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भलाई पर कविता :- परोपकार की सीख देती पद्य कथा | Bhalai Par Katha


भलाई पर कविता में चींटे और चिड़िया के माध्यम से परोपकार की सीख दी गई है। संकट में एक दूसरे के काम आना ही अच्छे पड़ौसी के लक्षण हैं। एक दूसरे की सहायता करने से जीवन आसान हो जाता है और मन प्रसन्न रहता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है अतः उसे  यथासंभव मिलजुल कर रहना चाहिए और संकट में परस्पर सहयोग करना चाहिए।

भलाई पर कविता

भलाई पर कविता

आओ बच्चों ! सुनो ध्यान से
एक बहुत ही मधुर कहानी,
अक्सर इसे सुनाया करती
बचपन में थी मेरी नानी। १।

किसी गाँव में नदी किनारे
था बरगद का पेड़ पुराना,
शुरू किया था उसी वृक्ष पर
इक चिड़िया ने नीड़ बनाना। २।

पास जड़ों के उस बरगद की
बना हुआ था बिल भी छोटा,
बहुत समय से रहता आया
एक उसी में चींटा मोटा। ३।

पहले पहले चींटा चिड़िया
इक दूजे से थे अनजाने,
बोझ बने एकाकीपन में
दिन पड़ते थे उन्हें बिताने। ४।

धीरे-धीरे फिर दोनों में
मेलजोल था बढ़ता जाता,
साथ साथ रह समय बिताना
अब उनको था बहुत सुहाता। ५।

नीचे कभी उतरती चिड़िया
कभी पेड़ पर चींटा चढ़ता,
बीत रहा था हँसी खुशी से
जीवन उनका आगे बढ़ता। ६।

समय एक – सा नहीं रहे पर
होता यह रहता परिवर्तित,
कभी छाँव देता है शीतल
कभी धूप से करता तापित। ७।

एक बार थी हुई गाँव में
बहुत देर तक बारिश भारी,
बनी हुई थी घर में रहना
अब तो लोगों की लाचारी। ८।

बाढ़ नदी में चढ़ आई थी
सभी ओर था फैला पानी,
छुपी घोंसले में चिड़िया को
देख दृश्य होती हैरानी। ९।

पानी बढ़ता ही जाता था
पार नदी के किए किनारे,
अरे ! घुसेगा यह तो बिल में
काँपी चिड़िया डर के मारे। १०।

लगा उतरने बिल में पानी
चींटा अब ऊपर को आया,
अनहोनी की आशंका से
चिड़िया का था मन घबराया। ११।

वह चींटा बह चला बाढ़ में
चिल्लाता था – अरे बचाओ,
डूब मरूँगा मैं पानी में
करो मदद कोई तो आओ। १२।

देख पड़ौसी को विपदा में
चिड़िया की आँखें भर आई,
बनूँ सहायक कैसे इसकी
बात किन्तु यह समझ न पाई। १३।

फिर चिड़िया ने तनिक सोचकर
शीघ्र पेड़ से पत्ता तोड़ा,
उड़ी चोंच में लेकर उसको
चींटे के आगे जा छोड़ा। १४।

जब चींटे ने देखा पत्ता
लगा जोर उस पर चढ़ आया,
सोचा कुछ तो दूर हो गया
आज मौत का सिर से साया। १५।

जब चींटे ने नजर घुमाई
देखी चिड़िया ऊपर उड़ते,
इसने ही है जान बचाई
समझ गया वह पलक झपकते। १६।

धीरे-धीरे वह पत्ता भी
बहते बहते लगा किनारे,
उतर भूमि पर आया चींटा
काँप रहा जो डर के मारे। १७।

सिमट गया जब सारा पानी
चींटा वापस बिल में आया,
हाथ जोड़कर दोनों अपने
चिड़िया का आभार जताया। १८।

फिर से जीवन पटरी पर था
भूले मान इसे वे सपना,
सचमुच वह जीता है सुख से
याद न दुःख जो रखता अपना। १९।

और पड़ौसी वह ही अच्छा
जो संकट में साथ निभाए,
प्रेम-भाव आपस में हो तो
जीवन – राह सुगम हो जाए। २०।

बाद इसी घटना के कुछ दिन
चींटा बैठा था बिल बाहर,
चौंक पड़ा वह तभी अचानक
झाड़ी में कुछ आहट पाकर। २१।

सावधान हो देखा उसने
छुपा हुआ था वहाँ शिकारी,
तीर चलाने की चिड़िया पर
चुपके से करता तैयारी। २२।

बैठी थी डाली पर चिड़िया
इन सबसे होकर अनजानी,
नहीं पता था यहाँ किसी ने
उसे मारने की थी ठानी। २३।

सिहर उठा चींटा अन्दर तक
जब उसने खतरा पहचाना,
सोचा चाहे जैसे भी हो
चिड़िया के है प्राण बचाना। २४।

मेरे ऊपर ऋण चिड़िया का
चढ़ा हुआ है कितना भारी
इसे उतारूँ कुछ तो मैं भी
आई है अब मेरी बारी। २५।

आज मिला है अवसर मुझको
इस जीवन में करूँ भलाई,
जान बचाने में चिड़िया की
नहीं करूँगा तनिक ढिलाई। २६।

तब चींटे ने शुरू कर दिया
जल्दी जल्दी आगे बढ़ना,
पास शिकारी के जा उसको
शीघ्र पैर पर था चढ़ना। २७।

रहा निशाना साध शिकारी
ध्यान दिया ना उस चींटे पर,
तभी काट खाया चींटे ने
अपना पूरा जोर लगाकर। २८।

“अरे बाप रे ! काट लिया रे ! ”
तभी शिकारी लगा चीखने,
दिन में ही उसको पीड़ा से
अब तो तारे लगे दीखने। २९।

शोर निकट ही सुन चिड़िया ने
खतरे का अनुमान लगाया,
झटपट वह उड़ गई शाख से
तीर पास में जब तक आया। ३०।

चूक गया था तीर निशाना
मलता था अब हाथ शिकारी,
और दर्द के कारण रह रह
भरता भी जाता सिसकारी। ३१।

पाँव शिकारी ने जब देखा
सूजन वहाँ बहुत थी आई,
ठीक तरह चलने में उसको
अनुभव होती थी कठिनाई। ३२।

तभी शिकारी ने देखा था
तेजी से वह चींटा जाता,
भाग रहा था पूरे दम से
जैसे अपनी जान बचाता। ३३।

समझ गया वह चतुर शिकारी
काम इसी चींटे का यह सब
बोला – कौन बचा पाएगा
इसको मेरे हाथों से अब। ३४।

और मारने जब चींटे को
बढ़ा शिकारी गुस्से में भर,
इतने में तो जा पहुँचा था
वह चींटा बिल के ही अन्दर। ३५।

मुँह लटका रह गया शिकारी
ले सामान चला लँगड़ाते,
खुशियों से भर देख रहे थे
चींटा चिड़िया उसको जाते। ३६।

चींटे चिड़िया के जीवन में
फिर लौटे सुख के उजले पल,
लिया धैर्य से काम उन्होंने
छँटे दुःखों के काले बादल। ३७।

बच्चों ! जितना बन पड़ता हो
हम औरों की करें भलाई,
भले काम करने वालों ने
जग में सुख की ज्योति जलाई। ३८।

हिलमिल कर रहने वालों से
बाधाएँ टकरा कर हारी,
काँटे भी इनके जीवन को
महका जाते बन फुलवारी। ३९।

सभ्य कहाकर भी जो मानव
कभी और के काम न आते,
अच्छे उनसे चींटा चिड़िया
जो विपदा में साथ निभाते। ४०।

पढ़िए :- शिक्षाप्रद बाल कविता | झूठ के पाँव (पद्य कथा)

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