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गुजरे हुए बचपन के उन सुनहरे दिनों की कविता बचपन की यादों पर कविता :-
बचपन की यादों पर कविता
एक बचपन का जमाना था,
जिसमें खुशियों का खजाना था,
चाहत थी चांद को पाने की,
पर मन गोलगप्पे का दीवाना था।
खबर ना रहती थी सुबह की
और ना शाम का ठिकाना था,
थक कर आना स्कूल से
पर खेलने भी जाना था।
मां की कहानी थी,
यारों का दोस्ताना था,
खेलते हुए हाथों में गेंदे थी,
झगड़ा करना भी एक याराना था।
हर खेल हर समय में साथी थे,
साथ ही खुशी और गम बांटना था।
कुछ सोचने का ख्याल ना रहता था,
हर पल हर समय सुहाना था।
बारिश में कागज की नाव थी,
ठंड में मां का आंचल था,
ना रोने की वजह थी,
ना हंसने का कोई बहाना था।
वो रातो में मां की कहानियां थी,
वो नंगे पांव ही दौड़ना था,
वह बहुत गुस्सा आने पर,
जमीन में पांव को रगड़ना था।
वह नए-नए उपहार पाकर,
खुशी से झूमना था,
बचपन होता कितना प्यारा था,
ना किसी से कोई भेदभाव था।
हर किसी से दोस्ती का ख्याल था,
किसी से ईर्ष्या न रखने का स्वभाव था,
कोई लौटा दे मेरे बचपन को,
कितना सुंदर वो जमाना था।
क्यों हो गए इतने बड़े हम,
इससे अच्छा तो बचपन का जमाना था।।
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रचनाकार आदरणीय अंकित पाण्डेय जी काटरगंज जीरवाबाड़ी साहिबगंज, झारखंड से हैं। रचनाकार सामाजिक कार्यकर्त्ता के रूप में भी कार्यरत हैं।
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