एक पिता की कीमत हमें अक्सर उनके जाने के बाद ही पता लगती है। मगर तब कुछ बचता है तो बस यादें। उन यादों के सहारे ही हम उनको अपने जीवन में देखते हैं। ये दिल उनको आवाज लगाता है लेकिन वो लौट कर कहाँ आते हैं। ऐसी ही भावनाओं को प्रस्तुत कर रही है संजय शर्मा जी द्वारा छत्तीसगढ़ से भेजी गयी पिता की याद में कविता :-
पिता की याद में कविता
ख़्वाहिशों को लगते पंख
सपनों की वो ऊँची उड़ान,
ऊँगली पकड़ जो चलना सिखाया,
हर वो लम्हा खुद को याद दिलाता हूँ
आज फिर तुमको आवाज़ लगाता हूँ।
ना आँधियों का डर
ना ख़ौफ़भरी कोई अनजान डगर,
साया-ए- दीवार है तुम सा
ये सोच सबसे उलझ जाता हूँ,
आज फिर तुमको आवाज़ लगाता हूँ ।
दरख्त सा वो साया
भरी धूप भी लगती थी छाया,
खुद को कात कर बुना ‘जो’ तुमने
हर ‘उस’ दिन पर इतराता हूँ,
आज फिर तुमको आवाज़ लगाता हूँ ।
बंजर होती सपनों की धरती,
उम्मीदों का सूखता आसमान,
तुम नहीं आस-पास
इस हक़ीक़त को झुठलाता हूँ,
आज फिर तुमको आवाज़ लगाता हूँ……
आज फिर तुमको आवाज़ लगाता हूँ।
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मेरा नाम संजय शर्मा है। मैं यू टी सी एल, हिरमी, रायपुर, छत्तीसगढ़ का निवासी हूँ। मेरी स्वयं की ट्रेवल एजेंसी है। अप्रतिमब्लॉग पर यह मेरी पहली रचना है। आशा करता हूँ आपको मेरी ये रचना ‘पिता को समर्पित कविता ‘ पसंद आयेगी।
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धन्यवाद।
Very touching but nice 👍.
Good