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प्रिय पाठकों, अभी तक आपने कई शब्दों जैसे की सफलता, दोस्ती, पिता, माता आदि पर हमारे द्वारा लिखी गयीं शायरियां पढ़ीं। इसी क्रम को बदलाव के साथ थोड़ा आगे बढ़ाते हुए इस बार हमने एक पंक्ति ‘तुम बिन मैं कैसे जी पाउँगा’ पर शायरी संग्रह तैयार किया है। इस शायरी संग्रह में दर्द भी है और प्यार भी। आशा करता हूँ कि इस शायरी संग्रह को भी आप बाकी शायरी संग्रहों की तरह ही अपना प्यार देंगे। तो आइये पढ़ते हैं :-
तुम बिन मैं कैसे जी पाउँगा
1.
तुम बिन मै कैसे जी पाउँगा
बस तड़प-तड़प कर रह जाऊंगा,
जाने न दूंगा दूर कहीं
सारी दुनिया से मैं लड़ जाऊँगा।
2.
तुमसे है ये सूरज रोशन, तुमसे ही सजी हर रात है
तुमसे ही जुड़ी हर ख्वाहिश है, तुमसे ही जुड़े जज़्बात हैं,
तुमसे बिछड़ कर इस दुनिया में और कहाँ मैं जाऊंगा
सोच के देखो अब तुम ये, तुम बिन मै कैसे जी पाउँगा?
3.
वादा है तुमसे ये मेरा, मैं दूर कभी न जाऊंगा
जो भी किया है तुमसे वो, हर वादा अब मैं निभाऊंगा
तेरी ख़ुशी के लिए तो मैं जहर तक पी जाऊंगा, पर
जो छोड़ गए तुम मुझको कभी, तुम बिन मै कैसे जी पाउँगा?
4.
मैं शाम तुम सहर हो, मैं सागर तुम लहर हो,
तुम बिन मै कैसे जी पाउँगा, तुम ही तो मेरे आठों पहर हो।
5.
तुम्हारे होने से ही ये दिल धड़कता है
तुम्हारे होने से ही ये मन मचलता है,
तुम बिन मै कैसे जी पाउँगा
तुम्हारे होने से ही तो ये जीवन चलता है।
6.
न जाने क्यों बिछड़ गए हो तुम
न जाने क्या चाहता है विधाता,
तुम बिन मै कैसे जी पाउँगा
अब बस यही सवाल सताता है।
7.
तुम बिन मैं कैसे जी पाउँगा, इस दुनिया में न रह पाउँगा
धड़कन होगी सीने में पर मैं जीते जी ही मर जाऊँगा,
ये एक गुजारिश है तुझसे, न दूर तू जाना अब मुझसे
जब मन को चैन न होगा तब, न जाने मैं क्या कर जाऊंगा?
8.
दिल की धडकनों पर तुम्हारा ही राज है
जिंदगी की हर धुन में तुम्हारा ही साज है,
तुम बिन मै कैसे जी पाउँगा
तुमसे ही तो मेरे जीने का अंदाज है।
9.
दूर रहूँगा कैसे मैं
तुम बिन मै कैसे जी पाउँगा,
इस बोझिल जीवन से मुक्ति को
मैं तो जहर भी पी जाऊंगा।
10.
दूरी तुमसे एक पल की भी बर्दाश्त न मुझसे होती है,
बिन तेरे जिन्दा रहना, भला मैं कैसे सह पाउँगा,
क्या बीतती है मुझपर ये कभी, सोच के देखा है तुमने
साँसें लेना मुश्किल होगा, तुम बिन मैं कैसे जी पाउँगा?
11.
कभी सोच लिया होता तुमने
तुमबिन मैं कैसे जी पाउँगा,
लाश ये जिन्दा तन होगा
मैं जीते जी ही मर जाऊंगा।
12.
न चाँद बड़े न तारे हैं
मैं सूरज भी नीचे ले आऊंगा,
पर ये तो बता दो मुझको तुम
तुम बिन मैं कैसे जी पाउँगा?
13.
तुम बिन मैं कैसे जी पाउँगा
ये दूरी कैसे सह पाउँगा,
जब तक हो सामने ठीक है सब
इक पल न बाद मे रह पाऊंगा।
14.
ये वक़्त कहाँ फिर पाउँगा
मैं तो इक पल में ही मर जाऊंगा,
जो साथ तुम्हारा न होगा
तुम बिन मै कैसे जी पाउँगा?
15.
मेरे दिन की ढलती शाम हो तुम, इक खुशियों का पैगाम हो तुम,
मेरी गीता और कुरान हो तुम, मेरी आरती और अज़ान हो तुम,
जो नशा चढ़ा देता मुझको, बस वही नशीला जाम हो तुम,
तुम बिन मै कैसे जी पाउँगा इस तड़पते दिल का आराम हो तुम।
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