सूचना: दूसरे ब्लॉगर, Youtube चैनल और फेसबुक पेज वाले, कृपया बिना अनुमति हमारी रचनाएँ चोरी ना करे। हम कॉपीराइट क्लेम कर सकते है
आप लोगों ने कई ऋषियों और महर्षियों के नाम सुने होंगे। हमें उनके जीवन से एक प्रेरणा मिलती है। उनका जीवन ऐसे पड़ाव से गुजरता है जिसमें उन्हें इतना संघर्ष करना पड़ता है कि वो एक महान व्यक्तित्व बन जाते हैं।ऐसे ही एक महर्षि थे मार्कण्डेय ऋषि। मार्कण्डेय ऋषि सोलह वर्ष कि आयु भाग्य में लेकर जन्मे थे। लेकिन अपनी भक्ति और श्रद्धा के बल पर वे चिरंजीवी हो गए। आइये पढ़ते हैं मार्कण्डेय ऋषि की कहानी :-
मार्कण्डेय ऋषि की कहानी
मृगश्रृंग नाम के एक ब्रह्मचारी थे। उनका विवाह सुवृता के संग संपन्न हुआ। मृगश्रृंग और सुवृता के घर एक पुत्र ने जन्म लिया। उनके पुत्र हमेशा अपना शरीर खुजलाते रहते थे। इसलिए मृगश्रृंग ने उनका नाम मृकण्डु रख दिया। मृकण्डु में समस्त श्रेष्ठ गुण थे। उनके शरीर में तेज का वास था। पिता के पास रह कर उन्होंने वेदों के अध्ययन किया। पिता कि आज्ञा अनुसार उन्होंने मृदगुल मुनि की कन्या मरुद्वती से विवाह किया।
मार्कंडेय ऋषि का जन्म
मृकण्डु जी का वैवाहिक जीवन शांतिपूर्ण ढंग से व्यतीत हो रहा था। लेकिन बहुत समय तक उनके घर किसी संतान ने जन्म ना लिया। इस कारण उन्होंने और उनकी पत्नी ने कठोर तप किया। उन्होंने तप कर के भगवन शिव को प्रसन्न कर लिया। भगवान् शिव ने मुनि से कहा कि,
“हे मुनि, हम तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हैं मांगो क्या वरदान मांगते हो”?
तब मुनि मृकण्डु ने कहा,
“प्रभु यदि आप सच में मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो मुझे संतान के रूप में एक पुत्र प्रदान करें”।
भगवन शंकर ने तब मुनि मृकण्डु से कहा की,
“हे मुनि, तुम्हें दीर्घ आयु वाला गुणरहित पुत्र चाहिए। या सोलह वर्ष की आयु वाला गुणवान पुत्र चाहते हो?”
इस पर मुनि बोले,
“भगवन मुझे ऐसा पुत्र चाहिए जो गुणों की खान हो और हर प्रकार का ज्ञान रखता हो फिर चाहे उसकी आयु कम ही क्यों न हो।”
भगवान् शंकर ने उनको पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया और अंतर्ध्यान हो गए। समय आने पर महामुनि मृकण्डु और मरुद्वती के घर एक बालक ने जन्म लिया जो आगे चलकर मार्कण्डेय ऋषि के नाम से प्रसिद्द हुआ।
महामुनि मृकण्डु ने मार्कण्डेय को हर प्रकार की शिक्षा दी। महर्षि मार्कण्डेय एक आज्ञाकारी पुत्र थे। माता-पिता के साथ रहते हुए पंद्रह साल बीत गए। जब सोलहवां साल आरम्भ हुआ तो माता-पिता उदास रहने लगे। पुत्र ने कई बार उनसे उनकी उदासी का कारण जानने का प्रयास किया। एक दिन महर्षि मार्कण्डेय ने बहुत जिद की तो महामुनि मृकण्डु ने बताया कि भगवन शंकर ने तुम्हें मात्र सोलह वर्ष की आयु दी है और यह पूर्ण होने वाली है। इस कारण मुझे शोक हो रहा है।
इतना सुन कर मार्कण्डेय ऋषि ने अपने पिता जी से कहा कि आप चिंता न करें मैं शंकर जी को मना लूँगा और अपनी मृत्यु को टाल दूंगा। इसके बाद वे घर से दूर एक जंगल में चले गए। वहां एक शिवलिंग स्थापना करके वे विधिपूर्वक पूजा अर्चना करने लगे। निश्चित समय आने पर काल पहुंचा।
महर्षि ने उनसे यह कहते हुए कुछ समय माँगा कि अभी वह शंकर जी कि स्तुति कर रहे हैं। जब तक वह पूरी कर नही लेते तब तक प्रतीक्षा करें। काल ने ऐसा करने से मना कर दिया तो मार्कण्डेय ऋषि जी ने विरोध किया। काल ने जब उन्हें ग्रसना चाहा तो वे शिवलिंग से लिपट गए। इस सब के बीच भगवान् शिव वहां प्रकट हुए। उन्होंने काल की छाती में लात मारी। उसके बाद मृत्यु देवता शिवजी कि आज्ञा पाकर वहां से चले गए।
मार्कण्डेय ऋषि की श्रद्धा और आस्था देख कर भगवन शंकर ने उन्हें अनेक कल्पों तक जीने का वरदान दिया। अमरत्व का वरदान पाकर महर्षि वापस अपने माता-पिता के पास आश्रम आ गए और उनके साथ कुछ दिन रहने के बाद पृथ्वी पर विचरने लगे और प्रभु की महिमा लोगों तक पंहुचाते रहे।
इस तरह भगवान् पर विश्वास कायम रख कर मार्कण्डेय ऋषि ने एक ऐसी उदाहरण दी जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। उनके नाम पर श्री मार्कण्डेश्वर मंदिर परिसर धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र मारकण्डा नदी के तट पर नेशनल हाईवे नंबर 1 के समीप विद्यमान है। यह परिसर 8 एकड़ में फैला हुआ है।
⇒पढ़िए हनुमान चालीसा की रचना और इतिहास | हनुमान चालीसा की कहानी
महर्षि मारकंडेय की कहानी अगर आपको अच्छा लगे तो इसे जरुर शेयर करें, ऐसे ही कहानियो के लिए हमारे साथ जुड़े रहिये।
पढ़िए ये पौराणिक कथाएं-
- गुण का महत्व – रूप बड़ा या गुण | चाणक्य और चन्द्रगुप्त की कहानी
- कालिदास और विद्योत्तमा | कालिदास के विवाह की कहानी
- बड़ो का सम्मान – महाभारत से सीख देता एक प्रसंग
- भारत की पौराणिक संस्कृति | भारतीय संस्कृति की पहचान
धन्यवाद।
32 comments
markande gotar ke brahmano ki kull devi kaun hai ? kirpya btane ki kirpa kre
मार्कण्डेय ऋषि के बारे में बढ़िया जानकारी प्राप्त हुई है । भारतीय संस्कृति को बनाए रखने के लिए हम सभी को प्रयास करना चाहिए । पौराणिक प्रसंगों के श्रृंखला में यह प्रयास सराहनीय है ।
सादर नमन
महर्षि मार्कंडेय के दादा का नाम शुक्राचार्य था
क्या ऋषि मार्कंडेय महर्षि भृगु वंश से संबंध रखते हैं।
Jankari achha laga kuchh details me batayen aur pdf den
दीपक जी आप जो जानकारी चाहते हैं कृपया हमें बताएं…. अपनी ओर से हमने पूरी जानकारी देने का प्रयास किया है…. रही पीडीऍफ़ की बात… तो हमारे ब्लॉग पर अभी पीडीऍफ़ देने की सेवा उपलब्ध नहीं है….धन्यवाद..
मार्कंडेय महामुनी का जन्म स्थान काही है प्लीज व्हॅट्स अप मी 8007271111 or मेल मी
बढ़िया जानकारी,लेकिन थोड़ा और जानने की इच्छा थी,थोड़ा विस्तृत जानकारी मिलती तो ओर ज्यादा कगुशी होती।प्रणाम????????
Mishty ji किस तरह की विस्तृत जानकारी चाहती हैं आप? यदि आप प्रश्न बता सकें तो शायद उनके उत्तर आपको मिल जाएं। धन्यवाद।
क्याो गलत जानकारी देते हो सबको आप लोग इसप्रकार से तो सभी लोग भ्रमित हो जायेंगे। मारकडेय महादेव का मदिर कैथी तहसील वाराणसी में स्थित है और आप लोग की जानकारी के लिए बता दू कि यह मां गंगा तथा गोमती के पवित्र संगम पर है साथ ही साध यह भी कहूंगा कि प्रभु तो हर रूप मे विराजमान है परन्तु गलत जानकारी ना फैलाए।
source: https://youtube.com/watch?v=Css2tuMZAh8
विश्वास कि समस्या हो तो मिडिया का युट्युब लिंक है ऊपर देख लें और संतुष्टि कर लें।
Sahi baat
Jay markhanday ????
Hello sir ji muze mahamuni markandey rushi ki kahani padhkar prasnata hui. Muze ye janana hai ki maharashtra state gadhachiroli district me markhanday village hai vaha markanda nadi ke tal par stith 1 markhenday rushi ka mandir hai vaha bhi mela puja path our yatra hoti hai uske bare me kuch aapke pass jankari ho to bataye ga, aapka dhanyavad jay markandey ????
सूरज जी इस बारे में इन्टरनेट पर जो जानकारी उपलब्ध है वह संतोषजनक नहीं है। हम अपने स्तर पर इसकी जानकारी एकत्रित कर जल्द ही अपने पाठकों को इस बारे में बताएँगे। धन्यवाद।
To ye nashik zilha vanilla le pass Jo martandeya parvat he jiske same saptsrungi mataka pahad he us bareme details kya he aapka pass
Jitendra ingale ji is samay to humare paas koi details nhin hai…lelin jaise hi hume koi detail milegi hum, aap tak jaroor pahunchaenge… tab tak isi tarah humare sath bane rahiye….dhanywad
jis tarah markandey rishi jee ne apni tivra budhhi aur bhakti ka parichaya diya usi prakar se humein apne badon aur gurujanon ka aadar karna chahiye.
markandeyua baba jee ki jai
Bilkul sahi baat kahi aapne prashant rai
markandeyua baba jee ki jai
ye mandir mere gao me h aaj bhi aas paas ke log har ghar me puja hoti haan bhi kai ankho dekhe pramad h
विशाल शुक्ला जी मैं खुद वहां जाता हूँ और मेरा बचपन वहीं गुजरा है। इसी कारण मैं ये लिख पाया। आपके बारे में जानकर मुझे प्रसन्नता हुई। मार्कण्डेय जी की कृपा आप पड़ बनी रहे।
Sandeep jee ek sawal aap se ya puchna chahata hun ki aisi gyan ki story aap kahan se paate hai itni story agar aapne padi hai to realy gyaniyon ka kuch ans aap me jarur hoga our nahi hai to 100 percent aage chal kar hoga dhanyabad aapko.
Mithilesh jha ji ye sab kahaniyan alag-alag kitabe padhne par hi milti hai….. Mai koi gyani nhi bas jo padhta hu use likhne ki ek chhoti si koshish karta hu… Apka bahut-bahut dhanywad….
मार्कण्डेय महाराज का धर्म क्षेत्र जन्म स्थल कहानीं में कुरुक्षेत्र बताया है जबकि
इनका जन्म धर्मक्षेत्र उत्तर प्रदेश के जिला मैंनपुरी के गाँव विधूना में बताया जाता है जो कोसमा रेलवे स्टेशन से मात्र तीन किमी की दूरी पर स्थित है
यहाँ प्रति वर्ष कार्तिक की पूर्णिमा को भारी मेला लगता है जो करीब दस दिन तक चलता है दूर दूर से श्रृद्वालु यहाँ अपनी मनोकामना के लिए आते हैं
यह भी बताया जाता है वनवास के समय २ाम सीता के साथ कुछ समय तक यहाँ रुके थे मार्कण्डेय महाराज ने उनका मार्गदर्शन किया था।
विनोद कुमार जी हमने कहीं भी ये नहीं लिखा की मार्कण्डेय महाराज जन्म कुरुक्षेत्र में हुआ। ये लिखा है की उनके नाम पर श्री मार्कण्डेश्वर मंदिर परिसर धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र मारकण्डा नदी के तट पर नेशनल हाईवे नंबर 1 के समीप विद्यमान है। यह परिसर 8 एकड़ में फैला हुआ है।
जोकि मदिर का पता है। जहाँ भरी मात्र में श्रध्हालू जाते हैं।
मैनपुरी उनकी तपस्थली है। जहाँ उन्हों तप किया था। जानकरी देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
Jaha tak lekh pad kr mujhe samjh aaya hai, likha hai ki Markanday rishi ji ka mandir Kurukshetra district mein markanday nadi par sthapit hai. Un ka janm sthan nhi bataya gya hai Kurukshrta ko. Yaha par magh maas ke shukl paksh ki chaturthi tithi ko Matkanday rishi ji ki jayanti manai jaati hai aur is ke alawa yaha pratyek ravivar ko mela lagta hai.
बहोत ही सुंदर कहानी है।
धन्यवाद शिवाजी विसपुते जी……
Thanks Arman kuntal bro……..hum isi tarah koshish karte rahenge ki achhi se achhi jankari aap sab tak pahunchaye….bas isi tarah humare saath abne rahiye aur humara hausla bahdate rahiye……
shuruaat achhi huyi hai aap jaise readers ke karan……Thanks a lot for being with us…….
Is website ke jariye jo logo ko jankari di jaa rhi hai vo bahut hi achhi hai or isse aage bhi bhadna chahiye taki hamari samaajh bhi jaane ki pahle ki bhartiya sanskrati kya thi or aaj ki bhartiya sanskriti ko kya ho gya hai
Main arman kuntal from mathura dil se is website ki team ko thanku kahta hu
Achhi suruvaat hai or logo se yahu ummed karu ga ki wo vo isse padne ke baad isse apne jeevan main utare taki hamare desh main faily samajik buraiya khatm ho sake
Any sapport visit
Digitalindiatools.Com
Very very nice and best ever post
Thank you very much VS Thakur.
nice post…
Thanks Rashmi ji….