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माँ की याद में कविता – तू लौट आ माँ | हिंदी कविता माँ के लिए


‘माँ’ एक ऐसा शब्द जिसकी परिभाषा देने की कोशिश तो कई लोगों ने दी है लेकिन माँ की परिभाषा इतनी बड़ी है कि उस पर जितना भी लिखा जाए कम है। हम सब अपनी  माँ को बहुत प्यार करते हैं। भगवान् को तो आज तक नहीं देखा पर जिसने भगवान् के बारे में बताया उस माँ को जरूर देखा है और रोज देखता हूँ।

पर कभी सोचा है उनका क्या जिनकी माँ उनसे दूर चली गयी है। कैसे जीते हैं वो लोग? इसी बात को अपने मन में रख कर मैंने उनकी व्यथा को एक कविता में शब्दों द्वारा पिरोने की कोशिश की है। अगर कोई भूल-चूक हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ। आइये पढ़ते हैं :- ‘ स्वर्गीय माँ की याद में कविता – तू लौट आ माँ ‘

माँ की याद में कविता – तू लौट आ माँ

माँ की याद में कविता - तू लौट आ माँ | हिंदी कविता माँ के लिए

तू लौट आ माँ
तेरी याद बहुत आती है
ये घर घर न रहा
तेरे जाने के बाद मकान हो गया,
ऐसा पसरा है सन्नाटा
मानो श्मशान हो गया,
काम पर जाता हूँ तो
लौट आने का दिल नहीं करता,
यहाँ गूंजती है तेरी आवाज
और मैं हूँ सन्नाटों से डरता,

थक हार कर शाम को जब
मैं घर वापस आता हूँ,
पूरे घर में बस एक
तेरी कमी पाता हूँ,
लेट जाता हूँ तो लगता है
अभी सिर पर हाथ फिराएगी,
देख के अपने बच्चे को
हल्का सा मुस्काएगी,
मगर ख्यालों से अब तू
बाहर कहाँ आती है
हो सके तो तू लौट आ माँ
तेरी याद बहुत आती है।

मैं कभी न रूठुंगा तुझसे
तू रूठी तो तुझे मनाऊंगा
दूर कहीं भी तुझसे मैं
इक पल को भी न जाऊंगा,
पलकों पे आंसू मेरे हैं
तू आके इन्हें हटा जा ना,
अब नींद न आती आँखों में
तू मुझको लोरी सुना जा ना,
न अब क्यों डांटती है मुझको
न ही प्यार से बुलाती है,
क्यों इतना दूर गयी मुझसे
कि अब याद ये तेरी रुलाती है,

चल बस कर अब ये खेल मेरे संग
जो खेले है आँख मिचौली का
दिवाली पे न दिये जले हैं
फीका लगे है रंग अब होली का,
मैं जानता हूं अब न आएगी
फिर भी ये दिल की धड़कन तुझे बुलाती है,
हो सके तो तू लौट आ माँ
तेरी याद बहुत आती है।

देखिये इस कविता का बेहतरीन विडियो :-

आपको ‘ माँ की याद में कविता – तू लौट आ माँ ‘ कविता कैसी लगी हमें अवश्य बताएं। अगर आपकी अपनी माँ के साथ कुछ यादें जुड़ी हैं तो हमसे जरूर बाँटें। ताकि बाकी लोगों को मन की अहमियत पता चले। अंत में बस इतना ही कहना चाहूँगा कि ‘माँ’ से बढ़कर मेरे लिए तो दुनिया में कोई चीज नहीं है। कभी भी अपनी माँ को दुःख मत देना।

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धन्यवाद

40 Comments

  1. मेरी माँ को गए आज एक महिने हुए है
    16/12/2022 को हमारे परिवार को वीरान करके चली गयी
    माँ को बचा नही पाया जब से गयी हैं माँ ऐसा कोई दिन नही जब याद करके रोना न आया हो,
    और मेरी माँ पर ये कविता बहुत सटीक बैठता हैं
    बहुत प्यारी माँ थी जो अब मुझे छोड़ कर भगवान के कदमो में चली गयी😭💔
    माँ अब आप मुझे अपने पास बुला लो अब अकेले नही रहा जाता
    संदीप भैया बहुत सुंदर ऐसे पोस्ट हमारे व्हाट्सएप्प 8052164759 पर भेज दिया करिए🙏😭💔

  2. मैंने भी मेरी माँ को अभी अभी खोया है।इतना असीम प्यार था उनमे कि जो भी उनसे मिलता बस उन्ही का हो जाता दिन भर सिर्फ ईश्वर का ही नाम लेती थी।ना कभी किसी का बुरा किया न किसी को दर्द दिया।उन पर लिखी मेरी एक कविता शेयर करना चाहूंगी।

    ????गृहस्थ संत????
    ———————–
    तुम्हे सोचूँ तो शब्द स्वतः ही निकल पड़ते है माँ
    इतनी मेरी सामर्थ्य नहीं कि तुम पर कोई ग्रंथ, कोई कविता लिख पाऊं

    तुम शब्दातीत,वरणातीत, वर्णनातीत हो
    माँ
    तुम में ही अव्यक्त,अदर्शनीय,ईश्वरीय सत्ता विद्यमान थी माँ
    तुम ही सुखधाम थी माँ

    तुम अविचल,अटल
    तुम समर्पण का शिखर थी माँ

    तुम सृष्टि की सुंदर सर्जना
    ईश्वर की अप्रतिम कृति थी माँ

    तुम्हारी कोख से जन्म लेना सुखद अनुभूति थी और तुम्हारा अंश होना हमारा सौभाग्य

    "सम सीतल नहि त्यागहि नीति
    सरल सुभाउ सबहि सन प्रीति"

    ये पंक्तियां तुम्हारे लिए ही लिखी गई थी शायद

    इतनी शीतलता, इतनी मधुरता तुम कहाँ से लाई थी माँ
    कहीं तुम द्वापर की मीरा तो नहीं थी जिसने ये जन्म भी सिर्फ प्रभु भजन में बिताया

    या त्रेता युग की शबरी जिसने प्रभु श्री राम द्वारा प्रदत्त नवधा भक्ति को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया

    श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।
    अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥

    सब कुछ तो था तुम में
    परीक्षित सी श्रवण भक्ति, कीर्तन शुकदेव का , प्रह्लाद सी स्मरण भक्ति , पादसेवन लक्ष्मी सा, अर्चन पृथुराजा सा तो , वंदन जैसा अक्रूर का था, दास्य भाव श्री हनुमत जैसा ,सख्य भाव श्री अर्जुन का

    और अपने अंतिम समय मे भी तो तुमने भक्ति की सर्वश्रेष्ठ अवस्था "आत्मनिवेदन"को भी पा लिया और अपने आपको ईश्वर के चरणों मे सदा के लिए समर्पित कर दिया

    ना कोई राग ना कोई द्वेष,ना कोई ईर्ष्या ना विद्वेष

    सहनशीलता की प्रतिमूर्ति थी तुम।

    कितना कुछ सह गई तुम

    बिन कहे ही सब कुछ कह गई तुम

    ताउम्र न कोई शिकवा न शिकायत

    ना ही कोई इच्छा व्यक्त की तुमने

    किसी संत की भाँति निर्विकार,निर्विवाद,निरंहकार रही तुम

    कौन कहता है कि संतत्व की प्राप्ति के लिए
    वन में जाना होता है, विरक्त होना पड़ता है या कि सब कुछ त्यागना होता है

    तुम तो सब मे रम कर भी संत ही तो रही माँ
    गृहस्थ संत

    1. अत्यंत भावपूर्ण। लग रहा है प्रत्येक बच्चे की तरफ से आपने मां के बारे में लिख दिया है। आपके लिये प्रार्थना है कि मां की कमी को झेलने की शक्ति मिले आपको।

      1. Meri maa mere sath hai mujhe is bat ki khusi h pr jb se wo bimar hue h tb se hme kuch acha nhi lgta maa ka hath hmesa bacho ke sar pr hona chahiye unke bina jindgi jindgi nhi lgti gher gher gher nhi lgta

  3. ये कविता पड़ के मैं बहुत रोया
    मुझे मेरी मां की बहुत याद आती है

    जब मै 1 साल का था तभी मेरी मां मुझे छोड़ के चली गई और तभी से मै अपने मामा के पास रहेता हूं और आज मेरी उम्र 21 हो गई है

    1. बहुत-बहुत धन्यवाद अभिषेक जी। आप जैसे पाठकों का प्यार मिलता रहा तो ऐसा लिखना जारी रहेगा। बस आप लोगों द्वारा दिया गया प्यार ही हमारी कलम की ताकत है। इसी तरह अपना प्यार बनाएं रखें। धन्यवाद।

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