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प्रगति पर कविता :- प्रगति का आधार | Pragati Par Kavita


जीवन में हर कोई प्रगति करना चाहता है। लेकिन चाहने मात्र से क्या होता है जब तक आप कर्म नहीं करते। मनुष्य बड़े से बड़े लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। इसके लिए उसे एक योजना बना कर निरंतर संघर्ष करते रहना पड़ता है। इसी विषय पर आधारित है यह प्रगति पर कविता

प्रगति पर कविता

प्रगति पर कविता

संयम रख कर पा लेता है
मानव हर दुविधा से पार,
संघर्ष, सरलता और चिंतन ही
होते प्रगति का आधार।

क्या पाएगा इस जग में जो
रहे सदा आलस्य में चूर,
ठान लिया यदि मन में अपने
नहीं सफलता रहती दूर,
मिलती जब अनुकूल परिस्थिति
अंकुर होता नहीं बेकार,
संघर्ष, सरलता और चिंतन ही
होते प्रगति का आधार।

प्रतिकूल समय में जब कोई
विपदा हम सब पर आती है,
छिपी हुयी शक्तियां जगाकर
हमको यह समझाती हैं,
भाग्य नहीं होता है दोषी
स्वभाव बनाता है लाचार,
संघर्ष, सरलता और चिंतन ही
होते प्रगति का आधार।

वीर जानते हैं मिलता है
उचित कर्मों से ही सम्मान,
साहस कर आगे बढ़ता जो
थामते हैं उसको भगवान,
विजय बसी हो जिसके मन में
कैसे भला हो उसकी हार
संघर्ष, सरलता और चिंतन ही
होते प्रगति का आधार।

ज्ञानी अपने जीवन में
व्यर्थ न समय गंवाता है,
कर्मक्षेत्र के रण में लड़कर
विजय पताका फहराता है,
इतिहास रचाता है ऐसा
झुकता आगे सारा संसार,
संघर्ष, सरलता और चिंतन ही
होते प्रगति का आधार।

संयम रख कर पा लेता है
मानव हर दुविधा से पार,
संघर्ष, सरलता और चिंतन ही
होते प्रगति का आधार।

” प्रगति  पर कविता ” आपको कैसी लगी? अपने बहुमूल्य विचार कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।

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धन्यवाद

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