Apratim Post

दोहे किन्नर भी दिव्यांग | Dohe Kinnar Bhi Divyang


‘ दोहे किन्नर भी दिव्यांग ‘ शीर्षक से दिए इन दोहों में बताया गया है कि लैंगिक विकृति के कारण किन्नरों को भी दिव्यांगों की तरह आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए जिससे कि समाज का यह उपेक्षित वर्ग भी सम्मानजनक जीवन जी सके। किन्नरों को सामाजिक तौर पर बहिष्कृत करना सर्वथा अनुचित एवं अमानवीय है। स्त्री और पुरुषों की तरह ही किन्नर भी मानव की संतान हैं। कुदरत की भूल की सजा इन्हें नहीं मिलना चाहिए। जो जन्मजात लैंगिक विकलांग हैं, उनका पालन-पोषण घर पर ही सामान्य बच्चों की तरह होना चाहिए और इन्हें बिना भेदभाव के विकास के सभी अवसर प्रदान करना चाहिए। समाज को किन्नरों के साथ करुणामय व्यवहार करना चाहिए। 

दोहे किन्नर भी दिव्यांग

दोहे किन्नर भी दिव्यांग

किन्नर भी दिव्यांग – से, हैं लैंगिक विकलांग ।
इनके हित में अब उठे, आरक्षण की मांग।।

बच्चे का सामान्य से, हुआ भिन्न क्या अंग।
किन्नर कहा समाज ने, किए स्वप्न सब भंग।।

कर लैंगिक विकलांग को, हमने घर से दूर।
भीख माँगने को किया, जान – बूझ मजबूर।।

किन्नर होना ईश की, या कुदरत की भूल।
इनके देह-विकार को, अधिक न दें हम तूल।।

जो लैंगिक विकलांग हैं, पाएँ रह घर प्यार।
इनके साथ समाज का, रहे मधुर व्यवहार।।

हैं किन्नर भी भूमि पर, हम-से ही इंसान।
मिलना इनको चाहिए, मानवीय सम्मान।।

हो समाज की सोच में, एक नया बदलाव।
रहे किन्नरों के लिए, करुणा भरा लगाव।।

पढ़िए अप्रतिम ब्लॉग के ये बेहतरीन रचनाएं :-

आपको यह रचना ” दोहे किन्नर भी दिव्यांग ” कैसी लगी ? अपने विचार कमेन्ट बॉक्स में जरूर लिखें।

धन्यवाद।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *