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आरक्षण पर कविता – मै सामान्य श्रेणी का दलित हूँ, मुझे आरक्षण चाहिए।


आज के समय में आरक्षण एक ऐसी समस्या बन गया है जिसने दलित की परिभाषा को बदल कर रख दिया है। आज की परिभाषा के अनुसार दलित उसे कहा जाता है जो एक ऐसे परिवार में जन्म लेता है जो खुद को दलित कहते हैं। लेकिन दलित की असली परिभाषा शायद हम लोग भूल चुके हैं। इसी ओर कदम उठाते हुए सामान्य श्रेणी के गरीब परिवार की तरफ से लिखा गया दलित की परिभाषा बताता एक आरक्षण पर कविता । जो आपको सोचने पर मजबूर कर देगा कि दलित कौन है। पढ़िए ये आरक्षण पर कविता – मै सामान्य श्रेणी का दलित।

आरक्षण पर कविता – सामान्य श्रेणी का दलित

 

आरक्षण पर कविता - मै सामान्य श्रेणी का दलित हूँ

मैं सामान्य श्रेणी का दलित हूँ साहब
मुझे आरक्षण चाहिए।
तेजाब की फैक्टरी में काम करते हुए
खुद को जलाकर मुझे पाला,
आज उस पिता की बीमारी के
इलाज के लिए धन चाहिए,
मैं सामान्य श्रेणी का दलित हूँ साहब
मुझे आरक्षण चाहिए।

कमजोर हो रही हैं निगाहें माँ की
मुझे आगे बढ़ता देखने की चाह में,
उसकी उम्मीदों को पूरा कर सकूँ
उसे मेरा जीवन रोशन चाहिए,
मैं सामान्य श्रेणी का दलित हूँ साहब
मुझे आरक्षण चाहिए।

आधी नींद में बचपन से भटक रहा हूँ
किराये के घरों में,
चैन की नींद आ जाये मुझे रहने को
अपना मकान चाहिए,
मैं सामान्य श्रेणी का दलित हूँ साहब
मुझे आरक्षण चाहिए।

भाई मजदूरी कर पढ़ाई करता है
थकावट से चूर होकर,
मजबूरियों को भुला उसे सिर्फ
पढ़ने में लगन चाहिए,
मैं सामान्य श्रेणी का दलित हूँ साहब
मुझे आरक्षण चाहिए।

राखी बंधने वाली बहन जो
शादी के लायक हो रही है,
उसके हाथ पीले करने के लिए
थोड़ा सा शगुन चाहिए,
मैं सामान्य श्रेणी का दलित हूँ साहब
मुझे आरक्षण चाहिए।



कर्ज ले-ले कर दे रहा हूँ परीक्षाएं
सरकारी विभागों की,
लुट चुकी है आज जो कर्जदारी में
मुझे वो आन चाहिए,
मैं सामान्य श्रेणी का दलित हूँ साहब
मुझे आरक्षण चाहिए।

भूखे पेट सो जाता है परिवार
कई रातों को मेरा,
पेट भरने को मिल जाये मुझे
दो वक़्त का अन्न चाहिए,
मैं सामान्य श्रेणी का दलित हूँ साहब
मुझे आरक्षण चाहिए।

जहाँ जाता हूँ निगाहें नीचे रहती हैं मेरी
मुझमें गुण होने के बावजूद,
घृणा होती है जिंदगी से अब तो मुझे
मेरा आत्मसम्मान चाहिए,
मैं सामान्य श्रेणी का दलित हूँ साहब
मुझे आरक्षण चाहिए।

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आपको यह आरक्षण पर कविता कैसी लगी। अपने विचार हम तक जरूर पहुंचाए। अगर आपको इसमें सच्चाई नजर आये तो दूसरों तक भी पहुंचाए। हमें आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा।

धन्यवाद।

(नोट :- अगर किसी को इस आरक्षण पर कविता से किसी प्रकार की कोई आपत्ति है तो कृपया पहले ब्लॉग एडमिन से संपर्क करें।)

22 Comments

  1. मेरी उम्र 21 वर्ष हैं । मैं जातिगत आरक्षण के विरुद्ध हूं। क्योंकि आज आरक्षण के चलते ,सिर्फ दो नंबर से मेरा एग्जाम का रिजल्ट नहीं हो पाया,और हम से कम मेहनत करने वाले लड़के का रिजल्ट बना और आज वह नौकरी कर रहा है। इसलिए मुझे बड़ी खेद है, आरक्षण से मैं भी राइटिंग करता हूं। इसीलिए मैंने सोचा है कि आरक्षण की कड़ी प्रतिक्रिया करते हुए, मैं के विरुद्ध एक कविता लिखूं . ताकि हम जैसे गरीबों और आरक्षण से वंचित बच्चों को, भविष्य में सरकार के विरुद्ध लड़ने का सामर्थ आ सके । अपने अधिकार के लिए वह लड़ाई करें , और संविधान के अनुसार सर्वधर्म संपन्न जाती -पाती और छुआछूत की तरह आरक्षण को भी जड़ से खत्म करने का प्रेरणा लें।

    1. जी नितीश कुमार जी इस आरक्षण के कई लोग शिकार हो चुके हैं। बस इसीलिए ये व्यथा कविता के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। अपने विचार हम तक पहुँचाने के लिए धन्यवाद।

  2. Kya bat yaro itne budhjiviyo se milkar dil gadgad ho gya kintu bndhu kbhi aap logo ne jati ko mitane ki kosish ki hai jati ke khtir sc walo se nokri chhinte dekhi hai,abhi bhi hr ek ghr mai jo bhi samny jati ke bandhu hai sc ko achhut hi mante hai,jb aap log unko apne dilo mai jagah nhi dete to nokri mai kya khak jagah doge,isliye phle bimari htao bimar ki dwai band mat kr do phle hi

    1. बाकी सबका तो पता नहीं लेकिन मेरे लिए सब बराबर हैं और मैं जात-पात या छुआ छूत को नहीं मानता। यदि आपको विश्वास न हो तो मुझसे मिलिए मैं आपको प्रमाण भी दे सकता हूँ। क्या आप जहां से राशन लेते हैं, जहां पढ़ते हैं, जहां से कपड़े लेते हैं क्या वो सब आपकी ही जाती के हैं? अगर नहीं तो कैसा जात-पात कैसा छूआ-छूत? कौन कर रहा है ऐसा? और आप एक लोकतांत्रिक देश मे ये सब सह क्यों रहे हैं?

  3. आरक्षण एक ऐसी पहेली बन गया है जिसको सुलझाना सरकार के लिए कठिन होता जा रहा है.भारतीय समाज में रोज रोज कोई न कोई वर्ग आरक्षण की मांग उठा रहा है. मैंने भी इस समस्या पर एक ब्लॉग लिखा है. अगर आप को अच्छा लगे तो अपने ब्लॉग पर इसे जगह दे

  4. आरक्षण और इसीके तरह के अन्य नियमो ने सवर्णों को दूसरे दर्जे का नागरिक बना दिया है ठीक उसी तरह जिस तरह बादशाह के राज में हिन्दू थे । बहुत बुद्धिमान हो तो टोडरमल भी वित्तमंत्री बन सकता था । पर आम हिन्दू को जो अधिकार थे वही आज आम सवर्ण को हा । हर सरकारी काम में अतिरिक्त टेक्स का जजिया देना और कानून के सामने सामान अपराध का अतिरिक्त दण्ड पाना । क्या यही समानता है ।
    क्या हम आजाद देश के सामान अधिकारप्राप्त नागरिक है ?

    1. मैंने आजतक ऐसा कोई मंदिर नही देखा है जहा किसी को भी आरक्षण दिया गया हो, कम से कम हमारे एरिया और आसपास के एरिया में ऐसा कोई मंदिर मैंने नही देखा ना ही सुना है की किसी मंदिर में किसी विशेष जाति को आरक्षण दिया गया है, फिर भी कही पर जो हमारे जानकारी के बाहर हो ऐसे मंदिरों में अगर किसी को आरक्षण दिया गया है जाति के आधार पर तो हमारे नजरो में ये गलत ही है हम इसके भी खिलाफ है और ऐसा नियम बनाने वाले संकीर्ण मानसिकता के ही हो सकते है… जबतक की वो मंदिर किसी की निजी संपत्ति ना हो…!

      1. विश्वास जी.. घरो में अक्सर महिलाये ही रसोई और घरेलु काम संभालती है, क्या ये आरक्षण है? अक्सर पुरुषो को घर चालाने के लिए पैसे कमाने होते है.. क्या ये आरक्षण है? बच्चो को ही स्कूल जाना और पढाई करना पड़ता है.. क्या ये आरक्षण है? अक्सर सपेरे ही सांप पकड़ने, यादव ही गाय चराने, मछुआरे ही मछली पकड़ने का काम करते है, क्या ये आरक्षण है? ऐसे ही कई उदहारण है.. इन्सान को वही काम करना शोभा देता है, जिसमे वो माहिर हो या फिर जो करने में वो इंटरेस्टेड हो।

        सदियों से ब्राह्मण वेदों और मंत्रो का अध्ययन करते है ताकि वो पूजा, हवन आदि का काम कर सके। दुसरे लोग जैसे की आप और मै, वेदों और मंत्रो का अध्ययन क्यों नही करते? जब हमें उन चीजो का ज्ञान है ही नही तो जिन्हें ज्ञान है और वो उस काम को कर रहे है तो उसपे प्रश्न उठाना निरा मुर्खता नही लगता आपको? अगर मानलो आप अपने कंपनी में किसी को नौकरी देंगे तो उन्हें ही देंगे जो वो काम करना अच्छी तरह से जनता हो, और ब्राह्मणों को पूजा, हवन, मंत्रो आदि का अच्छे से ज्ञान होता है, इसलिए अक्सर मंदिरों में वो पुजारी होते है, नाकि इसलिए की वो ब्राह्मण है। हर ब्राह्मण पुजारी नही होते, जिसको वो काम आता है वो ही पुजारी होते है, हम ब्राह्मण नही है, लेकिन मेरे पिताजी को हवन-पूजन विधियां आती है इसलिए वो गणेशोत्सव वगेरा में वो स्थापना करने भी जाते है। अगर आपको भी ये काम आता है तो आप भी पुजारी बन सकते है, अगर तब आपको रोका जाता है तब जरुर ये गलत होगा।

        और जहा तक मेरा ख्याल है मंदिरों में पुजारी बनना कोई सरकारी काम नही है जिसपे आरक्षण लगा हो, ये तो परमपरागत बंधन है, जिस बंधन में ब्राह्मण फंसे पड़े है, और मैंने बहुत से ऐसे ब्राह्मण देखे है जो इस बंधन से टूटने के लिए तरस रहे है…

        विश्वास जी उम्मीद है मै आपके दुविधा को दूर करने में सफल रहा हूँ….

    1. Shiv Singh pal जी हम जातिगत आरक्षण के विरुद्ध हैं। हमारे संविधान के मुताबिक सबको बराबर के अवसर मिलने चाहिएं और यदि नहीं मिल पाते तो उसके लिए सरकार जिम्मेदार है। और रही बात किसी पद या नौकरी की तो उसमे किसी जाती को देखने के बजाय उसके काबिलियत को देखा जाना चाहिए, SC, ST, OBS या जनरल वर्ग, प्रधानमंत्री किसी भी समुदाय से हो लेकिन ज्यादा जरुरी है की वो प्रधानमंत्री पद के काबिल हो… अगर कोई व्यक्ति उस पद के काबिल नही है तो जाति के आधार पर उसे वो पद दिया जाना महा मुर्खता है, और हम इसी के विरोधी है…

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