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इंसान पर कविता :- बनाओ मत भगवान उसको | Insan Par Kavita


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इंसान पर कविता

इंसान पर कविता

बनाओ मत भगवान उसको
उसे इंसान रहने दो,
समुंदर से जुदा क़तरे की
हरेक पहचान रहने दो।

समझना ही नहीं मुझको
धर्म और ज़ात की बातें,
बनो तुम शौक से ज्ञानी
मुझे नादान रहने दो।

हर इक रस्ते की हो मंज़िल
ज़रूरी तो नहीं यारों,
कुछ रस्ते अपनी ज़िंदगी के
अनजान रहने दो।

हम तोड़ देंगे दिल तुम्हारा
ये भ्रम रहने दो बाकी,
अभी होठों पे तुम अपने
ज़रा मुस्कान रहने दो।

लगी जब आग घर में तो
कहा मुझसे बुज़ुर्गों ने,
उठा लो हाथ में गीता बाकी
सब सामान रहने दो।

क़सम खाकर ज़रूरी तो
नहीं वो सच ही बोलेगा,
तो फिर गीता कुरान अल्लाह
और भगवान रहने दो।

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Praveen kucheriaमेरा नाम प्रवीण हैं। मैं हैदराबाद में रहता हूँ। मुझे बचपन से ही लिखने का शौक है ,मैं अपनी माँ की याद में अक्सर कुछ ना कुछ लिखता रहता हूँ ,मैं चाहूंगा कि मेरी रचनाएं सभी पाठकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनें।

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