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‘ कविता चिड़िया और सूरज ‘ एक प्रकृतिपरक रचना है जिसमें सूरज के साथ चिड़िया के सम्बन्ध को रेखांकित किया गया है। चिड़िया ,सूरज के उगने के साथ उठ जाती है और सूरज डूबने के साथ ही सो जाती है। चिड़िया अपना जीवन पूरी तरह से प्रकृति के साथ एकरूपता रखकर जीती है। उसकी दिनचर्या सूरज के साथ – साथ ही चलती है।
सूरज से ही उसे समय और दिशा का ज्ञान होता है। चिड़िया में भी सूर्य के समान अपार धैर्य होता है। वह किसी भी दुःख से विचलित होए बिना वर्तमान में जीती है। चिड़िया को विश्वास है कि लम्बी काली रात के बाद फिर सूरज उगेगा। हमें भी चिड़िया की तरह हर कष्ट को सहकर भविष्य के प्रति आशावान रहना चाहिए।
कविता चिड़िया और सूरज
बैठ डाल पर उगता सूरज
देख रही है चिड़िया,
नीले नभ में स्वर्ण थाल – सा
है यह कितना बढ़िया।
पूर्व दिशा से ऊपर उठता
किरणों को फैलाता,
दिन भर देकर धूप जगत को
पश्चिम में छुप जाता।
सूरज के स्वागत में चिड़िया
प्रातः गीत सुनाती,
दाना चुगने उड़ जाती फिर
शाम ढले घर आती।
साथ सूर्य के चिड़िया की भी
दिनचर्या है चलती,
धूप – छाँव का खेल खेलते
जीवन – आशा पलती।
यह सूरज की गर्माहट को
पंखों में भर लेती,
और उजालों को सहेज कर
आँखों में धर देती।
चाल समय की सूरज से ही
चिड़िया ने पहचानी,
हर पल की आहट से चिड़िया
नहीं रही अनजानी।
दिशा-ज्ञान भी सूरज से ही
चिड़िया को हो जाता,
राह भटकने का डर इसके
मन को नहीं सताता।
चिड़िया अपना सारा जीवन
सहज भाव से जीती,
सूरज के सम यह धीरज से
कभी न होती रीती।
हम भी सीखें इस चिड़िया से
बिन चिन्ता के जीना,
दुःख की काली रातों को भी
हँसते – हँसते पीना ।
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