Home » कहानियाँ » मोटिवेशनल कहानियाँ » एकलव्य की कहानी | महान धनुर्धर एकलव्य की जीवन की कथा

एकलव्य की कहानी | महान धनुर्धर एकलव्य की जीवन की कथा

by Sandeep Kumar Singh
9 minutes read

Eklavya Story In Hindi – कहते हैं ना कि नदी को रास्ता नहीं दिखाना पड़ता, वो खुद-ब-खुद अपना रास्ता बना लेती है। इसी प्रकार पुराने समय में एक ऐसा शिष्य हुआ जिसने अपने हुनर और गुरु भक्ति से अपना नाम इतिहास में दर्ज करवा लिया। वो वीर योद्धा था एकलव्य। लेकिन इस वीर योद्धा की जिंदगी का अंत कैसे हुआ। आइये जानते है वीर  एकलव्य की कहानी विस्तार में :-

महान धनुर्धर एकलव्य की कहानी

एकलव्य की कहानी | महान धनुर्धर एकलव्य की जीवन की कथा

बात उस समय की है, जब शिक्षा का रूप आज से बहुत अलग हुआ करता था। उस समय के विद्यालय गुरुकुल हुआ करते थे। विद्यार्थियों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए सब अपने गुरुके पास आश्रम में ही रहते थे| सभी मिलजुल कर एक परिवार की तरह रहते और मिल बाँट कर सब काम किया करते थे। सभी शिष्य बड़ी निष्ठा और ईमानदारी के साथ शिक्षा प्राप्त करते थे। उस समय शिक्षा भी कुल के अनुसार ही दी जाती थी। ब्राह्मणों और क्षत्रियों के इलावा किसी को भी शिक्षा नहीं दी जाती थी।

महाभारत काल मेँ प्रयाग (इलाहाबाद) के तटवर्ती प्रदेश मेँ सुदूर तक फैला हुआ एक राज्य श्रृंगवेरपुर था। व्यात्राज हरिण्यधनु (Vyatraj Harinyadhanu) उस आदिवासी इलाके के राजा व एक महान योद्धा थे। गंगा के तट पर अवस्थित श्रृंगवेरपुर उसकी सुदृढ़ राजधानी थी। उस समय श्रृंगवेरपुर राज्य की शक्ति मगध, हस्तिनापुर, मथुरा, चेदि और चन्देरी आदि बड़े राज्योँ के समकक्ष थी।

निषादराज हिरण्यधनु और रानी सुलेखा व उनकी प्रजा सुखी और सम्पन्न थी। निषादराज हिरण्यधनु की रानी सुलेखा ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम “अभिद्युम्न” रखा गया। बचपन में वह “अभय” के नाम से जाना जाता था। बचपन में जब “अभय” शिक्षा के लिए अपने कुल के गुरुकुल में गया तो अस्त्र शस्त्र विद्या में बालक की लगन और एकनिष्ठता को देखते हुए गुरू ने बालक को “एकलव्य” नाम से संबोधित किया।

सारी शिक्षाएँ प्राप्त कर एकलव्य युवा हो गया तब उसका विवाह हिरण्यधनु के एक निषाद मित्र की कन्या सुणीता से हुआ। एकलव्य को अपनी धनुर्विद्या से संतुष्टि न थी इस कारन धनुर्विद्या की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लीये उसे उस समय धनुर्विद्या में दक्ष गुरू द्रोण के पास जाने का फैसला किया।

एकलव्य के पिता जानते थे कि द्रोणाचार्य केवल ब्राह्मण तथा क्षत्रिय वर्ग को ही शिक्षा देते हैं और उन्होंने एकलव्य को भी इस बारे में बताया परंतु धनुर्विद्या सीखने की धुन और द्रोणाचार्य को अपनी कलाओं से प्रभावित करने की सोच लेकर उनके पास गया। परंतु ऐसा कुछ भी न हुआ और गुरु द्रोणाचार्य ने उसे धनुषविद्या देने से इनकार कर दिया।



एकलव्य इस बात से तानिक भी आहत ना हुआ और उसने वहीँ जंगल में रह कर धनुर्विद्या प्राप्त करने के ठान ली। उसने जंगल में द्रोणाचार्य की एक मूर्ती बनायी और उन्हीं का ध्यान कर धनुर्विद्या में महारत हासिल कर ली।

एक दिन आचार्य द्रोण अपने शिष्योँ और एक कुत्ते के साथ आखेट के लिए उसी वन में पहुँच गए जहाँ एकलव्य रहते थे। उनका कुत्ता राह भटक कर एकलव्य के आश्रम पहुँच गया और भौंकने लगा। एकलव्य उस समय धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहे थे। कुत्ते के भौंकने की आवाज से एकलव्य की साधना में बाधा पड़ रही थी। अतः उसने ऐसे बाण चलाये की कुत्ते को जरा सी खरोंच भी नहीं आई और कुत्ते का मुँह भी बंद हो गया। एकलव्य ने इस कौशल से बाण चलाये थे कि कुत्ते को किसी प्रकार की चोट नहीं लगी और अपने बाणों से कुत्ते का मुँह बंद कर दिया।

कुत्ता द्रोण के पास भागा। कुत्ता असहाय होकर गुरु द्रोण के पास जा पहुंचा। द्रोण और शिष्य ऐसी श्रेष्ठ धनुर्विद्या देख आश्चर्य मेँ पड़ गए। वे उस महान धुनर्धर को खोजते-खोजते एकलव्य के आश्रम पहुंचे और देखा की एकलव्य ऐसे बाण चला रहा है जो कोई चोटी का योद्धा भी नहीं चला सकता। ये बात द्रोणचार्य के लिये चिंता का विषय बन गयी। उन्होंने एकलव्य के सामने उसके गुरु के बारे में जानने की जिज्ञासा दिखाई तो एकलव्य ने उन्हें वो प्रतिमा दिखा दी।

उन्हें यह जानकर और भी आश्चर्य हुआ कि द्रोणाचार्य को मानस गुरु मानकर एकलव्य ने स्वयं ही अभ्यास से यह विद्या प्राप्त की है। अपनी प्रतिमा को देख आचार्य द्रोण ने कहा कि अगर तुम मुझे ही अपना गुरु मानते हो तो मुझे गुरु दक्षिणा दो। एकलव्य ने अपने प्राण तक देने की बात कर दी। गुरु दक्षिणा में गुरु द्रोण ने अंगूठे की मांग की जिससे कहीं एकलव्य सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर ना बन जाए अगर ऐसा हुआ तो अर्जुन को महान धनुर्धर बनाने का वचन झूठा हो जाएगा। एकलव्य ने बिना हिचकिचाहट अपना अंगूठा गुरु को अर्पित कर दिया। इसके बाद एकलव्य को छोड़ कर सब चले गए।

एक पुरानी कथा के अनुसार इसका एक सांकेतिक अर्थ यह भी हो सकता है कि एकलव्य को अतिमेधावी जानकर द्रोणाचार्य ने उसे बिना अँगूठे के धनुष चलाने की विशेष विद्या का दान दिया हो। कहते तो ये भी हैं कि अंगूठा कट जाने के बाद एकलव्य ने तर्जनी और मध्यमा अंगुली का प्रयोग कर तीर चलाने लगा। यहीं से तीरंदाजी करने के आधुनिक तरीके का जन्म हुआ। अत: एकलव्य को आधुनिक तीरंदाजी का जनक कहना उचित होगा। निःसन्देह यह बेहतर तरीका है और आजकल तीरंदाजी इसी तरह से होती है।



बाद में एकलव्य श्रृंगबेर राज्य वापस आ गए और वहीँ रहने लगे। पिता की मृत्यु के बाद वहाँ का शासक बन गए और अमात्य परिषद की मंत्रणा से वह न केवल अपने राज्य का संचालन करते, बल्कि निषाद भीलोँ की एक सशक्त सेना और नौसेना गठित कर ली और अपने राज्य की सीमाओँ का विस्तार किया।

इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार निषाद वंश का राजा बनने के बाद एकलव्य ने जरासंध की सेना की तरफ से मथुरा पर आक्रमण कर यादव सेना का लगभग सफाया कर दिया था। यादव वंश में हाहाकर मचने के बाद जब कृष्ण ने दाहिने हाथ में महज चार अंगुलियों के सहारे धनुष बाण चलाते हुए एकलव्य को देखा तो उन्हें इस दृश्य पर विश्वास ही नहीं हुआ।

एकलव्य अकेले ही सैकड़ों यादव वंशी योद्धाओं को रोकने में सक्षम था। इसी युद्ध में कृष्ण ने छल से एकलव्य का वध किया था। उसका पुत्र केतुमान महाभारत युद्ध में भीम के हाथ से मारा गया था।

जब युद्ध के बाद सभी पांडव अपनी वीरता का बखान कर रहे थे तब कृष्ण ने अपने अर्जुन प्रेम की बात कबूली थी।

कृष्ण ने अर्जुन से स्पष्ट कहा था कि “तुम्हारे प्रेम में मैंने क्या-क्या नहीं किया है। तुम संसार के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहलाओ इसके लिए मैंने द्रोणाचार्य का वध करवाया, महापराक्रमी कर्ण को कमजोर किया और न चाहते हुए भी तुम्हारी जानकारी के बिना भील पुत्र एकलव्य को वीरगति प्रदान की और इन सब के पीछे केवल एक ही वजह थी कि तुम धर्म के रास्ते पर थे। इसलिए धर्म की राह कभी मत छोड़ना’।


एकलव्य की कहानी से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए और अपने हौसलों से हालातों को बदलना चाहिए। आपने इस कहानी से क्या शिक्षा प्राप्त की कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें। और इस एकलव्य की कहानी को अधिक से अधिक शेयर करे,

पढ़िए अप्रतिम ब्लॉग की बेहतरीन धार्मिक रचनाएँ –

हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब करें :-

apratimkavya logo

धन्यवाद।

आपके लिए खास:

72 comments

Avatar
Subhash chandra nishad सितम्बर 22, 2022 - 10:02 पूर्वाह्न

Court ka kya faisla aaya jakar dekh lo.
Aaj ka jamana hota to guru dronacharya ko saja jarur multi.

Reply
Avatar
डॉ सी कामेश्वरी अगस्त 7, 2022 - 6:05 अपराह्न

संदीप जी !!! आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं | मैं ने अनेकों बार इनका सहारा लिया है | सरल भाषा में सटीक विषय पर आप के लेख प्रस्तुत होते हैं | समाज सेवा और साहित्य निर्माण की इस कला के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएँ |

Reply
Avatar
किशन जुलाई 12, 2022 - 7:20 पूर्वाह्न

जब कोई इतिहास लिखा जाता है तो उसका रेफरेंस दिया जाता है ऐसे तो कोई भी कुछ भी लिख देगा क्योकि जो आपको समझ आएगा वही आप लिखेंगे क्योकि हर आदमी के समझने का तरीका अलग होता है इसलिए आपने ये कहानी अपने मन से लिखी है नही तो आप लिखो की इसे आपने गीता के किस अध्याय में किस श्लोक के आधार पर लिखा इस तरह सिर्फ पैसा कमाने के लिए अधूरी बात नही लिखना चाहिए में इसका पूर्ण विरोध करता हु और आपसे अनुरोध करता हु की आप इसे या तो रेफ्रेन्स के साथ लिखे या इसे डिलीट कर दे धन्यवाद

Reply
Avatar
Vijay मई 20, 2021 - 12:23 पूर्वाह्न

Kahani bahut achhi share ki apne ….I know….real story hai ye

Reply
Avatar
Hemant prajapati मई 1, 2020 - 1:21 अपराह्न

संघर्ष एक ऐसी चाबी है
जो जीवन के हर ताले को देती है ।

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh मई 2, 2020 - 11:15 पूर्वाह्न

सही बात कही आपने हेमंत जी….

Reply
Avatar
मुकेश नागर नवम्बर 25, 2021 - 10:29 अपराह्न

Sir,आपको तहें दिल से बहुत -२ धन्यवाद! पहली बार किसी ने सत्य लिखा है की एकलव्य एक निषाद जाति के राजा का पुत्र था! बाक़ी सभी ने तोड़ मरोड़ कर अपने हिसाब से पेश किया है! जिससे बहुत भ्रांतियाँ है!

कोई एकलव्य को कृष्णा के चाचा का लड़का बताया है मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि ! अगर एकलव्य कृष्ण के चाचा के लड़के थे तो कृष्ण उनकी हत्या क्यों की?
और फिर वह निषादो का राजा क्यों बना जबकि यदि वह कृष्ण के चाचा काँ लड़का था तों उसे यादव सेना सेना संचालन करना चाहिए था और यादवों राजा होना चाहिए था!

एसी तरह सत्य घटना पर सत्य लिखते रहे जिससे हमें अपने महापुरुषों से सही दिशा में प्रेरणा मिलती रहे!
2- कृपया माता सत्यवती , Maharishi वेद व्यास और Maharishi बाल्मीकी जी कौन से जाति से सम्बन्ध है कृपया सत्यता से मर्गदर्शन करने की कृपा करे ? और इनके बारे ज़रूर लिखे!

धन्यवाद?

Reply
Avatar
Mukesh Shah अप्रैल 10, 2020 - 11:21 अपराह्न

What is your story true but not found duryodhan of eklavy in mahabharat because eklavy is not with duryodhan in mahabharat and perhaps eklavy is not told king in mahabharat

Reply
Avatar
भागवतानंद अप्रैल 8, 2020 - 4:20 अपराह्न

कहानी के लिए धन्यवाद।
कुछ विद्या के मंत्र भी होते हैं। एकलव्य धनुर्विद्या के मंत्र भी जानता था। इतिहास में कई प्रसंग मिलते हैं, जिसके आधार पर ये कहा जा सकता है कि किसी का चिंतन करते करते जिसका चिंतन किया जाता है, उसके मन (अंत;करण) से हमारे अंतर्मन की एकता हों जाती है। यही रहस्य है कि एकलव्य धनुर्विद्या के मंत्र भी जानता था। ॐ

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh अप्रैल 8, 2020 - 5:06 अपराह्न

जानकारी साझा करने के लिए धन्यवाद भागवतानंद जी।

Reply
Avatar
संजय कुमार दिसम्बर 21, 2019 - 7:59 अपराह्न

श्रीमान सभी के अपने विचार है , सच का पता नही ,किसी को अपना आदर्श मानकर उसी के अनुसार बनने का प्रयाग करना क्या गलत होता है? सायद नही, हम बिना किसी सहयोग के उसी की तरह बन भी जाते है तो मैं ये समझता हूँ कि ये एक अद्भुत कला होगी आज का मानव अर्थात जिसे आदर्श माना गया है वो प्रसन्न होगा। वो उसकी कला का सम्मान करेगा उसके अधिगम कौसल का सम्मान करेगा।

Reply
Avatar
D.rao दिसम्बर 8, 2019 - 10:39 अपराह्न

Dronachrya ne eklavya se jo guru dksina li vo waqt ki mang thi…. Pr ye bat bhi nhi bhulni chahiye ki… Gurudksina ki vajh se eklavya ka nam itihas me amar huaa….eklavya mhan dhnurdhar the…. To karn or pitamah bhism bhi km nhi the…. Arjun ke pas divyastra or vasudev krisna the…… OR us pr dhram yuddh ka uutardahitya… tha.

Reply
Avatar
मृदुल जोशी जुलाई 14, 2019 - 7:48 अपराह्न

द्रोणाचार्य ने कब एकलावय का अपमान किया और उसे आश्रम से भगा दिया इसका स्पष्टीकरण दें अथवा व्यर्थ के प्रपंच न परोसे | द्रोणाचार्य ने अपनी विवशता जाहीर कि थी न कि एक्ल्व्य का अपमन किया था | विनती है या तो कथाएँ सही रूप मे सबके सामने रखे नहीं तो लिखना बंद कर दें |

Reply
Avatar
navjot dhillon अप्रैल 7, 2019 - 5:06 अपराह्न

bhot acchi khani plzz ase or khaniya share krte rahe hme unka intezar rehta hai www.xfitnessworld.com

Reply
Avatar
दीपू फ़रवरी 18, 2019 - 10:27 अपराह्न

जब दौणा शिक्षा नही दिया था तो अंगुठा

क्यो कटवाया उसे गुरु नही कहना चाहिए

Reply
Avatar
Ram फ़रवरी 12, 2019 - 8:36 अपराह्न

Thank you for your posting…this a very good story which have to given me an extra information for learning..

Reply
Avatar
Dilip parmar फ़रवरी 7, 2019 - 7:17 अपराह्न

Age badhte rehna ye sahi bat per jarasant jese adharmi ka sath Dena uchit nahi tha apni kusalta ka dharma ke liye prayog Karna chahiya ye Sikh me leta hi

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh फ़रवरी 7, 2019 - 8:07 अपराह्न

जी बहुत बढ़िया दिलीप परमार जी…

Reply
Avatar
Ramesh Patil जनवरी 23, 2019 - 3:07 पूर्वाह्न

Amazing Article, I loved to Know About Eklavya. I Personally thinks Eklavya is one the best archer of Mahabharata.
Recently I come across one Eklavya Story Please tell me wheather its real or fake

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh जनवरी 30, 2019 - 8:40 अपराह्न

I had seen some parts and logically they were right…

Reply
Avatar
Naveen नवम्बर 26, 2018 - 4:10 अपराह्न

Bahi ji eska pdf bhej dete bahut accha rahta bahuy acchi lagi story

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh दिसम्बर 2, 2018 - 10:20 अपराह्न

जी नवीन जी इसका PDF भेजना हमारे लिए संभव नहीं है लेकिन आप इसका लिंक सबके साथ शेयर कर सकते हैं….

Reply
Avatar
Shiv prasad सितम्बर 9, 2018 - 11:39 पूर्वाह्न

Dronacharya ne Eklavya ka aangutaa isliye manga taki ram unka shisya tha or eklavya bina guru ke bina itna aacha dhanudhar bna agr ram ka Eklavya se aaman saman hota to ram har jata isliye unhone unka aanghuta hi mag liya jab aanghuta hi nhi rhega to Bo tir kaisa chalayega

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh सितम्बर 10, 2018 - 12:55 अपराह्न

शिव प्रसाद जी राम एकलव्य से युद्ध नहीं कर सके थे। आप शायद अर्जुन कहना चाहते थे…. तो मैं यही कहूँगा कि हर के अपने विचार हैं। सबकी मानसिकता अलग-अलग है।

Reply
Avatar
मंगलाराम जून 19, 2018 - 11:27 पूर्वाह्न

धन्यवाद
आपने सच्ची कहानी लिखी तोड़ मोड़ नहीं किया।
वैसे मेने अन्ये लेखको की कहानी पढ़ी।
उसमे सचाई काम जूठ ज्यादा पिरोया गया है।
थैंक्स। धनयवाद।

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh जून 19, 2018 - 2:23 अपराह्न

मंगलाराम जी अप्रतिमब्लॉग का यही लक्ष्य है कि पाठकों तक सही जानकारी पहुंचाई जाए। इसीलिए हमने चाहे काम लेख लिखे हों परंतु इस बात का ध्यान रखा है कि उसमें सच्चाई हो।
धन्यवाद।

Reply
Avatar
AJINKYA BHIL मई 26, 2018 - 12:36 पूर्वाह्न

Veer Eklavya killed by (krishna)lkgod.that is his lluck.Veer Eklavya is greatest dhanurdhar than arjun.He is true student all of than drona student8.this is real truth. dangerous&real yoddhas in mahabharat -eklavya,karn. i like both of this persons. Iproud of my categery st (bhi)l.becouse eklavya is our king.

Reply
Avatar
sunil toppo मई 23, 2018 - 9:02 पूर्वाह्न

सही हैं कि गुरु द्रोण ने हुनर को कुचल डाला इसका यही मतलब था कि ईसके रहते हुए मैं अर्जून को महान धनुष धारी नहीं बना सकता
..।.।मैं खुद eklaya school study ki hai….
…..आज.सारा इतिहास हसता.हैं गूरू द्रोणा पर..
…..?..खून से सना eklaya का अगूठा इतिहास बताता हैं

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh मई 24, 2018 - 6:41 अपराह्न

सबके अपने-अपने विचार हैं सुनील जी और सच्चाई से भी सब वाकिफ हैं।

Reply
Avatar
किशन जुलाई 12, 2022 - 7:23 पूर्वाह्न

भाई साहब ये जो भी लिखा है इसका रेफरेंस क्या है व ये सब गीता के किस अध्याय से लिखा गया है इस तरह मनगढंत लिखना क्या उचित है

Reply
Avatar
Bhavishya tanwar अप्रैल 27, 2018 - 7:59 अपराह्न

we be learn ek lavya ki story

Reply
Avatar
saroj अप्रैल 26, 2018 - 12:19 पूर्वाह्न

Dharm ke naam mein dhoka…. Aacha kahani hai ye.

Reply
Avatar
VIVEK NISHAD मार्च 31, 2018 - 9:49 अपराह्न

WE WILL LEARN FROM EKLAVYA HE IS THE GREAT ARROW RIDER IN UNIVERSE .START DOING ON GOAL NOW MAKE GOAL IS LIFE .YES START

Reply
Avatar
मोहित गौतम नवम्बर 3, 2017 - 7:17 अपराह्न

आपकी ये कहानी मुझे अच्छी लगी आपीने बहुत कुछ इसमे सच लिखा इस लिए धन्यवाद

Reply
Avatar
bhaskar सितम्बर 7, 2017 - 1:33 अपराह्न

क्या नहीं किया है। तुम संसार के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहलाओ इसके लिए मैंने द्रोणाचार्य का वध करवाया, महापराक्रमी कर्ण को कमजोर किया और न चाहते हुए भी तुम्हारी जानकारी के बिना भील पुत्र एकलव्य को वीरगति प्रदान की और इन सब के पीछे केवल एक ही वजह थी कि तुम धर्म के रास्ते पर थे। इसलिए धर्म की राह कभी मत छोड़ना’।
Kya eklavya धर्म के रास्ते पर नही थे।

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh सितम्बर 7, 2017 - 6:35 अपराह्न

सभी अपने-अपने ढंग से धर्म के मार्ग पर थे बस बात इतनी है कि कृष्ण अर्जुन के साथ थे।

Reply
Chandan Bais
Chandan Bais सितम्बर 7, 2017 - 7:58 अपराह्न

मैंने जो महाभारत देखा है, उसमे बताया जाता है की, जब दुर्योधन को एकलव्य के गुणों के बारे में पता चलता है तो दुर्योधन एकलव्य को अपने साथ मिला लेता है जैसे उसने अश्वस्थामा को मिला लिया था, ताकि वो आगे चलके एकलव्य का उपयोग अपने अधर्म के कामो के लिए करे, इसलिए एकलव्य को श्रेष्ठ धनुर्धर बनने से रोकना आवश्यक हो गया था…

Reply
Avatar
Eklavya nishad जून 17, 2017 - 5:48 अपराह्न

dronachary chhaliya tha

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh सितम्बर 7, 2017 - 6:34 अपराह्न

एकलव्य ये अपने-अपने विचार हैं।

Reply
Avatar
vikram kumar मई 21, 2017 - 2:24 अपराह्न

sir
bahut hi achhi or sachhi kahani hai me confusing me tha ki eklavya kon hai? bahut sare book me unke baare me likhe hote hai
par me ye post read karne ke baad sab confused hat gaya.

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh मई 21, 2017 - 5:11 अपराह्न

Vikram Kumar जी हमे यह सुन कर बहुत ख़ुशी हुयी कि आपको इस पोस्ट से कुछ लाभ्मिला…इसी तरह हमारे साथ बने रहें…

Reply
Avatar
arvind singh baghel मई 19, 2017 - 7:34 पूर्वाह्न

Bahut achhi sika Mila hai

Reply
Avatar
ashok nishad मई 8, 2017 - 11:02 अपराह्न

Bhai aj ke is yog me agar trust kiya to log zaroorat se jyada fyda hota lete hai drona charya Ji ko Aisa karna ka koi haq nhi tha unhone eklavya ka trust toda very bad ….

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh मई 11, 2017 - 7:19 अपराह्न

वो सब समय की मांग के अनुसार किया गया था Ashok जी…इसके लिए आपको महाभारत पढनी चाहिए….अपने विचार प्रकट करने के लिए धन्यवाद..

Reply
Avatar
Manish Dama अप्रैल 25, 2017 - 6:07 अपराह्न

Very nice story, that's no story it's real. Who is person are achchived knowledge without teachers? Only eklavya is great pupil so that without teacher achchieve to knowledge.

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh अप्रैल 25, 2017 - 8:32 अपराह्न

Thanks Manish Dama for your views… stay with us for more stories like this…
Thanks..

Reply
Avatar
alkar अप्रैल 24, 2017 - 10:54 अपराह्न

ye galt ha.

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh अप्रैल 25, 2017 - 8:33 अपराह्न

Kya galat hai alkar ji?

Reply
Avatar
shekhar prasad sahu अप्रैल 16, 2017 - 6:13 अपराह्न

Jo bina guru ke kuch sikh jaye usse bada kaun hai
Guru hi se sikh jaye ye jaruri nhi
Guru ke baiger sikh jaye wo important hai . Dhanyawad

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh अप्रैल 17, 2017 - 6:09 अपराह्न

सही बात कही आपने shekhar prasad sahu जी…..

Reply
Avatar
Aanand जुलाई 30, 2020 - 7:48 अपराह्न

Hame ye batayiye ki Eklavya me esi kounsi kami thi ki bhagwan krashn ne Eklavya ka vadh kyon kiya jabki Eklavya ek sachhe vyakti thea

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh जुलाई 30, 2020 - 10:30 अपराह्न

इसका एक ही जवाब है वो है कर्ण में क्या कमी थी जो कृष्ण जी ने अर्जुन के हाथों मरवा दिया।

Reply
Avatar
rahul donawane मार्च 24, 2017 - 11:33 अपराह्न

Pls ekalvya ke life ke bare koi bi jan kri ho to aavshya de …puri jivni hoto bataye…

Reply
Chandan Bais
Chandan Bais मार्च 25, 2017 - 8:30 पूर्वाह्न

राहुल दोनावाले जी, हमारे पास जितनी भी जानकारी थी और जितना जानकारी उपलब्ध कराना हमसे संभव हो पाया, उतना जानकारी हमने इस लेख में दे दिए है. मोटा तौर पे हमने उसकी जीवनी ही यहा प्रस्तुत किया है, इसके अलावा भी अगर आपको जानकारी चाहिए तो हमारे साथ बने रहिये हम कोशिश जरुर करेंगे, धन्यवाद.

Reply
Avatar
lavish kher मार्च 5, 2017 - 9:48 अपराह्न

Acha laga padker. .ek mahan shishya ki katha.. .

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh मार्च 5, 2017 - 10:46 अपराह्न

Thanks lavish kher ji….

Reply
Avatar
Sk फ़रवरी 17, 2017 - 11:02 अपराह्न

बहुत अच्छी कहनीया लखते हो

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh फ़रवरी 18, 2017 - 4:06 पूर्वाह्न

धन्यवाद Sk भाई। बस आप लोगों का प्यार ही है जो ये सब लिख लेते हैं। इसी तरह हमारे साथ बने रहिये और प्रोत्साहन देते रहिये। आपका बहुत-बहुत आभार।

Reply
Avatar
sk gautam जनवरी 21, 2017 - 6:38 पूर्वाह्न

Nic

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh जनवरी 21, 2017 - 10:24 पूर्वाह्न

Thanks SK gautam ji….

Reply
Avatar
DEVARAKONDA KOTESWARA RAO जनवरी 14, 2017 - 1:38 अपराह्न

Sir,
I have already sent one mail for knowing the complete life history of Ekalavya, but so far, I have not received any proper replay. I informed you that I am working as a professor of Civil Engineering and every day, I am dealing with different types of students. Some people are speaking falls about Ekalavya's like history. So please send me the replay on early date , because this content is more use full for my students.
with regards
Dr. D. Koteswara Rao
Professor of Civil Engineering,
JNTUK KAKINADA- 533 003
EAST GODAVARI DISTRICT
A.P
CELL :: 070934 71555

Read more: https://www.apratimblog.com/eklavya-ki-kahani-hindi-me/#ixzz4Vin7cH1B

Reply
Chandan Bais
Chandan Bais जनवरी 15, 2017 - 11:01 पूर्वाह्न

Rao sir,
One of our Admin will contact you. Speak with him. We will try our best to help you.
Thanks for contacting us.

Reply
Avatar
Diyansha Magesh जनवरी 3, 2017 - 3:50 अपराह्न

There are too many adds. And the text is also too much.
If you could please cut short the text it would be very helpful.

Reply
Chandan Bais
Chandan Bais जनवरी 3, 2017 - 4:59 अपराह्न

Thank you for your feedback. Let me explain you, those ads are the only way to earn some revenue so we can run this site and provide you this type of information for free. if you want to completely ads free reading you can contact us for contribute some little donation for this site. but as your request, we have removed some ads on this page. and about reducing text content, so we can’t do this because our aim is to provide as much as information about the topic to our readers, and cutting text means reducing information. hope this will helpful for you. If you still un-satisfy contact us at [email protected] . Thanks

Reply
Avatar
DEVARAKONDA KOTESWARA RAO नवम्बर 24, 2016 - 8:58 अपराह्न

Sir,
I am working has Professor of Civil Engineering in University College of Engineering, JNTUK KAKINADA- 533 003, Andhra Pradesh.
I am very much interested to the life history of Ekalavya in English / Telugu, so that I can explain very point about Ekalavya to my students and known people.
I felt it is essential to educate the public in the matter of Ekalavya's life history, because no one knows exactly the life history Ekalavya in our area and some are talking false also.
Please kindly sent the material in connection with the history of Ekalavya and I am ready to pay the necessary charges

with regards
Dr. D. Koteswara Rao
Professor of Civil Engineering,
JNTUK KAKINADA- 533 003
EAST GODAVARI DISTRICT
A.P
CELL :: 070934 71555

Reply
Mr. Genius
Mr. Genius नवम्बर 24, 2016 - 9:37 अपराह्न

We'll always try to help you just contact us on the following email ID
[email protected]
Thanks.

Reply
Avatar
सुधीर सितम्बर 24, 2016 - 9:40 अपराह्न

बहुत बढ़िया गुरु के बिना जो सीखे बही तो असली धनुर्धर है। मई एकलब्य के जगह होता हो द्रोण चर्य को अंगूठा तो क्या सर का बाल तक न देता।

Reply
Mr. Genius
Mr. Genius सितम्बर 25, 2016 - 10:09 पूर्वाह्न

सुधीर जी आपकी सोच आज के ज़माने के हिसाब से सही है लेकिन उस समय तो अगर कोई किसी को एक बार गुरु मान लेता था तो सारी जिंदगी उसका शिष्य ही रहता था। शायद इसीलिए उस समय गुरु-शिष्य का रिश्ता पवित्र था।
खैर ये तो अपनी – अपनी सोच की बात है। अपने विचार प्रकट करने के लिए धन्यवाद।

Reply
Avatar
Mitesh Kamani मई 27, 2017 - 12:41 पूर्वाह्न

Isliye to me Sudhir ki nahi Eklavya ki kahani padh raha tha!! ??

Reply
Sandeep Kumar Singh
Sandeep Kumar Singh मई 27, 2017 - 4:40 अपराह्न

अच्छी बात है Mitesh Kamani जी…..

Reply
Avatar
मनोज रामेश्वर माध्यानि अगस्त 21, 2016 - 9:07 अपराह्न

जिसे शिक्षा लेनी हो या कुछ भी पाना हो तो मन में एकलव्य की भाति ठान लेना चाहिए।की चाहे जो भी हो मुझे जो सीखना या पाना है वह पाके रहूंगा।

Reply
Mr. Genius
Mr. Genius अगस्त 21, 2016 - 9:46 अपराह्न

सही बात कही अपने मनोज रामेश्वर माध्यानि जी। जब सिर पे जुनून चढ़ जाता है तो हर चट्टान एक छोटा पत्थर नजर आता है अपने विचार पाठकों तक पहुँचाने के लिए धन्यवाद।

Reply

Leave a Comment

* By using this form you agree with the storage and handling of your data by this website.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More

Adblock Detected

Please support us by disabling your AdBlocker extension from your browsers for our website.