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हम में से कई लोग अक्सर तीर्थ स्थानों पर जाते हैं। तीर्थ स्थान पर जाते समय हमारा सारा ध्यान वहीं केन्द्रित होता है। हम ऐसा सोचते हैं कि हमें वहां पहुँच कर पुण्य की प्राप्ति होगी। परन्तु पुण्य की प्राप्ति के लिए तीर्थ स्थानों की नहीं इंसानियत कि जरुरत होती है। ऐसी ही एक उदाहरण संत एकनाथ के जीवन से हम आपके लिए लाये हैं :- सीख देती कहानी – सच्चा पुण्य।
सीख देती कहानी – सच्चा पुण्य
संत एकनाथ महारष्ट्र के प्रसद्ध संतों में से एक थे। नामदेव के बाद इन्हीं का नाम सबसे ऊपर आता है। इनका जन्म 1533ई. से 1599ई. के बीच पैठण में हुआ। इन्होंने जाती प्रथा के विरुद्ध आवाज उठाई। इनकी प्रसिद्धि भगवद गीता के मराठी अनुवाद करने से हुयी। संत एकनाथ कभी गुस्सा नहीं करते थे। मनुष्यों के साथ-साथ वो जानवरों को भी प्यार करते थे। इसका उदहारण उनके जीवन की एक घटना से मिलता है।
एक बार संत एकनाथ के मन में त्रिवेणी ( जहां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है ) जाकर स्नान करने और वहां से जल भरकर रामेश्वरम में चढाने का विचार आया। उन्होंने ने अपनी यह इच्छा दुसरे संतो के समक्ष रखी जिसे सभी ने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। सामूहिक यात्रा करते हुए सभी प्रयाग पहुंचे। प्रयाग पहुँचने के बाद सब लोगों ने त्रिवेणी में स्नान किया। त्रिवेणी में स्नान करने और भोजन ग्रहण करने के बाद सभी ने अपने-अपने कांवड़ में त्रिवेणी का पवित्र जल भरा और रामेश्वरम कि यात्रा पर चल निकले।
सभी संत प्रभु का स्मरण करते हुए रामेश्वरम की ओर प्रस्थान कर रहे थे। तभी उनकी दृष्टि मार्ग पर पड़े एक गधे पर पड़ी। वह गधा प्यास से तड़प रहा था। उसकी ये हालत सभी संत खड़े होकर देख रहे थे। वे चाहते तो उस गधे को त्रिवेणी से लाया जल पिला कर उसके प्राण बचा सकते थे। परन्तु सब के में यह प्रश्न आ रहा था कि अगर उन्होंने वह पवित्र जल गधे को पिला दिया तो रामेश्वरम में जल चढाने के पुण्य से वंचित रह जाएँगे।
सब अभी सोच ही रहे थे कि संत एकनाथ ने अपनी कांवड़ से पवित्र जल निकाला और उस गधे को पिला दिया। सब आश्चर्यचकित होकर संत एकनाथ और उस गधे की ओर देखने लगे। देखते-देखते ही गधा उठा और वहीं पास में हरी-हरी घास चरने लगा। इस पर सब संतों ने कहा कि,
” आपने अपना जल गधे को पिला दिया। अब तो आप रामेश्वरम में जल नहीं चढ़ा पाएँगे और आप उस पुण्य से वंचित रह जाएँगे।”
तब संत एकनाथ ने उन्हें उत्तर दिया,
” प्रभु तो कण-कण में निवास करते हैं। वह तो हर जीव में हैं। उस गधे को जल पिलाकर और उसके प्राण बचा कर मुझे वो पुण्य मिल गया जो मैं लेने जा रहा था। “
यह उत्तर सुन सभी निरुत्तर हो गए। इस तरह संत एकनाथ ने सच्चे पुण्य की परिभाषा दी। संत एकनाथ ने एक ऐसी उदाहरण सबके सामने रखी जिससे यह शिक्षा मिलती है कि संसार का हर प्राणी एक सामान है। अगर किसी जीव जंतु की सहायता हम कर सकते हैं तो हमें अवश्य करनी चाहिए। भगवान का निवास कण-कण में है और सच्चा पुण्य इंसानियत से ही प्राप्त होता है।
दोस्तों अगर आपने भी कभी ऐसी स्थिति का सामना किया है तो हमारे साथ जरुर साझा करें और हमें जरुर बताएं की आपको यह सीख देती कहानी कैसी लगी।
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धन्यवाद।