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धरती बचाओ पर कविता :- धरती हमसे कहे पुकार | ग्लोबल वार्मिंग पर कविता


धरती बचाओ पर कविता जो बताती है ग्लोबल वार्मिंग के कारन होते आज के हलातों के बारे में। कैसे आज का इंन्सान अपने स्वार्थ के कारन धरती का शोषण कर रहा है। और धरती उसे पुकार कर चेतावनी दे रही है कि,”ए इन्सान यदि तू जीना चाहता है तो पहले मुझे बचा। क्योंकि यदि धरती ही नहीं तो तू कैसे रहेगा?” बाकी आइये पढ़ते हैं धरती बचाओ पर कविता में :-

धरती बचाओ पर कविता

धरती बचाओ पर कविता

आग बरसती आसमान से
लगी है मचने हाहाकार
जीना है तो मुझे बचा लो
धरती हमसे कहे पुकार।

जल-थल चारों ओर गंदगी
फैलाता है खूब इंसान
सुंदर-स्वच्छ धरा कर गंदी
करता नित अपना नुकसान,
पास बुलाता मौत को अपनी
कर पृथ्वी पर अत्याचार
जीना है तो मुझे बचा लो
धरती हमसे कहे पुकार।

काट रहा वन-उपवन सारे
करता नहींकोई परवाह
दूषित वायु शुद्ध न होती
हर दिशा में फैले धुआँ अथाह,
अपने किये कृत्य से मानव
कई रोगों का हुआ शिकार
जीना है तो मुझे बचा लो
धरती हमसे कहे पुकार।

जलचर सारे मरते जाते
नदियों बीच रसायन बहता
फ़िक्र किसे मरते जीवों की
बस पैसों से मतलब रहता,
साफ़ रखो जल स्त्रोत को अपने
यही तो हैं जीवन आधार
जीना है तो मुझे बचा लो
धरती हमसे कहे पुकार।

बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग से
हिमखंड हैं सारे पिघल रहे
सारे प्राणी खतरे में हैं
कैसे तुमको ये धरा कहे,
हालत बद से बदतर होती
कुदरत भी अब हुई लाचार
जीना है तो मुझे बचा लो
धरती हमसे कहे पुकार।

सोचो आने वाली पीढ़ी
कैसे जीवित रह पाएगी
कैसे किस्से बीते पुराने
इक दूजे से कह पाएगी,
गलती आज सुधारें अपनी
बना दें हम सुन्दर संसार
जीना है तो मुझे बचा लो
धरती हमसे कहती पुकार।

आग बरसती आसमान से
लगी है मचने हाहाकार
जीना है तो मुझे बचा लो
धरती हमसे कहे पुकार।

इस कविता का विडियो यहाँ देखें :-

धरती बचाओ पर कविता ( धरती हमसे कहे पुकार ) | Dharti Par Kavita | पृथ्वी दिवस पर कविता

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