबातियों ने अपनी राजधानी के तौर पर स्थापित किया था।

माना जाता है कि इसका निर्माण कार्य 1200 ईसापूर्व के आसपास शुरू हुआ। आधुनिक युग में यह एक मशहूर पर्यटक स्थल है। पेत्रा एक “होर” नामक पहाड़ की ढलान पर बना हुई है और पहाड़ों से घिरी हुई एक द्रोणी में स्थित है।

यह पहाड़ मृत सागर से अक़ाबा की खाड़ी तक चलने वाली “वादी अरबा” नामक घाटी की पूर्वी सीमा हैं। पेत्रा को युनेस्को द्वारा एक विश्व धरोहर होने का दर्जा मिला हुआ है। बीबीसी ने अपनी “मरने से पहले ४० देखने योग्य स्थान” में पेत्रा को भी शामिल किया हुआ है।

7. ताजमहल ( Taj Mahal )

taj mahal in hindi

दुनिया के 7 अजूबे में से एक भारत के आगरा शहर में स्थित एक विश्व धरोहर मक़बरा है। इसका निर्माण मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने, अपनी पत्नी मुमताज़ महल की याद में करवाया था। ताजमहल मुग़ल वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। इसकी वास्तु शैली फ़ारसी, तुर्क, भारतीय और इस्लामी वास्तुकला के घटकों का अनोखा सम्मिलन है।

सन् 1973 में, ताजमहल युनेस्को विश्व धरोहर स्थल बना। इसके साथ ही इसे विश्व धरोहर के सर्वत्र प्रशंसा पाने वाली, अत्युत्तम मानवी कृतियों में से एक बताया गया। ताजमहल को भारत की इस्लामी कला का रत्न भी घोषित किया गया है।


साधारणतया देखे गये संगमरमर की सिल्लियों की बड़ी-बड़ी परतों से ढंक कर बनाई गई इमारतों की तरह न बनाकर इसका श्वेत गुम्बद एवं टाइल आकार में संगमर्मर से ढंका है। केन्द्र में बना मकबरा अपनी वास्तु श्रेष्ठता में सौन्दर्य के संयोजन का परिचय देते हैं। ताजमहल इमारत समूह की संरचना की खास बात है, कि यह पूर्णतया सममितीय है। इसका निर्माण सन् 1647 के लगभग पूर्ण हुआ था। उस्ताद अहमद लाहौरी को प्रायः इसका प्रधान रूपांकनकर्ता माना जाता है।

तो ये है दुनिया के 7 अजूबे और उनके बारे में जानकारी ( 7 Wonders Of The World In Hindi ) , उम्मीद है दुनिया के 7 अजूबे के बारे में जानकारी लाने की हमारी कोशिश आपको पसंद आई होगी। अब हमने इतनी मेहनत की है ये जानकारी आप तक पहुचाने में तो आप भी एक बटन क्लिक कर ही सकते है।

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पढ़िए अप्रतिम ब्लॉग पर यह रोचक जानकारियां :-

धन्यवाद।

आपके लिए खास:

30 comments

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Sandhya sharma जनवरी 4, 2019 - 9:41 पूर्वाह्न

Very good story … I love this story

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Shiva mehta अक्टूबर 25, 2018 - 9:59 अपराह्न

Bhut hi accho knowledge mili yha se

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Sanjay जुलाई 12, 2018 - 10:23 पूर्वाह्न

Ye tik hai ab koi kuch nahi karega .SAB apni apni sabhalne me Lage hai

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh जुलाई 15, 2018 - 10:40 पूर्वाह्न

कुछ समझ नहीं आया संजय जी।

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Lucky damiwal मार्च 13, 2018 - 11:53 अपराह्न

I like it

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Jyoti मार्च 11, 2018 - 1:15 पूर्वाह्न

Sat ajube pure kyu nhi diye pics

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Pravesh दिसम्बर 31, 2017 - 12:22 अपराह्न

Thanks for increase our knowledge

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh दिसम्बर 31, 2017 - 8:16 अपराह्न

ये तो हमारा सौभाग्य है Pravesh जी…

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Deepak अक्टूबर 24, 2017 - 5:11 अपराह्न

thanks for knowledge

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh अक्टूबर 26, 2017 - 3:45 अपराह्न

It's our pleasure Deepak ji..

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utsav anand सितम्बर 26, 2017 - 4:11 अपराह्न

sat ajuba ko bachayen

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh सितम्बर 27, 2017 - 11:25 पूर्वाह्न

प्रयास जारी हैं।

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Pk अगस्त 22, 2017 - 11:46 पूर्वाह्न

Bhoot acha site kafi jankari h aur Hindi m isliye maja Aata h

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh अगस्त 22, 2017 - 11:55 पूर्वाह्न

Thanks PK….

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Farhana अगस्त 18, 2017 - 3:27 अपराह्न

I liked

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh अगस्त 20, 2017 - 1:34 अपराह्न

Thanks Farhana ji…

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Mohinder kumar जुलाई 10, 2017 - 11:46 अपराह्न

verry good

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh जुलाई 13, 2017 - 2:22 अपराह्न

Thanks Mohinder Kumar ji….n

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Taufik ansari जुलाई 8, 2017 - 9:48 अपराह्न

Very good

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh जुलाई 9, 2017 - 9:38 पूर्वाह्न

Thanks Taufik ansari ji..m

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Puneet Goel जुलाई 1, 2017 - 3:11 अपराह्न

post share karne ke liye shukriya sir. ye ek bahut hi informative post hai jisse kafi kuch nya pta chal paya hai duniya ke 7 ajubon ke bare mein.

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh जुलाई 2, 2017 - 8:55 पूर्वाह्न

Puneet जी हमारा यही प्रयास है कि पाठकों तक ऐसी पोस्ट पहुंचायें जिसे पढ़ने से जानकारी मिले।

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Rashid kassar जून 1, 2017 - 1:19 अपराह्न

Superb sir

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh जून 1, 2017 - 5:21 अपराह्न

Thanks Rashid kassar ji….

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Vikas kumar sagar मई 28, 2017 - 12:41 अपराह्न

Verry good

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh मई 28, 2017 - 3:46 अपराह्न

Thanks Vikas Kumar Sagar ji.

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अजय कुमार मई 26, 2017 - 2:59 अपराह्न

great pyramid ka in sabmai n aana dukhad h.wah ab bhi in sabse great h.

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh मई 27, 2017 - 4:39 अपराह्न

सही बात है अजय कुमार जी। परंतु इतिहास में अभी भी वो एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। और वैसे भी ये 7 अजूबे लोगों ने ही चुने हैं। इसलिए इस फैसले को मान लेना चाहिए।
धन्यवाद।

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Hiren shingarakhiya फ़रवरी 25, 2017 - 2:20 पूर्वाह्न

Good yaar good

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Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh फ़रवरी 25, 2017 - 5:49 पूर्वाह्न

Thanks Hiren shingarakhiya bro…..

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