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दया का फल । ये कहानी इतिहास की एक बीती घटना की कहानी है। जो ग़जनी के बादशाह सुबुक्तगीन के साथ घटित हुआ है। उनका नाम शायद ही आप में से किसी ने सुना होगा। इस कहानी को पढ़ने के बाद आप उनके बारे में जान जायेंगे। तो आइये पढ़ते है ग़जनी के बादशाह सुबुक्तगीन की कहानी – दया का फल ।
दया का फल – सुबुक्तगीन की कहानी
सुबुक्तगीन का जन्म 942ई. में बर्स्खान ( वर्तमान में किर्गिस्तान ) में हुआ था। सुबुक्तगीन ग़जनी के बादशाह अलप्तगीन की सेना में एक साधारण सा सैनिक था। उस से पहले वह एक गुलाम था और उसे बादशाह अलप्तगीन ने उसे खरीद लिया था। एक बार सुबुक्तगीन जंगल में शिकार करने गया। वहां उसे एक हिरणी अपने बच्चे के साथ दिखाई पड़ी।
सुबुक्तगीन ने उस हिरणी का शिकार करने के लिए उसका पीछा किया। वह काफी देर उसके पीछे भागता रहा लेकिन हिरणी इतनी तेज थी कि उसके हाथ न आई। हिरणी डर के मारे झाड़ियों में जा छिपी। उसका बच्चा अनुभव ना होने के कारण झाड़ियों के बाहर खड़ा हो गया। सुबुक्तगीन ने हिरणी के बच्चे को ही पकड़ कर उसके पैर बाँध कर घोड़े पर लाद दिया।
उसके बाद उसने हिरणी की तलाश शुरू कर दी। काफी देर बाद जब हिरनी नहीं मिली तो सुबुक्तगीन अपने घोड़े पर बैठ कर वापस लौटने लगा। जब हिरणी ने देखा कि उसके बच्चे को कोई ले जा रहा है तो वह झाड़ियों से निकली और उसके पीछे चल दी। काफी दूर जाने के बाद सुबुक्तगीन ने जब पीछे मुड़ कर देखा तो वही हिरनी उसके पीछे-पीछे दौड़ रही थी। यह देखकर उसका दिल दया से भर गया।
उसने उसी समय हिरणी के बच्चे को आजाद कर दिया। जैसे उस उस बच्चे को आज़ादी मिली वह भाग कर अपनी माँ के पास पहुँच गया। जल्द ही वह हिरनी अपने बच्चे को लेकर जंगल में चली गयी। यह देख सुबुक्तगीन को ख़ुशी का एहसास हुआ। उस दिन रात उसने एक ख्वाब देखा। ख्वाब ने एक देवदूत ने उस से कहा.
“आज तुमने एक हिरणी को उसका बच्चा वापस कर जो दया दिखाई है, उसके फलस्वरूप तुम्हें बादशाहत मिलेगी और तुम्हारा नाम बादशाहों की सूची में लिखा जाएगा।”
भविष्य में सुबुक्तगीन का यह स्वप्न सच भी हुआ। अलप्तगीन जिसने उसे ख़रीदा था। उसकी प्रतिभा को देख कर उससे अपनी पुत्री का विवाह करवा दिया और ‘अमीर-उल-उमरा’ की उपाधि दी। अलप्तगीन की मृत्यु के बाद 977ई. में सुबुक्तगीन गजनी की गद्दी पर बैठा।उसने बादशाह बनने के बाद भारत पर भी हमला किया। भारत के एक हिन्दू शासक जयपाल को हरा कर उसे जीवनदान देने के बदले उसके साथ एक अपमानजनक संधि की। उसके बाद उसने पेशावर में प्रदेशों कि देखभाल के लिए अपनी एक सेना रख दी।
सुबुक्तगीन कि मौत 997 ई. में हुयी। लेकिन उसके बाद उसकी जगह वो बादशाह बैठा जिसने भारत में काफी उत्पात मचाया था। वो था उसका पुत्र महमूद गजनवी। उसने भारत पर लगातार 17 बार हमला किया और भारत की संस्कृति को बहुत नुकसान पहुँचाया।
तो इस तरह हमने जाना कि यदि हमारे हृदय में दया है और हम दूसरों के प्रति दया दिखाते हैं तो उसका फल हमें जरूर मिलता है। लेकिन जो चीज तुरंत मिलती है वह है ख़ुशी। इसलिए अपने हृदय में दया भाव का होना आवश्यक है।
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धन्यवाद।
6 comments
क्या हम आपकी कहानिया अपने Community Radio Station पे आपका नाम बताकर सुना सकते है? Its community radio station…..Radio Sugar…from Maharashtra
जी बिलकुल, आपको अपने श्रोताओं को हमारे वेबसाइट का नाम भी बताना होगा जैसे की, “ये कहानी अप्रतिम-ब्लॉग-डॉट-कॉम से लिया गया है” या फिर “आप ये कहानी अप्रतिम ब्लॉग डॉट कॉम पर पढ़ सकते है”
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Thanks sk
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