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रक्षाबंधन का इतिहास ( Rakshabandhan Ka Itihaas ) – भारत एक त्योहारों का देश है। यहाँ समय-समय पर कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है। हर त्यौहार का अपना एक महत्त्व है। इसी तरह भाई-बहन के प्यार को दर्शाता एक त्यौहार है :- रक्षा बंधन। यह त्यौहार श्रावण की पूर्णिमा को मनाया जाता है। हालाँकि अगर इसका इतिहास देखा जाए तो ये त्यौहार सिर्फ भाई-बहन के लिए ही नहीं अपितु समाज में बनने वाले हर रिश्ते के लिए होता है। इसी सन्दर्भ में हम आपके लिए रक्षा बंधन से जुड़ी जितनी अधिक प्राप्त हो सकी उतनी जानकारी लेकर आये हैं। पढ़िए- रक्षाबंधन का इतिहास – निबंध, महत्व एवं जानकारी ।
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Rakshabandhan Ka Itihaas
रक्षाबंधन का इतिहास

रक्षा बंधन कब मनाया जाता है ?
रक्षाबंधन कि शुरुआत कब और कैसे हुयी इस बात कि कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है। रक्षा बंधन का जिक्र पुराणों में भी है। इसका नाम रक्षा बंधन कैसे पड़ा। पुरातन समय में ऋषिगण श्रवण मास में अपने आश्रम में रहकर अध्ययन और यज्ञ किया करते थे। यज्ञ की समाप्ति श्रावण मास की पूर्णिमा को कि जाती थी। इसी दिन यजमान और शिष्य एक-दूसरे को रक्षा सूत्र बांधते थे। यही रस्म आगे चल कर रक्षा बंधन में बदल गयी। रक्षा सूत्र को राखी कह कर पुकारा जाने लगा
रक्षा बंधन क्यों मनाया जाता है ?
भविष्यपुराण की कथा :-
भविष्यपुराण की एक कथा के अनुसार के बार देव और दानवों में युद्ध हुआ। युद्ध बारह वर्षों तक चला। इंद्र को अपनी हार निश्चित लगने लगी। भगवन इंद्र घबरा कर गुरु बृहस्पति के पास गए। वहां इंद्र की पत्नी इन्द्राणी सब कुछ सुन रहीं थीं। उन्होंने ने अपने पति की रक्षा के लिए एक रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र कर इंद्र के हाथ में बाँध दिया। संयोग से वो दिन श्रावण पूर्णिमा का था। फलस्वरूप इंद्र की विजय हुयी।
दानवेन्द्र राजा बलि ने एक बार 100 यज्ञ पूर्ण कर इंद्र से स्वर्ग छीनने चेष्टा की। तब इंद्र अन्य देवताओं के साथ भगवान विष्णु के पास गए और उनसे प्रार्थना की। भगवान विष्णु जी तब वामन अवतार लेकर रजा बलि के पास भिक्षा मांगने पहुंचे। राजा बलि ने उनसे भिक्षा मांगने को कहा तो वामन रूप में भगवान विष्णु ने तीन पग भूमि भिक्षा स्वरुप मांग ली। बलि के गुरु शुक्रदेव ने भगवान विष्णु को वामन अवतार में पहचान लिया।
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उन्होंने राजा बलि को भिक्षा देने से मन किया। लेकिन बलि वचन दे चुका था। भगवान विष्णु ने एक पग में स्वर्ग और दूसरे में पृथ्वी को नाप लिया। अब तीसरा पग रखने को जगह न बची तो राजा बलि के सामने धर्म संकट आ खड़ा हुआ। उन्होंने धैर्य से काम लेते हुए भगवान विष्णु के सामने अपना शीश रख दिया। जब वामन भगवान ने तीसरा पग बलि के सिर पर रखा तो बलि रसातल (पाताल) पहुँच गया।बलि ने उस समय अपनी भक्ति की शक्ति से भगवान विष्णु को हर पल अपने सामने रहने का वचन ले लिया।
प्रभु को वहां हर समय रहने के लिए बलि का द्वारपाल बनना पड़ा। जब विष्णु जी कई दिन घर न लौटे तो देवी लक्ष्मी चिंतित हो गयीं। नारद जी के एक उपाय को सुन वे राजा बलि के पास गयीं। उस उपाय का पालन करते हुए देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षाबंधन बाँध कर भाई बना लिया और भगवान विष्णु को वापस ले आयीं। उस दिन भी श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।
महाभारत की कथा :-
महाभारत में जब ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से अपने ऊपर आये संकटों के निवारण के बारे में पूछा तब भगवान कृष्ण ने उन्हें रक्षा बंधन का पर्व मानाने की सलाह दी। उनके अनुसार रेशमी धागे में इतनी शक्ति है जिससे हम हर समस्या से निजात पा सकते हैं। इसी समय द्रौपदी ने श्री कृष्ण और कुंती ने अभिमन्यु को रखी बंधी थी। महाभारत में रक्षा बंधन की एक और घटना है। जब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया था। उस समय उनकी तर्जनी में चोट आ गयी थी। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी से कपडा फाड़ कर श्री कृष्णा के ऊँगली पर पट्टी बंधी थी। उस दिन भी श्रावन मास की पूर्णिमा थी। राखी की ही लाज रखते हुए भगवान कृष्ण ने चीर हरण के समय द्रौपदी की लाज बचायी थी।
इतिहास की कथा :-
राजपूत जब युद्ध करन जाया करते थे। तब राजघराने की महिलाएं उनके माथे पर कुमकुम का तिलक लगाती थीं और कलाई पर रेशम का धागा बांधती थीं। इस से यह विश्वास रहता था कि वह राजा युद्ध में विजयी होगा। और वह धागा उन्हें उसी तरह वापस लाएगा।
एक और प्रसिद्ध कहानी रक्षाबंधन के साथ जुडी हुयी है। एक बार बहादुरशाह के मेवाड़ पर आक्रमण की पूर्वसूचना मेवाड़ की रानी कर्मावती को मिली। रानी को इस बात का ज्ञान था कि वो अकेले युद्ध करके नहीं जीत सकतीं। इस परेशानी से निकलने के लिए उन्होंने मुग़ल बादशाह हुमायूं को एक पत्र और राखी भेज कर रक्षा की याचना की। हुमांयू एक मुसलमान था फिर भी उसने रानी कर्मावती की भेजी हुयी राखी की लाज रखी और बहादुरशाह से लड़ते हुए मेवाड़ की रक्षा की।
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एक और घटना के अनुसार जब सिकंदर ने भारत पर हमला किया था तो ये कहा जाता था कि राजा पोरस की शक्ति को देखते हुए सिकंदर की पत्नी ने रक्षाबंधन की महत्वता का लाभ उठाते हुए राजा पोरस को राखी बाँधी और अपने पति के लिए जीवनदान माँगा। युद्ध के दौरान हाथ में बाँधी राखी को देख कर पुरूवास ने सिकंदर को नहीं मारा।
इसी प्रकार जब राजा सिकंदर और पोरस के बीच लडाई हुयी तो लडाई से पहले रक्षासूत्र की अदला-बदली हुयी। जब लड़ाई में पोरस ने सिकंदर को गिरा दिया और मारने लगा तब सिकंदर के हाथ में बंधा रक्षासूत्र देख कर पोरस के हाथ वहीं रुक गए। पोरस को तब बंधी बना लिया गया। लेकिन रक्षा सूत्र की लाज रखते हुए पोरस को उसका राज्य वापस कर दिया।
चन्द्रशेखर की कथा :-
पूरे भारतवर्ष में आज़ादी के लिए संघर्ष चल रहा था। अंग्रेज चन्द्रशेखर के पीछे पड़े हुए थे। चन्द्रशेखर आजाद अंग्रेजों से बचने के लिए जगह ढूंढ रहे थे। तभी वे एक घर में पहुंचे जहाँ एक विधवा अपनी बेटी के साथ रहती थी। चन्द्रशेखर आजाद शरीर से हृष्ट-पुष्ट थे। उन्हें देख कर उस विधवा औरत को लगा कहीं कोई डाकू न आ गया हो। यही सोच कर उस विधवा औरत ने उन्हें जगह देने से इंकार कर दिया। जब उस औरत को बातचीत के दौरान पता चला कि वे चन्द्रशेखर आजाद हैं तो उस विधवा औरत ने ससम्मान उन्हें अपने घर में जगह दी। चन्द्रशेखर आजाद को वह रहते हुए ये आभास हुआ कि गरीबी के कारण उस विधवा की बेटी का विवाह नहीं हो पा रहा।
तब चन्द्रशेखर आज़ाद ने उस महिला से कहा, “अंग्रेजों ने मेरे ऊपर पांच हजार रूपए का इनाम रखा है। आप उन्हें मेरी जानकारी देकर वो रूपए पा सकती हैं और अपनी पुत्री का विवाह कर सकती हैं।”
यह सुन कर वह विधवा औरत रो पड़ी और उसने आजाद से कहा,
“भैया! तुम देश कि स्वतंत्रता के लिए अपनी जान दिन-रात हथेली पर लेकर घूमते हो और ना जाने कितनी बहु-बेटियों की इज्ज़त तुम्हारे भरोसे है।”
यह कहते हुए उस औरत ने चन्द्रशेखर आजाद कि कलाई पर रक्षा सूत्र बाँधा और देश सेवा का वचन लिया। रात बीती सुबह जब विधवा औरत उठी तो उसके तकिये के नीचे पांच हजार रूपए रखे थे। साथ में एक पर्ची रखी थी जिस पर लिखा था :- “अपनी प्यारी बहन हेतु छोटी सी भेंट – आजाद।”
रक्षाबंधन का मन्त्र
हमारे हिन्दू संस्कार और मान्यताओ के अनुसार अगर राखी बांधते समय बहने इस मन्त्र का उच्चारण करे तो भाई की आयु में वृद्धि होती है। यही वो मंत्र है जिसे पुजारी या ब्राह्मण रक्षासूत्र बांधते वक़्त पढ़ते है:
“येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वांमनुबध्नामि, रक्षे मा चल मा चल।।”
अर्थ: जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मै आपको बांध रहा हूँ। आप अपने वचन से कभी विचलित ना हो।
रक्षाबंधन का इतिहास में जानिए अनोखी परम्पराएं और रोचक बातें
- राजस्थान में ननद अपने भाभी को विशेष प्रकार की राखी बांधती है जिसे “लुम्बी” कहते है।
- महाराष्ट्र में यह त्यौहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से प्रचलित है।
- तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और ओड़िसा के दक्षिण भारतीय इस पर्व को “अवत्तिम” कहते है।
- कई जगहों पर इस दिन नदी या समुद्र तट पर स्नान के बाद तर्पण कर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है।
- इस दिन अमरनाथ यात्रा भी पूर्ण होती है। गुरु पूर्णिमा से शुरू होकर यह श्रावण पूर्णिमा पर समाप्त होती है।
आज रक्षाबंधन पूरे भारतवर्ष में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। रक्षाबंधन का इतिहास ( Rakshabandhan Ka Itihaas ) और महत्वता तो आप पढ़ चुके हैं। यदि इसके अलावा आपके पास कोई और जानकारी हो तो कमेंट बॉक्स में जरुर शेयर करें।
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धन्यवाद।
बहुत ही बेहतरीन article लिखा है आपने। Share करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। 🙂 🙂