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आप पढ़ रहे हैं ग़ज़ल की दुनिया में नई ग़ज़ल “अकेला सफ़र यूँ गवारा नहीं”
ग़ज़ल की दुनिया में नई ग़ज़ल
अकेला सफ़र यूँ गवारा नहीं।
मिला पर किसी का सहारा नहीं ।
अगर हो सके नफ़रतें कम करो
बिना प्यार के तो गुज़ारा नहीं ।
लिखा ख़त हमें पर कहाँ आज गुम
पता अन्य का था हमारा नहीं ।
सितारे निशा में ही झिलमिल करें
सवेरे तो उनका नज़ारा नहीं ।
नदी प्रेम में खुद अकेली चले
सलिल ने कभी भी पुकारा नहीं।
भटकती रहीं घोर तूफ़ान में
मिला कश्तियों को किनारा नहीं।
सदा कर्म करना मनुज का धरम
दया-भाव ने तो सँवारा नहीं।
शरण आज प्रभु जी तुम्हारी पड़ा
मैं याचक हूँ कोई बिचारा नहीं ।
सपन सब सुहाने-सेलगने लगे
मुहब्बत है कोई शरारा नहीं ।
हृदय पर गहन घाव ऐसे लगे
कभी दोष मेरा बिसारा नहीं।
पुराना हो बरगद सदा पूजिए
दुआओं के कारण सिधारा नहीं ।
हँसो और सबको हँसाती रहो
दुखी “अंशु” रहना गवारा नहीं।
✍ अंशु विनोद गुप्ता
अंशु विनोद गुप्ता जी एक गृहणी हैं। बचपन से इन्हें लिखने का शौक है। नृत्य, संगीत चित्रकला और लेखन सहित इन्हें अनेक कलाओं में अभिरुचि है। ये हिंदी में परास्नातक हैं। ये एक जानी-मानी वरिष्ठ कवियित्री और शायरा भी हैं। इनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें गीत पल्लवी प्रमुख है।
इतना ही नहीं ये निःस्वार्थ भावना से साहित्य की सेवा में लगी हुयी हैं। जिसके तहत ये निःशुल्क साहित्य का ज्ञान सबको बाँट रही हैं। इन्हें भारतीय साहित्य ही नहीं अपितु जापानी साहित्य का भी भरपूर ज्ञान है। जापानी विधायें हाइकू, ताँका, चोका और सेदोका में ये पारंगत हैं।
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