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आप पढ़ रहे हैं आदरणीय प्रवीण जी की लिखी हिंदी कविता – जन्नत माँ के चरणों में :-
कविता – जन्नत माँ के चरणों में
कब हमने सोचा था दोज़ख मिलेगी
हमने तो सोचा था जन्नत मिलेगी,
पर खुदा को मंजूर थी वो दौलत
जो हमें हमारे कर्म की बदौलत मिलेगी।
गलत सोचते हो इस दौर में जनाब
हाजिर रहते हैं लेकर हम हर जवाब,
खुदा के घर भी तभी जाएंगे हम
खुदा की जब हमें इजाज़त मिलेगी।
किसी की सोच में नफरत मिलेगी तो
किसी के लहू में शराफत मिलेगी,
बुज़ुर्गो के करीब रहना सीखो ताउम्र
बुज़ुर्गो से सदैव अच्छी नसीहत मिलेगी।
इंसा जुल्म करता रहेगा गर आठों पहर
तो कायनात उल्फत का पैगाम न देगी,
ज़माने में बिरला ही होगा जिसे अब,
मोहब्बत के बदले मोहब्बत मिलेगी।
मुख की थिरकन से हटकर जब-जब
सुख – दुःख को आँका जायेगा,
अमीरों के घर में दिखावा और
गरीबों के घर में हक़ीक़त मिलेगी।
उपवन को निर्जन कर सदा रौंदते आये हैं
पुष्प ना मिलेंगे शुल-शैया बिछा आये हैं,
चलो कुछ देर माँ के चरणों में बैठें
जहाँ में कहीं और ना ऐसी जन्नत मिलेगी।
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मेरा नाम प्रवीण हैं। मैं हैदराबाद में रहता हूँ। मुझे बचपन से ही लिखने का शौक है ,मैं अपनी माँ की याद में अक्सर कुछ ना कुछ लिखता रहता हूँ ,मैं चाहूंगा कि मेरी रचनाएं सभी पाठकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनें।
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