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दीपक पर कविता – में दीपक के माध्यम से अज्ञान और अन्याय के विरुद्ध निरन्तर संघर्ष करने का आह्वान किया गया है। दीपक, आँधी – तूफानों में भी अविचल रहकर अंधकार से संघर्ष करता है। वह सभी के साथ समान व्यवहार करता हुआ अपने सामर्थ्य के अनुसार पथ से अँधियारा दूर करके लोगों को अपने गन्तव्य तक पहुँचने में सहायता करता है। हमें भी कष्टों की चिन्ता किए बिना बुराइयों का प्रतिकार करना चाहिए और अपनी सुख – सुविधाओं के लिए अनुचित बात का समर्थन नहीं करना चाहिए। दीपक की तरह मानव का जीवन भी क्षणभंगुर है अतः हमें अपने समय का उपयोग औरों की भलाई के कामों में करना चाहिए।
दीपक पर कविता

दे रहा तम को चुनौती
एक दीपक जल अकेला,
यह न दृग में पालता है
स्वप्न के सुख का झमेला।
हार जाने का तनिक भी
भय न इसको सालता है,
लक्ष्य पर संघर्ष करते
दृष्टि हर पल डालता है।
प्रबल झंझावात को भी
यह विहँस कर झेलता है,
मौत के भी साथ हर पग
मुस्करा कर खेलता है।
न्याय के हित यह अकेला
प्राणपण से जूझता है,
मर मिटूँ मैं और के हित
यही हरपल सूझता है।
किन्तु हम होकर मनुज भी
अन्याय जग में सह रहे,
देख करके रुख हवा का
बस साथ उसके बह रहे।
बचते रहें दुःख – धूप से
एक यह ही आस पलती,
मधुर कल की कल्पनाएँ
हमें रहतीं नित्य छलती।
स्वार्थ में हम जी रहे हैं
प्रतिशोध को मन में भरे,
जी रहे सन्देह के क्षण
हम आज आपस में डरे।
श्रेष्ठ हमसे दीप यह जो
सिर उठाए जी रहा है,
दे रहा आलोक जग को
खुद तमस को पी रहा है।
दीप मिट्टी से बना यह
सृजन मिट्टी का मनुज है ,
दीप में देवत्व है तो
मनुज क्यों बनता दनुज है।
मन प्रकाशित फिर करें हम
दीप से लेकर उजाला,
जड़ विचारों को हृदय से
शीघ्र अब जाए निकाला ।
आइए हम दीप बनकर
सर्वस्व अपना बाँट दें,
विकल मानव के हृदय की
दुःख – धुन्ध कुछ तो छाँट दें।
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धन्यवाद।
Bhot sundar kavita!