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Angulimala Story In Hindi | अंगुलिमाल और महात्मा बुद्ध की कहानी

by Sandeep Kumar Singh
8 minutes read

Angulimala Story In Hindi

डाकू अंगुलिमाल और महात्मा बुद्ध की कहानी ( Angulimala Story In Hindi  ) के बारे में शायद आप जानते हों। लेकिन अंगुलिमाल कौन था और वो डाकू क्यों बना ये आप नहीं जानते होंगे।

अंगुलिमाल की कहानी
Angulimala Story In Hindi

अंगुलिमाल, जिसका असली नाम “ अहिंसक ” था, का जन्म कोशल राज्य में रहने वाले एक पंडित के घर में हुआ था। जिस रात उसका जन्म हुआ उस रात चारों तरफ बहुत तेजी से बादल चमके थे। जिस कारण अहिंसक के पिता चिंतित हुए और राज्य के ज्योतिष के पास गए।

ज्योतिष ने अहिंसक के पिता को बताया कि उनका बेटा बड़ा होकर डाकू बनेगा। अपनी ही राज्य के लिए वह मुसीबत बनकर खड़ा होगा। जब अहिंसक के पिता को यह बात पता चली तो वे राजा के पास गए।

उन्होंने राजा को साड़ी बात बताई और इच्छा जताई कि उनके पुत्र के कारण भविष्य में राज्य पर कोई मुसीबत न आए इसलिए उसे मार देना ही उचित होगा। परन्तु राजा को यह बात पसंद नहीं आई। उन्होंने कहा कि गौतम बुद्ध का कहना है कि सबमें अच्छाई देखनी चाहिए। आप उसे अच्छी शिक्षा दीजिये। मई आशा करता हूँ कि वह एक सज्जन पुरुष बनेगा।

अहिंसक जैसे-जैसे बड़ा हुआ वह बुद्धिमान होता गया। चौदह वर्ष की आयु में अहिंसक ने उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए अपने पिता से तक्षशिला जाने कि अनुमति मांगी। उसके पिता ने सहर्ष ही उसे अनुमति दे दी।

तक्षशिला पहुँच कर अहिंसक ने जल्द ही अपने गुरुओं का दिल जीत लिया। लेकिन जहाँ किसी को सफलता मिलती है। वहीँ उस सफलता प्राप्त करने वाले इन्सान के प्रति कई लोगों के मन में ईर्ष्या भी उत्पन्न होती है। ऐसे ही अहिंसक के सहपाठियों के मन में भी अहिंसक के प्रति ईर्ष्या उत्पन्न हो गयी। गुरुओं की दृष्टि में अहिंसक के प्रति प्रेम उनसे सहा नहीं जा रहा था।

ऐसे में अहिंसक के सहपाठियों ने उसे गुरुओं की दृष्टि में उसे गिराने की योजना बनाई। जैसे ही उन्होंने अपने गुरु को आते देखा, उन्होंने बोलना शुरू किया,

“अहिंसक बहुत ही बुद्धिमान है। इसीलिए हमारे गुरु उसकी प्रशंसा करते।”

“हां, शायद वह हमारे गुरु से भी ज्यादा बुद्धिमान है। हमारे गुरु की पत्नी को भी ऐसा ही लगता है।”

ऐसी बातें सुन कर गुरु के मन में अहिंसक के प्रति संदेह पैदा हो गया। उन्हें लगा कि एक दिन शायद सचमुच अहिंसक उनसे ज्यादा पढ़ा-लिखा विद्वान् बन जाएगा। यह विचार मन में आते ही उन्होंने उसे गुरुकुल से बाहर निकालने का फैसला कर लिया।

जब गुरु अपने घर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उनकी पत्नी और अहिंसक किसी विषय पर विचार विमर्श कर रहे थे। वे पास जाकर खड़े हो गए परन्तु किसी का ध्यान उनकी ओर न गया। वह तो इसी अवसर की खोज में थे।

अचानक वे गुस्से से बोले, “अहिंसक तुम्हारे गुरु आये और तुम इतने अहंकारी हो गए हो कि मेरे आने पर भी बैठे हुए हो।”

अहिंसक ने अपनें गुरु को समझाने का प्रयास किया परन्तु गुरु तो पहले ही ठान चुके थे कि उसे वहां से निकालना है। तो अंततः उन्होंने यही कहा कि मैं कुछ नहीं सुनना चाहता। तुम्हें यह गुरुकुल छोड़ना ही होगा।

इस तरह गुरुकुल से निष्काषित होने के बाद अहिंसक अपने घर पहुंचा। जब उसके पिता को पता चला कि उसके गुरु नें उसे गुरुकुल से निकाला है तो उन्होंने उसे घर में नहीं आने दिया। उस समय गुरु को निराश करने वाले व्यक्ति को समाज से बाहर कर दिया जाता था। इसलिए घर से निकाले जाने के बाद जब अहिंसक ने काम की खोज की तो उसे किसी ने काम भी नहीं दिया।

इस तरह अहिंसक निराश होकर जंगल में गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि बिना किसी गलती के उसे किस बात की सजा मिल रही थी। लोगों के रवैये ने उसका हृदय परिवर्तन कर दिया। अब वह सबसे बदला लेना चाहता था। इसलिए उस जंगल के रास्ते जब भी कोई गुजरता, वह उसे मार देता और उसकी ऊँगली काट लेता।

उसने कई लोगों को मारा और उनकी उँगलियाँ काट-काट कर उसने उनकी माला बना ली। तब से उसका नाम अंगुलिमाल पड़ गया। व्यापारियों और लोगों की शिकायतों के बाद कोशल राज्य के राजा प्रसेनजीत ने अंगुलिमाल को मारने के लिए अपने सैनिक भेजे। मगर सब व्यर्थ। अंगुलिमाल को कोई भी ना पकड़ सका।

अंत में राजा ने सबसे यह आग्रह किया कि उस रास्ते को छोड़ लोग कोई दूर रास्ता अपना लें। उस दिन से अंगुलिमाल को कोई नया शिकार नहीं मिला।

एक दिन महात्मा बुद्ध उस रास्ते से जा रहे थे। अंगुलिमाल ने दौड़ कर उन्हें पकड़ने का प्रयास किया। महात्मा बुद्ध धीरे-धीरे ही जा रहे थे फिर भी अंगुलिमाल उन्हें भाग कर भी न पकड़ सका। कई बार ऐसा होने पर वह आश्चर्यचकित रह गया और उनसे बोला

“ऐ साधू! रुको।”

इस पर महात्मा बुद्ध बोले,

“मैं तो रुका हुआ हूँ। चल तो तुम रहे हो?”

“क्या मतलब?”

“मतलब यह कि मेरा मन तो शांत है। लेकिन तुम्हारा मन बेचैन है जो शांति की तलाश में है।”

“मुझे प्रवचन मत दो। मैं तुम्हें अभी मार दूंगा।”

“अगर तुम्हारे मन को इस से शांति मिलती है तो मार दो।”

यह बात सुन अंगुलिमाल गौतम बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा। उसे अपनी गलती का अहसास हो गया था। वह समझ चुका था कि वह जो कर रहा था वाह गलत था। यह करने से उसे किसी चीज की प्राप्ति नहीं हो रही थी बल्कि दूसरों को ही अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा था।

इस घटना के बाद अंगुलिमाल गौतम बुद्ध का शिष्य बन गया और उन्हीं के साथ रहने लगा।

एक बार वह भिक्षा मांगने अपने ही नगर में गया तो वहां कुछ लोगों ने उसे पहचान लिया। उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं था कि अंगुलिमाल अब फिर से अहिंसक बन चुका है। इसलिए उन्होंने उसे पहचनाते ही उस पर हमला कर दिया। कुछ ही देर में वहां भीड़ इकट्ठा हो गयी। सभी अहिंसक को मार रहे थे। कुछ डंडों से तो कुछ पत्थर से। अहिंसक चुपचाप मार खाता रहा। उसने किसी से कुछ नहीं कहा। क्योंकि अब वह बदल चुका था।

सभी ने अहिंसक को भयंकर मृत्यु देने के लिए अधमरा छोड़ दिया। थोड़ा होश आने पर अहिंसक किसी तरह गौतम बुद्ध के पास पहुंचा। तब गौतम बुद्ध ने अहिंसक से पूछा,

“जब सब तुम्हें मार रहे थे तब तुम्हें गुस्सा नहीं आया?”

इस पर अहिंसक ने जवाब दिया,

“नहीं, जब मैं लोगों को मारता था तब मुझे इस बात का ज्ञान नहीं था कि मैं क्या कर रहा हूँ। इसी तरह जब वो आज मुझे मार रहे थे तो उन्हें भी नहीं पता था कि मैं बदल गया हूँ और वो गलत्त कर रहे हैं।”

इतना कहते ही अहिंसक ने अपने प्राण त्याग दिए।

तो कैसी लगी आपको यह ( Angulimala Story In Hindi ) अंगुलिमाल की कहानी ? ( Angulimala Story In Hindi ) अंगुलिमाल की कहानी के बारे में अपने विचार कमेंट बॉक्स में लिखना न भूलें।

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धन्यवाद।

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