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न जाने कहाँ तू चली गयी माँ :- माँ की याद में मार्मिक कविता


न जाने कहाँ तू चली गयी माँ :- इंसान को जीवन देने वाली माँ ही होती है। उसके जीवन को आधार  देने वाली भी माँ ही होती है। एक माँ का दर्जा किसी इन्सान के जीवन में भगवान् से कम नहीं होता। वही इन्सान की जननी और पहली गुरु होती है। वही एक बालक को जो संस्कार देती है इसके द्वारा वह एक सफल इन्सान बनता है।

माँ का जीवन में वो स्थान होता है जो खाली होने पर कोई भी नहीं भर सकता। माँ के जाने के बाद ये जीवन बेकार सा लगने लगता है। माँ की याद में अक्सर आँख अपने आप भर जाती है और मन में उसकी छवि अपने आप उभर जाती है। ऐसी ही भावना को मैंने इस कविता में प्रस्तुत करने की कोशिश की है। आशा करता हूँ आप सबको यह कविता ‘ न जाने कहाँ तू चली गयी माँ ‘ अवश्य पसंद आएगी।

न जाने कहाँ तू चली गयी माँ

न जाने कहाँ तू चली गयी माँ

तुझसे मिली साँसे, तुझसे मिला जीवन,
तुझसे ही सब रिश्ते, तुझसे जुड़ा ये मन,
दुनिया तो देती है ठोकर हर दम,
इक तेरी ही गोदी में झूले थे हम,
वो लोरी तेरी सुनके सोते थे हम
तेरे होने से न होता था हमको कोई गम

न जाने कहाँ तू चली गई माँ
वापस आजा ओ माँ
तेरी याद बहुत आती है
बीतें पलों की
यादें रुला जाती हैं।

 

आपस में लड़ते थे जो हम भाई बहन
तू समझाती थी रहो सब मिल जुल कर,
दुःख अपने न हमको बताती थी तू,
देखकर हमको मुस्कुराती थी तू,
भूखे हमको कभी भी न सोने दिया
खाली पेट तो खुद सो जाती थी तू,

न जाने कहाँ तू चली गई माँ,
आज इतना बुलाने पे
क्यों नहीं आती है?
बीतें पलों की
यादें रुला जाती हैं।

जिंदगी में जो खुशियों की है ये बहार
आशीर्वाद है तेरा ये तेरा है प्यार
तेरी बातों को अब तक न भूलें हैं हम
जिंदगी में बहुत दुःख झेले हैं हम
तू दिखती नहीं हैं कहीं भी
तेरा अहसास तो फिर भी साथ ही रहता है

न जाने कहाँ तू चली गई माँ,
अब खुशियाँ भी
पास न आती हैं,
बीतें पलों की
यादें रुला जाती हैं।

पढ़िए :- माँ की याद में कविता – तू लौट आ माँ

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धन्यवाद।

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