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शहीद – एक सैनिक की अनकही कहानी | Ek Shahid Sainik Ki Kahani


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शहीद – एक सैनिक की अनकही कहानी

शहीद - एक सैनिक की अनकही कहानी

26 जनवरी आ रही है। मुझे फिर याद किया जाएगा। मेरी विधवा बीवी को एक मैडल देकर घर को भेज दिया जाएगा। अभी कुछ दिन पहले की ही तो बात है। भारत माँ की रक्षा के लिए मैं भी बॉर्डर पर तैनात था।  टीवी कहाँ देखने को मिलता था। रेडियो पे सुना था कि किसी विशेष वर्ग के एक युवक की एक लड़ाई में मौत हो गयी। सुनने में आया कि जान बूझ कर लड़ाई के बहाने हत्या की गयी थी।

देश के सभी नामी गिरामी नेता गए थे। उसके घर सांत्वना देने। सारी मीडिया पहुँच गयी थी और एक-एक पल की खबर दे रही थी। कई बार ऐसा हो चुका था। जहाँ से कोई राजनीतिक लाभ दिखता है सब नेता पहुँच जाते हैं। ये तो पुरानी आदत है इनकी। जब भी ऐसी कोई घटना होती कि लड़ाई में किसी की मौत हो जाती, तो मन में एक ही ख्याल आता।

हम यहाँ देश की रक्षा के लिये दिन रात अपनी जान पर खेलते हैं और देश के अंदर लोग आपस में ही लड़ मरने को तैयार हैं। इन्हें बाहर के दुश्मनों से नहीं अपने आप की कमजोरियों से ही खतरा है। यही सब बातें देश के लिए जरूरी थीं शायद।

मैं हर रोज की तरह रात में देश की रक्षा में तैनात था। अचानक गोलियां चलने की आवाज आने लगी। जैसे ही मैंने दुश्मन को देखा तो जवाबी कार्यवाही में मैंने भी गोलियां चलायीं। गोलीबारी हो ही रही थी की अचानक एक गोली मेरी छाती में आ लगी। मैंने हिम्मत ना हारते हुए जवाब देना जारी रखा।

मेरे साथी भी मेरे साथ दुश्मन से लोहा ले रहे थे। धीरे धीरे मेरी हिम्मत जवाब देने लगी। मेरी हिम्मत जवाब दे रही थी। दिल में अभी भी जुनून था कि इन दरिंदों को मैं अपने देश में नहीं जाने दूंगा। अगर ये चले गए तो ना जाने कितने मासूमों की जान ले लेंगे। तभी उस अँधेरी रात में सब कुछ धुंधलाने लगा। थोड़ी ही देर में चारों तरफ अंधेरा दिखने लगा।

थोड़ी ही देर में सब दर्द खतम हो गया। सारे आतंकवादी मारे जा चुके थे। मेरे साथी थक चुके थे। मैंने जाकर उनको बधाई दी। पर उन्होंने कोई ध्यान ना दिया और उन आतंकवादियों की तलाशी लेने लगे। मुझे शक था कि उनके शरीर में बम लगे हुए थे। मैंने उन्हें रोकने के लिए हाथ बढ़ाया पर उन्हें पकड़ ना सका। दुबारा कोशिश करने पर भी मैं असफल रहा। मुझे कुछ समझ में नहीं आया। मै कुछ समझ पाता उस से पहले ही वो तलाशी लेकर मेरी तरफ बढे।

मुझे लगा कि अब वो मुझसे मेरा हाल पूछेंगे । पर ऐसा नहीं हुआ। वो मुझे पार करते हुए मेरे पीछे चले गए। मैंने घूम कर पीछे देखा तो जमीन पर मैं लेटा हुआ था। अरे! पर मैं तो यहाँ पीछे खड़ा मुझे समझ नहीं आया रहा था कि मेरे दो हिस्से कैसे हुए। मैं यहाँ भी खड़ा था और उधर वो लोग मुझे उठाने की कोशिश कर रहे थे।

तब मुझे एहसास हुआ की मैं देश की सेवा करते-करते प्राण त्याग शहीद हो चुका था। मुझे गर्व था इस बात पर। मेरे दादा जी की तरह मेरे प्राण भी देश की सेवा में समर्पित हुए। मैंने अपने परिवार के बारे में ना सोचते हुए देश के उन परिवारों के बारे में सोचा जो देश में हमारे भरोसे खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं।



थोड़ी देर मेरे शरीर को टटोलने के बाद मेरे दोस्तों को जब एहसास हुआ कि मैं उनके बीच नहीं रहा तो उनके आँखों में भी आंसू आ गए। वो मुझे उठा कार कैंप में ले आये। मैं उन्हें बताना चाहता था कि वो मेरी शहादत पर अफ़सोस न करें। मैं खुश हूँ कि मेरी जान देश के काम आई।

आधी रात बीत चुकी थी। वो रात कुछ ज्यादा ही लंबी होती जा रही थी। मेरे मन में भी अजीब-अजीब ख्याल आने लगे। घर गए दो साल हो गए थे। जब भी पत्नी की चिट्ठी आती तो एक ही सवाल पूछती थी की कब आ रहे हो। मेरी बेटी तब एक साल की थी वो भी बोलने लगी है फ़ोन पर आवाज सुनी थी। जब भी बात करती थी तो वो एक ही सवाल करती थी।

“पाप कब आओगे? बहुत याद आती है।“ मुझे पता लग जाता था कि ये सवाल उसका नहीं है बल्कि मेरी माँ, पिता जी और मेरी बहन का है। मैंने छुट्टी के लिए बड़े साहब को चिट्ठी लिखी थी। अगले महीने तक छुट्टी मिलने वाली थी।

सुबह हुयी, मेरे शरीर को तिरंगे से ढक कर कुछ साथी मेरे घर के लिए चल पड़े। मैं सोच रहा था कि ना जाने मेरे बारे में जान कर क्या हाल होगा मेरे घर वालों का ? इसी तरह सोचते सोचते घर पहुँच गए। देखा कि घर के बरामदे में मेरी बेटी एक गुड़िया के साथ खेल रही थी। कितनी प्यारी लग रही थी। एक जवान ने जा कर मेरी बेटी से पुछा
“बेटा घर में कोई है?”
“ दादी जी मंदिर गयी हैं, दादा जी अंदर अखबार पढ़ रहे हैं और माँ सफाई कर रही हैं।“

बिना सांस लिए मीठी सी आवाज में एक ही बार में वो सब कुछ बोल गयी। मैं एक बार उसे गले लगाना चाहता था। तभी मेरे पिता जी बाहर आये तो मेरे साथियों ने उन्हें मेरे शहीद होने के बारे में बताया तो उनके आँखों से आँसू निकल आये। पीछे से मेरी पत्नी आई और पिता जी से पूछने लगी।
“क्या हुआ पिता जी ? ये लोग क्यों आये हैं? वो नहीं आये क्या ? बोलिये न पिता जी, आप चुप क्यों हैं?“
“बेटा, तुम्हारा सुहाग नही रहा।“



इतना सुन कर तो जैसे उसके शरीर में जान ही नहीं रह गयी। एक दम से वो जमीन पर गिर पड़ी। तभी कुछ गिरने की आवाज आई। पिता जी ने पीछे घूम कर देखा तो मंदिर से आई माँ के हाथ से पूजा की थाली गिर गयी थी। चरों तरफ मातम का माहौल छा गया। धीरे धीरे पूरे गाँव में मेरे शहीद होने की खबर फ़ैल गयी। आस पास के गांव से भी लोग मेरे परिवार को सांत्वना देने आये थे।

मैं इस इंतजार में था कि शायद कोई नेता या कोई उच्च अधिकारी भी मेरे परिवार को सांत्वना देने आएँगे। मगर मेरे पंचतत्व में विलीन होने तक कोई नहीं आया। कई दिन बीत गए पर कोई नही आया। घर में सब ठीक चल रहा था कि अचानक एक दिन चिट्ठी आई जिसमें मेरी पत्नी को मेरे शहीद होने पर मैडल देने के लिए दिल्ली बुलाया गया था। ये पढ़ कर कई दिनों से रुके हुए आँसू फिर बाह निकले………….

ये है हमारा देश जहाँ राजनीतिक लाभ के लिए तो किसी आम इंसान की मौत को गंभीरता से लेकर उसके नाम पर वोटबैंक मजबूत किया जाता है। पर एक सैनिक की शहीदी पर कोई शोक सन्देश देना भी जरुरी नहीं समझता। मुझे अफ़सोस इस बात का नहीं कि मेरी शहीदी पर कोई आया नहीं बल्कि इस बात की है की हमारे देश में कुछ मौका परस्त इंसान देश को बागडोर संभल रहे हैं संभालना चाहते हैं।

मुझे तो ख़ुशी है इस बात पर कि मेरी शहादत की आग किसी नेता की राजनीति की रोटियां पकाने के काम नहीं आई। देश के बार्डर पर तो हम देश की रक्षा कर रहे हैं अब जरुरत है तो एक ऐसी फ़ौज की जो देश को सही ढंग से चला सके जो भारत को जातपात के भेदभाव से दूर कर सके, धर्म और जातपात के न पर कोई मौत न हो और एक देश को एक मजबूत आधार दे सके। ये सब करने की ताकत देश की युवा पीढ़ी ही रखती है। जिस दिन ऐसा हुआ उस ही मुझे सच्ची श्रद्धांजलि मिलेगी और मुझे अपना सम्मान मिलेगा।


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धन्यवाद।

15 Comments

  1. Bahut achha Likha hai apne But ek Mistake hai. Ho sakta hai mistake na ho sayad mujhe hi lag rahi ho. Kahani ke ek Para me apne likha hai ki "Mere pitaji ki tarah mere pran bhi desh ki seva me samarpit hue" aur ek para me apne likha hai ki jab apke sathi apke shahid hone ki news ghar pr dene gye to andar se apke pitaji bahar aaye. Bss Yahi doubt hai ki agar Pitaji pahle Shahid ho gye to bad me Ghar par kaha se aaye. Please clear my doubt.

    1. गलती बताने के लिए धन्यवाद मुबारक अली भाई। मैं इपनी गलती का सुधार कर लिया है। मुझे ख़ुशी हुयी ये जानकर की आपने इसे ध्यान पूर्वक पढ़ा और हमें अपनी गलतियो सुधरने का अवसर दिया। एक बार फिर आपका धन्यवाद।

      1. भाईसाहब मुझे तो गलती नही दिखाई दे रही है , आपने ऊपर दादाजी का जिक्र किया है जो देश के लिए शहीद हुए और घर पर पिताजी का जिक्र किया है तो सही है , दादी जी और पिताजी अलग अलग ही तो है ।

      2. कुलदीप गुर्जर जी पहले दादा जी की जगह पिता जी लिखा गया था। जिसे बाद में बदल कर दादा जी किया गया। आपने कहानी बाद में पढ़ी इसलिए आपको सही लग रहा है।

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