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Qutub Minar In Hindi – युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के रूप में स्वीकृत क़ुतुब मीनार विश्व की सबसे ऊँची मीनार है। हमें ऐसा बचपन से ही ऐसा पढ़ाया जाता है कि इसे मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा बनवाया गया था। लेकिन क्या यही सच्चाई है? शायद नहीं यह पूरी सच्चाई नहीं है। क्या है कुतुब मीनार का रहस्य ? आइये जानने का प्रयास करते हैं इस लेख ” कुतुब मीनार की कहानी ” में
कुतुब मीनार की कहानी
Qutub Minar In Hindi
कुतुब मीनार कहां स्थित है
कुतुब मीनार भारत की राजधानी दिल्ली के दक्षिण भाग में महरौली क्षेत्र में स्थित है। महरौली एक संस्कृत शब्द है जिसे मिहिर-अवेली कहा जाता है। इस कस्बे के बारे में कहा जा सकता है कि यहाँ पर विख्यात खगोलज्ञ मिहिर ( जो कि विक्रमादित्य के दरबार में थे ) रहा करते थे।
कुतुब मीनार किसने बनाया था
मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने जो कि दिल्ली के पहले मुस्लिम शासक थे, ने 1199 ई. में इसके निर्माण कार्य शुरु कराया था। लेकिन वे बस इसका आधार ( Base ) या यूँ कहें कि पहली मंजिल ही बना पाए। इनके बाद कुतुबुद्दीन ऐबक के ग़ुलाम और दामाद अल्तमश, जो कि बाद में उनके उत्तराधिकारी बने, ने इसकी तीन और मंजिलें बनाई।
मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में हरा कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। उसके बाद लालकोट को गिरा कर उसके अवशेषों से वहां क़ुतुब मीनार का निर्माण हुआ। ऐसा भी माना जाता है की इस मीनार का निर्माण अफगानिस्तान की “ मीनार-ए-जाम ” या “ जाम की मीनार ” से प्रेरित होकर किया गया था।
सन 1369 में आसमानी बिजली गिरने के कारण इसकी सबसे उपरी मंजिल क्षतिग्रस्त हो गयी। तब उस समय के शासक फिरोजशाह तुगलक ने उसकी मरम्मत करवाते हुए पांचवीं और अंतिम मंजिल बनवाई थी। इस मीनार की पहली तीन मंजिलें लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है और चौथी तथा पांचवीं मंजिलें मार्बल और बलुआ पत्थरों से निर्मित हैं।
कुतुब मीनार की लम्बाई
धरती पर इसका आधार व्यास ( Diameter ) में 14.3 मीटर और शीर्ष पर 2.75 मीटर है। कुतुब मीनार की लम्बाई 72.5 मीटर है।
कुतुब मीनार की कहानी
जिस जगह पर क़ुतुब मीनार बनाया गया है, वहां कभी “ लालकोट ” हुआ करता था। जिसे आप दिल्ली का पहला लाल किला भी कह सकते हैं। “ लालकोट ” का निर्माण तोमर राजवंश के राजपूत राजा अनंगपाल ने करवाया था। राजा अनंगपाल ने ही दिल्ली को सबसे पहले शहर के रूप में बसाया था।
राजा अनंगपाल के बाद दिल्ली का विस्तार पृथ्वीराज चौहान ने किया। उन्होंने “ लालकोट ” का नाम बदल कर “ किला राय पिथौरा ” रख दिया।
कुतुब-उद-दीन ऐबक 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर उनके अवशेषों से इस मीनार का निर्माण किया था। यह जानकारी मुख्य पूर्वी प्रवेश द्वार ( On The Main Eastern Entrance ) पर उनके शिलालेख में दर्ज है। उस शिलालेख में मंदिरों को तोड़ने का जिक्र है लेकिन कुतुबमीनार बनाने का जिक्र कहीं नहीं है।
कुतुब मीनार का रहस्य
तथ्यों के आधार पर कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि क़ुतुब मीनार किसी मुस्लिम शासक ने नहीं बल्कि सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक और खगोलशास्त्री वराहमिहिर ने बनवाया था।
ऐसा माना जाता है कि चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के समय क़ुतुब मीनार पहले सम्राट के नवरत्नों में से एक और खगोलशास्त्री वराहमिहिर द्वारा यह मीनार खगोलीय गणना के अध्ययन के लिए प्रयोग की जाती थी। उनके साथ उनके सहायक, गणितज्ञ और तकनीकविद भी रहते थे। और क़ुतुब मीनार का नाम विष्णु स्तंभ हुआ करता था।
जो मंदिर कुतुब-उद-दीन ऐबक ने तोड़े थे वे हिंदू राशि चक्र को समर्पित 27 नक्षत्रों या तारामंडलों को दर्शाती 27 गुंबजदार इमारतें थीं। इनके दीवारों पर संस्कृत में विवरण लिखे हुए हैं और मूर्तियाँ भी बनी हुयी हैं। जिन्हें क्षतिग्रस्त कर उनके दूसरी तरफ अरबी में लिख कर उसे दुबारा लगा दिया गया।
यह भी कहा जाता है कि इस मीनार जिसे कि विष्णु स्तंभ भी कहा जाता है, कि 7 मंजिलें थीं। जो कि 7 दिनों को समर्पित थीं। सातवीं मंजिल पर ब्रह्मा जी की मूर्ती थी। जब मुहम्मद गौरी कुतुबुद्दीन ऐबक के साथ विष्णु स्तंभ के पास पहुंचा तो उसने इसकी ऊपर की दो मंजिलें गिरा दीं।
इतना ही नहीं कुतुबमीनार के परिसर में मौजूद लौह स्तंभ को गरुड़ ध्वज या गरुड़ स्तंभ कहा जाता था। लगभग 1600 साल से खुले आसमान के नीचे खड़ा यह लौह स्तंभ आज भी उतनी ही मजबूती से टिका हुआ है जितनी मजबूती से शायद यह बना होगा।
इसके साथ ही कई अन्य प्रमाण भी वहां मौजूद हैं जिनसे इस तथ्य की सत्यता को बढ़ावा मिलता है कि क़ुतुब मीनार पहले विष्णु स्तंभ ही था। जिसकी जानकारी आप यह पीडीऍफ़ डाउनलोड करके ले सकते हैं।
THE DHRUVA STAMBHA Vishnu Dhvaja ( Qutub Minar )
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धन्यवाद।
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Unknown history of kutub minar brought in limelight