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बसंत के दोहे , जो करते हैं बसंत ऋतु के दृश्य का शब्दों में वर्णन। जब खिलते उपवन में फूल और खेतों में महकती है पीली-पीली सरसों तब हर ओर से पंछियों के चहकने की आवाजें आती हैं। चारों तरफ सुहाना दृश्य होता है। ऋतुराज बसंत के बारे में पढ़िए और आनंद लीजिये वसंत और बहार से संबंधित बेहतरीन दोहों का “ बसंत के दोहे “ में :-
बसंत के दोहे
1.
ऋतु बसंत से हो गया, कैसा ये अनुराग ।
काली कोयल गा रही, भांति-भांति के राग ।।
2.
पीली सरसों खेत में, लगती बहुत अनूप ।
लगे धरा ने धर लिया, दुल्हन जैसा रूप ।।
3.
सबके मन को मोहती, पुष्पों की मुस्कान ।
प्यारे लगें बसंत में,सभी खेत बागान ।।
4.
धरती सुंदर सांवरी, महके सारे खेत ।
दृश्य मनोरम देखते, भूले अपना चेत ।।
5.
हरियाली हर ओर है, आमों पर है बौर ।
अंत हुआ ऋतु शीत का, है बसंत का दौर ।।
6.
गेहूँ की बाली हिले, पुरवाई के संग ।
सभी दिशा में दिख रहे, हृदय लुभाते रंग ।।
7.
अंबर में खग विचरते, फैलाते संदेश ।
खुशियाँ आयीं बसंत में, पतझड़ गया कलेश ।।
8.
खोला कुदरत ने यहाँ, रंगों का भंडार ।
ऋतु बसंत में लग रहा, सुन्दर यह संसार ।।
9.
मातु शारदा ने दिया, नया धरा को रूप ।
कुदरत है मन मोहती, लगे सुहानी धूप ।।
10.
सुगन्ध पुष्पों की मिले, होते ही भिनसार ।
कली-कली पर डोलते, भौरें कर गुंजार ।।
11.
करते हैं सबका भला, सच्चे साधु संत ।
जैसे हरियाली करे, पतझड़ बाद बसंत ।।
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धन्यवाद।