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अहंकार पर कहानी :- एक सेठ की गुजराती लोक कथा | Gujarati Lok Katha


अहंकार पर कहानी :- आप समझदार जरूर हो सकते हैं लेकिन इस बात का अहंकार आप को अज्ञानी बना देता है। यदि आपके पास ज्ञान है तो उसका समझदारी से उपयोग करना चाहिए। इसी विषय पर आधारित है अहंकार पर कहानी ( एक सेठ की गुजराती लोक कथा ) :-

अहंकार पर कहानी

अहंकार पर कहानी

यह कहानी है उस समय कि जब भारत में मुगलों का राज हुआ करता था। सभी राज्य उनके अधीन थे। उन्हीं दिनों गुजरात के महाराज की बड़ी बेटी का विवाह होने वाला था।

अब जबकि विवाह एक राजकुमारी का था। राजा ने मंत्री को आदेश दे दिया कि विवाह में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं होनी चाहिए। मंत्री, सेनापति से लेकर महाराज के सरे कर्मचारी विवाह की तैयारियों में जुट गए। सभी व्यापरियों को बुला कर उन्हें अलग-अलग काम सौंप दिए गए।

विवाह की वस्तुओं का प्रबंध करना कोई बड़ी बात नहीं थी। बड़ी बात तो थी कि ये सब राजकुमारी को पसंद आये। इसके लिए मंत्री ने नगर के सबसे बड़े और बुद्धिमान सेठ को बुलाया और उनसे गहने, कपड़े और बहुमूल्य रत्नों का प्रबंध करने के लिए कहा।

विवाह में अभी तीन महीन बाकी थे। तो उस सेठ ने अपने बड़े मुनीम को बुलाया और उसे एक सूची देकर कहा,

“ राजकुमारी के विवाह के लिए हमें ये सामान दिल्ली से लाना है। इसलिए तैयारी कर लो।”

एक सप्ताह बाद मुनीम तैयार होकर आया। लेकिन उसने बताया कि वह दिल्ली अकेला जाएगा। इस पर सेठ को गुस्सा तो आया लेकिन वह चुप रहा।

सेठ ने मुनीम को समझाने की कोशिश की कि वो दिल्ली में किस से मिले किस से नहीं। कहाँ सही सामान मिलेगा। लेकिन मुनीम को यह सब सुनने में कोई रूचि नहीं थी। उसने सेठ को टोकते हुए कहा,

“श्रीमान, मुझे देरी हो रही है। आपकी बात मैं समझ गया हूँ। सुना है दिल्ली बहुत विकसित है। वहां रोज मौसम बदलता है। ऐसे में मुझे वहां मुझे अपने ही दिमाग से काम लेना पड़ेगा।”

इतना कह कर मुनीम सेठ को प्रणाम कर अपने ऊँट पर सवार होकर दिल्ली के लिए निकल पड़ा।

सेठ खुद को सबसे ज्यादा बुद्धिमान मानते थे। इसलिए उन्हें लगा कि उनका मुनीम उनकी बात न सुन कर उनका अपमान कर के गया है। इस बात पर उन्हें बहुत गुस्सा आया। अब उनके अन्दर बदले की भावना जाग उठी। वे ओने मुनीम के घमंड को चूर-चूर करना चाहते थे।

बैठे-बैठे उन्होंने मुनीम को सबक सिखाने की एक तरकीब सोची। उन्होंने नाई को बुलाकर अपने सिर के सारे बाल कटवा दिए। नाई के जाने के बाद  सेठ ने सब बाल इकठ्ठा किये और सोने की जरी वाली पोटली में भर कर अपने छोटे मुनीम को बुलाया। जब मुनीम आ गया तो सेठ ने कहा,

“ये पोटली यहीं रह गयी है। इसे तुम जल्दी जाकर बड़े मुनीम को दे देना और उस से कहना कि इसे दिल्ली में बादशाह को भेंट कर दे। जब वह पोटली शहंशाह को भेंट कर दे तब तुम वापस आ जाना।”

छोटा मुनीम वह पोटली लेकर दिल्ली की और निकल पड़ा। बड़ा मुनीम दिल्ली में एक सप्ताह घूमते हुए सेठ की बनायी हुयी सूची के सामान का मोल भाव करता रहा।

एक सप्ताह बाद छोटा मुनीम दिल्ली पहुँच गया और सेठ के वचन अनुसार वह पोटली बड़े मुनीम को दे दी। साथ ही यह भी बता दिया कि यह पोटली शहंशाह को भेंट करनी है।

दूसरे दिन दोनों मुनीम शहंशाह के दरबार में गए। बड़े मुनीम ने छोटे मुनीम को बाहर ही रुकने के लिए कहा। स्वयं वह उस पोटली के साथ कुछ और उपहार लेकर शहंशाह के सामने पहुंचे और भेंट देते हुए कहा कि यह सब हमारे सेठ जी ने आपके लिए भेजा है।

बाकी सब उपहार तो खुले हुए थे इसलिए सबको दिख रहे थे बस एक पोटली ही थी जिसमें किसी को नहीं पता था कि क्या है। शहंशाह ने जब पोटली खोली तो उसमें से बाल उड़ने लगे।

पोटली में बाल देख कर शहंशाह का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। वे गुस्से में बोले,

“तुम्हारे सेठ की इतनी हिम्मत कि हमारे साथ ऐसा मजाक करे। सेनापति इस मुनीम की गरदन धड़ से अलग कर इसके सेठ को भिजवा दी जाए।”

छोटा मुनीम इतना सुन वहां से भाग लिया। उसे डर था कहीं वह भी बड़े मुनीम के साथ न फंस जाए। जब वह गुजरात वापस सेठ के पास पहुंचा तो उसने सारी बात सेठ को बताई। सेठ छोटे मुनीम की बात सुन कर बहुत खुश हुआ और उसने उसे बताया कि यह सब उसका ही किया हुआ था।

वो बड़ा मुनीम बहुत चतुर बन रहा था। इसलिए उसे सबक सिखाने के लिए ही मैंने ऐसा किया।

छोटा मुनीम यह सुन कर बहुत खुश हुआ। अब उसे मौका जो मिलने वाला था बड़े मुनीम की जगह पर काम करने का।

एक महीना बीता ही था कि सेठ ने देखा बड़ा मुनीम एक काफिला लेकर वहां पहुंचा। सेठ ने हैरान होते हुए पुछा,

“शहंशाह ने तो तुम्हारी गर्दन काटने का हुक्म दिया था। तुम जिंदा वापस कैसे आ गए।”

मुनीम ने उस सवाल का जवाब दिए बिना सारा सामान और बादशाह की तरफ से भेजी गयी भेंट भी सेठ के हवाले कर दी। इसके बाद उसने कहा,

“सेठ जी मैंने आपका नमक खाया था। आज उसका कर्ज उतर गया है। आपने तो मेरे प्राण ले ही लिए थे। इसलिए आज के बाद मैं आपके यहाँ नौकरी नहीं करूँगा।”

इतना कहते हुए मुनीम अपने घर चला गया।

उधर सेठ का मन बेचैन हो उठा कि ये सब हुआ कैसे? ये जानने के लिए वह बड़े मुनीम के घर गया और उसके सामने हाथ जोड़ कर उसे सब बताने के लिए कहा।

तब मुनीम ने बताया कि जब शहंशाह ने उसकी गर्दन काटने का हुक्म दिया तब उसने अपनी बुद्धि चलायी। उसने उड़ते हुए बालों को दौड़-दौड़ कर पकड़ना शुरू कर दिया। उन बालों को माथे लगाकर चूमने लगा। साथ ही कहने लगा की मेरी गर्दन अभी के अभी काटी जाए।

उसकी इस हरकत से  दरबार के सभी दरबारी हैरान रह गए। वजीर समझ गया कि इन बालों के पीछे जरूर कोई राज़ छिपा है।

 वजीर ने कहा,

“बादशाह सलामत ने तुम्हें माफ़ किया। लेकिन वो इन बालों के बारे में जानना चाहते हैं।”

तब बड़े मुनीम ने बताया,

“हमारे सेठ अकसर ही साधु-संतों की सेवा करते रहते हैं। उन्हीं की सेवा भावना से प्रसन्न होकर एक साधु ने अपने बाल देकर कहा था कि इसी अपनी तिज़ोरी में रखना। वह कभी खाली नहीं होगी।”

बड़े मुनीम की यह बात सुनते ही वज़ीर खुश हुए। उन्होंने बादशाह को सारी बात समझाई और खजांची को हुक्म दिया कि वह बालों की पोटली खजाने में राखी जाए।

बादशाह ने इस बात से खुश होकर ख़ुशी-ख़ुशी मुझे बहुमूल्य भेंटों के साथ विदा किया।

यह सब सुन सेठ का अहंकार और गुस्सा दोनों दूर हो गए।

मुनीम ने भी उन्हें समझाया,

“किसी से शिक्षा लेकर हम कुछ हालातों का सामना करने के लिए तैयार हो  सकते हैं लेकिन जब नए हालत पैदा हो जाएँ तो हमें अपनी  ही बुद्धि से काम लेना पड़ता है।”

सेठ को अपनी गलती का अहसास हो गया था और उसे शिक्षा भी मिल गयी थी।

दोस्तों इसी तरह हम लोगों में से कई लोगों को शिक्षा देने की बहुत आदत होती है। कई लोग होते हैं जो अपने आप को  बहुत समझदार समझते हैं। समस्या ये नहीं की वे स्वयं को समझदार मानते हैं। समस्या  तो ये हो जाती है कि वे दूसरों को  कम अक्ल समझने लगते हैं। परन्तु जब हमें उनकी आवश्यकता पड़ती है तो वो किनारा कर लेते हैं। ये कहते हुए हम इसमें कुछ नहीं कर सकते।

ऐसे में हमें अपने ही धैर्य, विवेक और ज्ञान से काम लेना पड़ता है। तो सतर्क रहें सावधान रहें। और आपको ये ” अहंकार पर कहानी ” कैसी लगी हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

पढ़िए अप्रतिम ब्लॉग पर शिक्षाप्रद छोटी कहानियाँ :-

धन्यवाद।

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